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सूखे की आहट – हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम

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प्रिय किसान भाईयों,
इस वर्ष पूरे देश में कहीं अतिवर्षा और कहीं गंभीर सूखे की आहट सुनाई पड़ रही है। मध्यप्रदेश के बड़े भू-भाग में बोई गई खरीफ फसलों की स्थिति वर्षा की खेंच के कारण चिंता का कारण बनी हुई है। कुछ क्षेत्रों में दोबारा बुआई करनी पड़ी है और उसकी स्थिति भी गंभीर बनी हुई है। शासन की नीतियों के कारण किसानों को उसकी उपज के दाम लागत मूल्य से भी कम और देर-सबेर मिले हैं, किसानों की आत्महत्या की खबर हर रोज समाचार पत्रों में छप रही है और उस पर वर्तमान सूखे की स्थिति से बदहाली की आशंका से उसके आंखों की नींद और दिल का चैन दोनों ही जवाब दे रहे हैं। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद किसान की संघर्ष क्षमता की एक बार पुन: कठोर परीक्षा है। खेती-किसानी के संबंध में कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं जिनसे वर्तमान चुनौतियों से जूझने में सहायता मिल सकती है-

  • पशुओं के लिये यथा संभव ज्वार, बाजरे की चरी अवश्य बोयें, इससे पशुओं के जीवनयापन में मदद मिलेगी।
    वैकल्पिक फसलें
  • वैकल्पिक फसलों के रूप में मक्का, सूरजमुखी, तिल की बुआई करें। कम लागत की ये फसलें कम वर्षा की दशा में भी कुछ उत्पादन अवश्य देंगी। सूरजमुखी की बोआई किसानों के आपसी सहयोग से कम से कम 50 -100 एकड़ के क्षेत्र में करनी चाहिए। क्षेत्र में बोई फसल को पक्षी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • यथासंभव खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में रोकने, जल संग्रहण की व्यवस्था बनाने में पहल करें। ताकि आसन्न सूखे का सामना किया जा सके।
    फसल बीमा
  • फसल बीमा स्वयं भी करायें और दूसरे किसान भाईयों को भी प्रेरित करें ताकि क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी से मिल सके।
    निराई-गुड़ाई
  • जहां फसलों की स्थिति ठीक है वहां निराई- गुड़ाई अवश्य करें, खरपतवार से खेतों को मुक्त रखें। डोरा चलाने से नमी का संरक्षण होता है व खरपतवार भी साफ हो जाते हैं।
  • जल प्रबंधन विधियां अपना कर कुएं, ट्यूबवैल रिचार्ज करें।
    याद रखें, नेताओं के आश्वासन और शासकीय मदद के बल पर वर्तमान चुनौती की सामना नहीं किया जा सकता। सामाजिक सहकार, सहयोग से ही हम इस आपदा का डटकर मुकाबला कर सकते हैं। आत्महत्या जैसा पलायनवादी रास्ता अपनाकर, बीबी बच्चों को मुसीबत में डालना कोई बुद्धिमानी का काम नहीं है। संघर्षशील बनिये, कठिन परिस्थितियों का हिम्मत से मुकाबला करिये। कवि रहीम कहते हैं-
    रन, वन, व्याधि, विपत्ति में रहिमन मरै न रोय।
    जो रच्छक जननी जठर सो हरि गये न सोय॥
    स्वाबलंबन और सहयोगात्मक उद्योग ये दोनों ही परीक्षा के कठिन समय में नागरिक जीवन का आधार है, पहले स्वयं की परीक्षा करें फिर ईश्वर को पुकारें क्योंकि उद्यमी पुरूष की ही ईश्वर सहायता करता है।
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