फसल की खेती (Crop Cultivation)

गर्मियों में भिण्डी की उन्नत खेती

भूमि: अच्छे उत्पादन के लिए बलुई दुमट या रेतीली दुमट भूमि उपयुक्त होती है। अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु भूमि का पी.एच. मान 6 से 6.8 अच्छा होता है।

प्रजातियां: पूसा सावनी, पंजाब पदमनी, परमनी क्रांति, आर्का अनामिका, वर्षा उपहार, पूसा मखमली को। कल्याणपुर 1,2,3,4 हिसार उन्नत पूसा ए-4, संकर किस्म पूसा    ए-4।

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 खेत की तैयारी: वर्षा ऋतु के दौरान पहली वर्षा होने पर खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से दो बार अच्छी तरह से जुताई करना चाहिए। इसके पश्चात 2 बार डिस्क हैरो या देषी हल से पुन: जुताई कर पाटा चलायें। 250- 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टर की दर से आखिरी जुताई से पहले खेत में फैलाना उपयुक्त रहता है ताकि वह मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाए।

बुआई:  फरवरी – मार्च, जून – जुलाई ।

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बीज की मात्रा: ग्रीष्मकालीन फसल हेतु बीजोपचार 20 – 25 कि.ग्रा./हे., वर्षा वाली फसल हेतु 12 – 15 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।

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बीजोपचार: भिण्डी की फसल को फफूंदी जनित रोगों से बचाने के लिए बीजोपचार करना निरन्तर आवश्यक है। इसके लिए बीजों को बोने से पूर्व 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन या 2.5 ग्राम थायरम के उपचार करना चाहिए।

दूरी: ग्रीष्म कालीन फसल के लिए पक्तियों और पौधो में क्रमश: 15 और 30 सें.मी की दूरी रखनी चाहिए। वर्षा कालीन फसल के लिए पंक्तियों एवं पौधो में क्रमश: 45 सें.मी. की दूरी रखनी चाहिए।

बोआई की विधि: भिण्डी के बीज की बोआई हाथ से बीज बोकर  सीडड्रिल या हल के पीेछे कूड़ों में बोया जाता है। भिण्डी की बोआई आमतौर पर दो विधियों से की जाती है।

– समतल क्यारियों में बोआई।

– डौलियों पर बोआई।

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उपरोक्त विधियों में डौलियों पर बोआई करना अति उत्तम है क्योंकि ऐसा करने पर – अंकुरण समान रूप से होता है। कम पानी की आवश्यकता होती है और वर्षा ऋतु में जल निकास में मदद मिलती है।

 उर्वरक: 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. स्फुर, 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टर की दर से उर्वरकों का उपयोग नत्रजन की आधी मात्रा, स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय देना चाहिए। शेष नत्रजन की आधी मात्रा 25-30 दिनों के अंतर पौधे पर देना चाहिए।

सिंचाई एवं जल निकास:  ग्रीष्म कालीन भिण्डी के सहज उत्पादन के लिए निरंतर सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए 4 – 5 दिनों के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। वर्षा कालीन फसल वर्षा के वितरण के ऊपर निर्भर करती है। यदि काफी समय  तक वर्षा न हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए। फूल एवं फल निर्माण के समय नमी की कमी के कारण फसल को 70 प्रतिशत तक हो जाती है।

खरपतवार नियंत्रण: बीज बोने के 20 दिन के बाद 3 – 4 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। उसके उपरान्त पौधे भूमि की सतह को ढ़क लेते है।

तुड़ाई : फल तोडऩे के लिए सर्वोत्तम समय फूल खिलने के 6 – 8 दिन बाद होता है। लेकिन फलियों की तुड़ाई उनकी जातियों पर निर्भर करती है। भिण्डी की फसल में फल तोडऩे योग्य हो जाने के बाद एक दिन छोड़कर लगातार तुड़ाई करना आवश्यक है देर से तुड़ाई करने से वे कठोर हो जाते हैं।

उपज : वर्षा कालीन फसल से 101 – 120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त होती है। और ग्रीष्म कालीन फसल में 60 – 70 क्विंटल प्रति हेक्ट. की दर से उपज प्राप्त होती है।

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