मानव जीवन में पशुपालन का महत्व
लेखक: श्रीमती कल्पना पटेल, दमोह
25 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: मानव जीवन में पशुपालन का महत्व – भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसकी 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। भारत में कृषि और पशुपालन एक-दूसरे के पूरक है भारत की कृषि पर निर्भस्ता जितनी अधिक है उतना ही महत्वपूर्ण है पशुपालन, बल्कि हम यह कहें तो अतिश्योक्ति न होगी कि भारत में पहले पशुपालन ही मुख्य आय का स्त्रोत था द्वापर में गाय को गौधन के रूप में मान्यता थी एक प्रचलित कहानी है कि महाराज दुपद और आचार्य द्रोण एक ही गुरु के शिष्य थे दोनों ने बचपन में कसमें खाई थी हमारे पास जो भी है वह एक-दूसरे का है. लेकिन जब द्रोणाचार्य एक गाय मागने दुपद के पास गये तो उन्होंने बचपन की बातें कह कहकर मना कर दिया यही गाय फिर द्रोणाचार्य ने कुरुवंशियों से गुरुदक्षिणा में मांगी थी अतः मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि प्राचीन समय में पशुपालन की महत्व दिया जाता था। जिसके पास जितना अधिक पशुधन होता था यह उतना ही अधिक समृद्धशाली माना जाता था इस प्रकार प्राचीन भारत में पशु सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था का आधार था राजा के पास गाय के अतिरिक्त हाथी, घोड़े, रथ खींचने वाले बैल भी होते थे जो उसकी शक्ति और समृद्धि के सूचक थे। आज हमें पुनः पशुपालन पर जोर देने की आवश्यकता है। पशुपालन से निकले अपशिष्ट गोबर, गौमूत्र का उपयोग करके जैविक खाद तैयार की जा सकती है, जो कि फसल के लिए अत्यत लाभदायक है, और फसल से हमें चारे के रुप में भूसा प्राप्त होता है, फसलों में उगे खरपतवार का उपयोग भी हम निंदाई करके चारे के रूप में कर सकते है जिससे फसल को खरपतवार से मुक्ति मिलेगी। दूसरी तरफ पशुओं को चारा प्राप्त हो जायेगा, गाय से निकले गौमूत्र का उपयोग हम कीटनाशक के रूप में व गौमूत्र, गोबर का उपयोग अमृत खाद में कर सकते हैं जिससे खेती की लागत कम होगी और खेती लाभ का बंचा बन सकेंगी।
देश के कृषि उत्पादन में पशुपालन का 30 प्रतिशत योगदान है ग्रामीण क्षेत्र में पशुपालन से विभित्र रूप में रोजगार मिलता है जैसे पशुओं के बच्चों का लालन-पालन करके बेचना, कृषि के लिए बैल तैयार करके, विभिन्न प्रकार के दुधारू पशुओं को पालकर दुग्ध तथा दुग्ध उत्पादन प्राप्त करके, जीवित पशुओं के मरने से चमड़ा, पशु हड्डियां उद्योगों के लिए प्राप्त होती है। पशुओं से प्राप्त गोबर को फसल अवशेषों के साथ मिलाकर कंपोस्ट खाद बनाकर कृषि में प्रयोग कर सकते हैं इसके अलावा पशुओं से डेयरी उद्योग चर्म उद्योग, सींगों से बनने वाले वाद्य यंत्र, कधी, शोपीस आदि प्राप्त होते है आज पशुओं से दुग्ध उत्पादन की अतिरिक्त गाय से प्राप्त गोमूत्र एवं गाय गोबर दवाइयों के रूप में प्रयोग हो रहे हैं। पशुओं से प्राप्त ताजा गोबर से गोबर गैस प्लाट में प्रयोग करके अच्छी सड़ी गोबर खाद तथा रसोई गैस प्राप्त की जा सकती है प्रयोग में यह पाया गया है कि बायोगैस संयंत्र 35 डिग्री पर सबसे अच्छे ढंग से कार्य करता है बायोगैस में 60 से 65 प्रतिशत मीथेन 35 से 40 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड और थोड़ी मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड होता है 30 से 35 किलोग्राम गोबर की मात्रा से एक घन मीटर गैस पैदा होती है जो 5-6 सदस्यों की परिवार के लिए खाना पकाने के ईंधन की आवश्यकता को पूर्ति करता है।
गाय के गोबर से घर लीपने तथा उपले जलाने से रोग कीटाणुओं का नाश होता है. पशु पशु हमारे घरों में पर्यावरण संरक्षण का भी कार्य करते हैं घर से निकलने वाले छिलके बची हुई रोटी सब्जी एवं अन्य खाद्य पदार्थ फेंकने के बजाय हम पशुओं को खिला देते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि पर्यावरण और उसकी सुरक्षा का चक्र पशुओं की सुरक्षा के बिना पूरा नहीं होता अगर किसी पशु की जाती या प्रजाति नष्ट हो जाती है तो पर्यावरण का संतुलन ही बिगड़ जाता है इस प्रभाव मनुष्य सहित समस्त जीवन जतु और वनस्पति जगत पर भी पड़ता है। अतः हमारा कर्तव्य कि हम पशुओं की सुरक्षा करें। और पशुपालन को बढ़ावा दें।
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