फसल की खेती (Crop Cultivation)

कपास के किसानों के लिए एक नयी उम्मीद – पनामा

  • हेमन्त मीणा,
    क्रॉप मैनेजर- कॉटन,
    स्वाल कॉर्पोरेशन

 

12 जुलाई  2021,  कपास के किसानों के लिए एक नयी उम्मीद – पनामा – भारत में कपास उत्पादन का एक लंबा इतिहास रहा है, अंग्रेजों के भारत आने से पहले ही देश में कई तरह की कपास की किस्मों का उत्पादन किया जाता था। कपास भारत की आदि फसल है, जिसकी खेती बहुत ही बड़ी मात्रा में की जाती है। भारत से ही 327 ई.पू. के लगभग यूनान में इस पौधे का प्रचार हुआ। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत से ही यह पौधा चीन और विश्व के अन्य देशों को ले जाया गया।

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cotton

भारत को कपास की खेती के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है जो कि 12.5 मिलियन हेक्टेयर से 13.0 मिलियन हेक्टेयर के बीच है। कपास की खेती के तहत विश्व क्षेत्र का लगभग 41प्रतिशत है। भारत विश्व में कपास के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, जो विश्व कपास उत्पादन का लगभग 26 प्रतिशत है।

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फरवरी 2000 में भारत सरकार द्वारा कपास पर प्रौद्योगिकी मिशन की शुरूआत के बाद से उच्च उपज वाली किस्मों के विकास, प्रौद्योगिकी के उचित हस्तांतरण, बेहतर कृषि प्रबंधन प्रथाओं, बीटी कपास संकरों की खेती के तहत बढ़े हुए क्षेत्र आदि के माध्यम से उपज और उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गई हैं। इन सभी विकासों के परिणामस्वरूप पिछले 7 से 8 वर्षों से देश में कपास उत्पादन में बदलाव आया है। प्रति हेक्टेयर उपज जो इतने वर्षों से लगभग 300 किग्रा/हेक्टेयर पर स्थिर थी, वर्ष 2017-18 में बढक़र 506 किग्रा हो गई और वर्ष 2013-14 में 566 किग्रा प्रति हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गई थी। यद्यपि प्रति हेक्टेयर उपज अभी भी विश्व औसत लगभग 762 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के मुकाबले कम है, देश में कपास की खेती के क्षेत्र में जो मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं, वे वर्तमान उत्पादकता स्तर को दुनिया के करीब ले जाने की क्षमता रखते हैं।

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कपास का वर्तमान परिदृश्य

कपास पर बोलवर्म (इल्लियाँ) कॉम्प्लेक्स, रस चूसने वाले (सकिंग पेस्ट कॉम्प्लेक्स) जैसे कीटों का हमला होता है। रस चूसने वाले कीटों को बहुत गंभीर रूप से देखा जाना चाहिये और कभी-कभी उनके अत्यधिक प्रकोप से फसल की पैदावार बहुत कम हो जाती है। रस चूसने वाले कीटों के अवशोषण से अनुमानित नुकसान 35 प्रतिशत तक है। अन्य रस चूसने वाले कीटों में माहू (एफिड्स), तेला (जैसिड्स), चूरड़ा (थ्रिप्स) और सफेद मक्खी हैं। वे सभी अलग-अलग तरीकों से फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।

