फसल की खेती (Crop Cultivation)

फूलगोभी की खेती: पूरी गाइड- उत्पादन, सिंचाई और रोग प्रबंधन

25 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: फूलगोभी की खेती: पूरी गाइड- उत्पादन, सिंचाई और रोग प्रबंधन – फूलगोभी (ब्रैसिका ओलेरेशिया) भारत की सबसे लोकप्रिय सब्जी फसलों में से एक है, जिसे पोषण और स्वाद के लिए जाना जाता है। यह फसल न केवल विटामिन और खनिजों का उत्कृष्ट स्रोत है, बल्कि इसके उत्पादन से किसानों को अच्छी आर्थिक आय भी होती है। फूलगोभी की खेती में उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक विधियों, सही सिंचाई, पोषण प्रबंधन और रोग नियंत्रण का ध्यान रखना आवश्यक है।

यह लेख फूलगोभी की खेती के हर पहलू पर गहराई से प्रकाश डालता है, जिसमें खेत की तैयारी, अंतर-खेती, जल प्रबंधन, कीट और रोग नियंत्रण, और कटाई व भंडारण तकनीक शामिल हैं। यह गाइड किसानों को उनकी फसल को अधिक उत्पादक, टिकाऊ और लाभदायक बनाने में मदद करेगी।

फूलगोभी का खाने योग्य भाग जिसे “दही” कहा जाता है, छोटे इंटरनोड्स, शाखाओं के शीर्ष और सहपत्रों से बना होता है। फूलगोभी का लगभग 45% भाग खाने योग्य होता है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन के साथ पोटेशियम, सोडियम, आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे खनिज भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। पकाने के बाद भी इसमें विटामिन सी की स्थिरता बनी रहती है। भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा और कर्नाटक राज्यों में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।

अंतर-खेतीफसल को खरपतवारों से मुक्त रखने और जड़ों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए नियमित अंतर-संस्कृति कार्य आवश्यक है। गुड़ाई करते समय जड़ों को चोट से बचाने के लिए इसे गहराई में न करें। मध्यम भारी और चिकनी मिट्टी में, जड़ों के आसपास पपड़ी जमने से पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। बरसात के मौसम में, रिज रोपण में पौधों की जड़ें उजागर हो सकती हैं, जिसके लिए पर्याप्त मिट्टी चढ़ाना जरूरी है। मिट्टी चढ़ाने या रिजिंग के समय नाइट्रोजन युक्त उर्वरक की साइड ड्रेसिंग करें, ताकि फसल का विकास स्वस्थ तरीके से हो।

फूलगोभी की अच्छी गुणवत्ता का दही प्राप्त करने के लिए ब्लैंचिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। दही को धूप के सीधे संपर्क से बचाने के लिए पत्तों से ढकें, क्योंकि धूप से दही पीला हो सकता है और स्वाद भी कम हो सकता है। यह समस्या मुख्य रूप से शुरुआती और मध्य मौसम की किस्मों में होती है, जिनके पौधे फैलने वाले और खुले होते हैं। कुछ किस्मों में दही स्वाभाविक रूप से सुरक्षित रहता है और पत्तियों से ढका होता है। इन्हें स्व-ब्लैंचिंग किस्में कहा जाता है। जब दही पूरी तरह से विकसित हो जाए, तो पत्तियों की नोक खींचकर बांध दें या कटाई से 4-5 दिन पहले दही के ऊपर पत्तों का आवरण रखें।

जल प्रबंधनफूलगोभी की पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें। आगे की सिंचाई मौसम, मिट्टी के प्रकार और फसल की किस्म पर निर्भर करती है। फसल के विकास और दही बनने के दौरान मिट्टी में नमी बनाए रखना बहुत जरूरी है। शुरुआती और मध्य मौसम की फसल में, आमतौर पर बारिश के कारण सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। वर्षा वाले क्षेत्रों में, रोपण मेड़ों पर करें और फ़रो सिंचाई का उपयोग करें, जिससे पौधों को पर्याप्त नमी मिल सके।

कीट एवं रोग प्रबंधनफूलगोभी में कई प्रमुख रोग और कीट होते हैं जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। प्रमुख रोगों में डंठल सड़नकोमल फफूंद और काली सड़न शामिल हैं। इसके अलावा, टमाटर फल छेदक, पत्ती खाने वाली इल्ली, पत्ती खनिक और एफिड्स जैसे कीट फसल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनसे बचाव और नियंत्रण के लिए उचित प्रबंधन तकनीकों का उपयोग आवश्यक है।

शारीरिक विकारफूलगोभी की फसल को कई शारीरिक विकार प्रभावित करते हैं, जिनका समय पर प्रबंधन फसल की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है। इनमें से एक प्रमुख विकार है चावल जैसापन, जिसमें फूलगोभी की कलियां दानेदार, ढीली और मखमली हो जाती हैं। यह समस्या आनुवंशिक रूप से शुद्ध बीजों और अनुशंसित सांस्कृतिक प्रथाओं से नियंत्रित की जा सकती है।

दूसरा प्रमुख विकार है फजीनेस, जो मखमली दही के फूलों के डंठल के बढ़ने के कारण होता है। यह वंशानुगत और गैर-वंशानुगत दोनों हो सकता है। सही मौसम में अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों के उपयोग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

पत्तीदारपन एक और विकार है, जिसमें दही में पतली और छोटी पत्तियां बन जाती हैं, जिससे दही की गुणवत्ता घट जाती है। उच्च तापमान इस समस्या को बढ़ावा देता है। किस्मों का चयन उनकी अनुकूलन क्षमता के आधार पर करें ताकि इस विकार से बचा जा सके।

ब्राउनिंग (ब्राउन रॉट): यह बोरॉन की कमी से होता है, जिससे युवा पत्तियां गहरे हरे और भंगुर हो जाती हैं। पुरानी पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं। इसका समाधान मिट्टी में बोरेक्स मिलाकर या पत्तियों पर बोरेक्स के घोल का छिड़काव करके किया जा सकता है।

व्हिपटेल विकार मोलिब्डेनम की कमी के कारण होता है, खासकर अत्यधिक अम्लीय मिट्टी में। इस समस्या में पत्तियां क्लोरोटिक हो जाती हैं और आकार में अनियमित होती हैं। इसे मिट्टी के पीएच को बढ़ाने और मोलिब्डेट का उपयोग करके ठीक किया जा सकता है।

बटनिंग विकार में फूलगोभी के दही छोटे और ढीले हो जाते हैं। इसके कारणों में शामिल हैं:

  1. छह सप्ताह से अधिक पुराने पौधों का प्रत्यारोपण।
  2. देर से पकने वाली और शीघ्र पकने वाली किस्मों का अनुचित समय पर रोपण।
  3. गर्म और शुष्क मौसम, जो पौधों की वृद्धि को रोकता है और समय से पहले दही निर्माण को प्रेरित करता है।
  4. मिट्टी में नमी की कमी।
  5. खराब तरीके से प्रबंधित नर्सरी बेड से पौधों का उपयोग।
  6. अत्यधिक भीड़, अपर्याप्त पानी, निराई की कमी, खराब मिट्टी की स्थिति और अत्यधिक नमक सांद्रता।

इस विकार से बचाव के लिए गुणवत्तायुक्त पौधों और उचित प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करें।

समय पर इन विकारों का निदान और सही प्रबंधन फूलगोभी की गुणवत्ता और उपज को बढ़ाने में सहायक होता है।

कटाई, उपज और भंडारण

जैसे ही फूलगोभी पूरी तरह से परिपक्व हो जाए, उसका दही सघन हो और रंग सफेद बना रहे, तुरंत कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई में देरी होने पर फूलगोभी जरूरत से ज्यादा पक जाती है, जिससे उसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है। अत्यधिक पकी हुई फूलगोभी ढीली, पत्तीदार, चावल जैसी या रोएंदार हो सकती है, जो बाजार में कम कीमत पर बिकती है। इसलिए, बाजार में भेजने से पहले जरूरत से ज्यादा पकी हुई फूलगोभी को अलग कर लेना चाहिए। कटाई के लिए तेज चाकू या दरांती का उपयोग करें और डंठल के ठीक नीचे से फूलगोभी को सावधानीपूर्वक काटें।

फूलगोभी की उपज कई कारकों, जैसे किस्म, परिपक्वता समूह और मौसम पर निर्भर करती है। जल्दी पकने वाली किस्में औसतन 80-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती हैं, जबकि मुख्य मौसम की किस्में 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती हैं। स्नोबॉल समूह और देर से पकने वाली अन्य किस्मों की उपज इससे भी अधिक हो सकती है।

फूलगोभी को लंबे समय तक ताजा बनाए रखने के लिए उचित भंडारण आवश्यक है। इसे 0 डिग्री सेल्सियस तापमान और 90-95 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता पर 2 से 4 सप्ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस प्रकार, सही कटाई और भंडारण तकनीक अपनाकर फूलगोभी की गुणवत्ता और बाजार मूल्य बनाए रखा जा सकता है।

पोषक तत्वों की आवश्यकता:

फूलगोभी की बेहतर उपज और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए खेत की तैयारी के दौरान पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग आवश्यक है। खेत में 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद डालें। नाइट्रोजन 100-150 किग्रा प्रति हेक्टेयर, फास्फोरस 60-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर और पोटेशियम 80 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटेशियम की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाएं। बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा रोपाई के चार सप्ताह बाद डालें। इसके अलावा, बोरेक्स (15 किग्रा/हेक्टेयर) और अमोनियम मोलिब्डेनम (15 किग्रा/हेक्टेयर) का उपयोग बोरोन और मोलिब्डेनम की कमी वाली मिट्टी में करें।

पादप वृद्धि नियामकों का उपयोग:

फूलगोभी की उपज और पौधों की वृद्धि में सुधार के लिए पादप वृद्धि नियामकों का उपयोग बेहद लाभदायक होता है। इनके उपयोग का विवरण नीचे दी गई तालिका में प्रस्तुत किया गया है:

पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर)आवेदन की विधिप्रभाव
IBA @ 10 पीपीएमपौध उपचारउपज में वृद्धि
GA @ 100 पीपीएम + NAA @ 120 पीपीएम + Mo @ 2%पत्तियों पर छिड़कावउपज में वृद्धि
GA @ 50 पीपीएम + यूरिया @ 1%पत्तियों पर छिड़कावउपज में वृद्धि
GA3 @ 50 पीपीएमपत्तियों पर छिड़कावउपज में वृद्धि
NAA @ 10 पीपीएमपौध उपचारपौधों की वानस्पतिक वृद्धि और खड़ा रहना
GA4 + GA7 @ 80 मिलीग्राम/लीटरपत्तियों पर छिड़कावपौधों की वानस्पतिक वृद्धि और खड़ा रहना

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