माहू के खराबी के लक्षण
  • माहू (एफिड्स) की कॉलोनियां नये तनों, छोटी पत्तियों और कलियों पर गुच्छित होती हैं।
  • पत्तियों और युवा टहनियों का मुरझाना और विकृत होना।
  • पत्तियों का पीला पडऩा और नये पौधों की अकाल मृत्यु होना।
  • हनीड्यू पत्तियों और फलों को चिपचिपा बनाता है और ब्लॅक सूटी मोल्ड कवक के विकास को बढ़ावा देते हैं।
  • वायरल रोग के लक्षण (जो फसल के पौधे के प्रकार और वायरस के प्रकार के साथ भिन्न होते हैं)।
तेला (जैसिड्) के खराबी के लक्षण
  • कोमल पत्तियाँ पीली हो जाती हैं।
  • पत्तियों का किनारा नीचे की ओर मुडऩे लगता है और लाल होना शुरू हो जाता है
  • गंभीर संक्रमण के मामले में पत्तियां कांसे या ईंट के लाल रंग जैसी हो जाती है जो विशिष्ट ‘हॉपर बर्न’ लक्षण है।
  • पत्तियों का किनारा कडक़ और कुचलने पर टुकड़ों में टूट जाता है।
    आईपीएम (ढ्ढक्करू) द्वारा सिफ़ारिश की गई रणनीतियाँ
  • सिफ़ारिश की गई किस्मों का प्रयोग करें।
  • रस चूसने वाले कीटों के सफल प्रबंधन में प्राकृतिक शत्रु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • अत्यधिक चयनात्मक कीटनाशकों का प्रयोग करें जिनकी क्रिया अलग-अलग होती है और यह पौधों पे पूर्ण कवरेज सुनिश्चित करते हैं।
  • ऐसे कीटनाशक का चयन करें जिसका प्राकृतिक शत्रुओं पर कम से कम प्रतिकूल प्रभाव हो। पनामा (स्नद्यशठ्ठद्बष्ड्डद्वद्बस्र) उपलब्ध सर्वोत्तम आईपीएम (ढ्ढक्करू) अनुपालन विकल्पों में से एक है।
  • शुरुआती समय से ही पनामा का छिडक़ाव करें ताकि फसल रहे रस चूसक कीट मुक्त।
सफेद मक्खी के प्रकोप के संभावित कारण
  • कीड़ों के लिए अनुकूल मौसम।
  • उर्वरकों का अनुचित उपयोग- एन (नाईट्रोजन) का ज्यादा और पी (फॉस्फोरस) और के (पोटैशियम) का कम उपयोग।
  • उपयोगकर्ता के स्तर पर ईटीएल का अपर्याप्त ज्ञान और देर से कीटनाशक का प्रयोग।
  • कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग-
  • अ) समान कीटनाशकों के लिए उच्च जोखिम।
    ब) कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण प्राकृतिक शत्रुओं के विनाश के कारण सफेद मक्खियों का पुनरुत्थान।
    स) नियोनिकोटिनोइड्स के बार-बार संपर्क में आने से प्रतिरोध और पुनर्जनन होता है।
  • सफेद मक्खी में प्रतिरोध का विकास।
  • आईपीएम उपायों और प्रतिरोध प्रबंधन रणनीतियों का सीमित उपयोग।

सफेद मक्खियों से होने वाले खराबी के लक्षण
  • पत्तियों पर क्लोरोटिक धब्बे आते है जो बाद में पत्तियों पर जमा हो जाते हैं और पत्ती के ऊतकों का अनियमित पीला रंग बनाते हैं जो शिराओं से शुरू होकर पत्तियों के बाहरी किनारों तक फैल जाते हैं।
  • तीव्र प्रकोप के परिणामस्वरूप समय से पहले पतझड़ हो जाता है।
  • काली, मोटी फफूंदी का विकास।
  • कलियों और घेंटे या टिंडे का गिरना और बीजकोषों का खराब खुलना।
  • यह फसल को लीफ कर्ल वायरस जैसे रोगों से भी संक्रमित करता है।
सफेद मक्खी का जीवन चक्र

सफेद मक्खी का जीवनचक्र मौसम के आधार पर 14 दिनों जितना छोटा और 107 दिनों तक लंबा हो सकता है। यदि जीवित रहने के लिए आवश्यक हो तो सफेद मक्खी पार्थेनोजेनेटिक रूप से प्रजनन करने में सक्षम है, जिसमें अनिशेचित अंडे निम्फ में बदलते है।

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माहू, तेला और सफेद मक्खियों के लिए  SWAL का समाधान
  • पनामा रस चूसने वाले कीटों की समस्या का एक अनूठा समाधान है। यह एक से अधिक तरीकों से इनकी संख्या को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह लंबी अवधि के नियंत्रण के साथ उत्कृष्ट प्रदर्शन भी प्रदान करता है। आइए पनामा के बारे में और जानें।
सेलेक्टिव फीडिंग ब्लॉकर (SFB)  आधे घंटे के भीतर कीट खाना बंद कर देते हैं और भूख से  मर जाते हैं। इसलिए यह रस चूसक कीटों पर प्रभावी नियंत्रण देता है जो कि अन्य कीटनाशकों से नियंत्रित नहीं हो पाते हैं।
एक्रोपेटल गतिविधि पनामा की अनोखी कार्यप्रणाली के कारण यह नए उभरते पत्तों के साथ पूरे पौधे को सुरक्षा प्रदान करता है।
सिंगल शॉट समाधान माहू तेला और सफेद मक्खी की सभी अवस्थाओं पर पनामा अकेला ही प्रभावी नियंत्रण देता है।
बारिश में न धुलना  2 घंटे की बारिश के बाद भी कोई उत्पाद नहीं धुलना।
फाइटोटोनिक (पौधों में हरेपन का) प्रभाव अच्छी वृद्धि में मदद करता है जिससे स्वस्थ पौधों की गुणवत्ता और अच्छा उत्पादन होता है।
उचित मात्रा 80 ग्राम प्रति एकड़।

पनामा है तो कपास अच्छा है।

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