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फसल उत्पादन के आवश्यक सुझाव

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संतुलित उर्वरक का प्रयोग
अभी तक संतुलित उर्वरक का मतलब किसान समझ ही नहीं पाया है और अपने आकलन के हिसाब से केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग कर रहा है और इसी का प्रयोग करते-करते इस समय यह स्थिति आ गयी है कि जमीन के अंदर सूक्ष्मजीव (केचुआ, बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस) तथा सूक्ष्म पोषक तत्व (जिंक, मैंगजीन, लोहा, बोरान इत्यादि) का अभाव होता चला आ रहा है और इसके अलग से डालने की आवश्यकतायें महसूस की जा रही हंै। इसके लिए रसायनिक उर्वरकों के साथ-साथ गोबर खाद अथवा हरी खाद का प्रयोग किया जाये तो सूक्षमजीवों की संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों की बढ़ोत्तरी स्वत: होगी तथा जमीन स्वस्थ होगी। ऐसे में इन सब चीजों को बढ़ावा देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। संतुलित उर्वरक प्रयोग के लिए किसान भाई मिट्टी की जांच अवश्य करायें। आज की परिस्थिति में धान और गेहूं की फसल चक्र बहुतायत से चल रहा है। इसको रोकने की आवश्यकता है क्योंकि गेहूं व धान की जड़ें तीन इंच की गहराई से ज्यादा नहीं जाती और इस समय अधिकतर जुताई ट्रैक्टर से की जा रही हैं। उसका हेरो भी तीन इंच की गहराई से ज्यादा नहीं जा पाता है। जमीन में तीन इंच की गहराई पर जो परत बन रही है वह काफी कड़ी बन रही है। इससे गहराई के जो तत्व हैं वे ऊपर नहीं पा रहे हैं। ऐसे में जमीन का ढांचा खराब हो रहा है ओर आने वाले भविष्य में फसल विविधिकरण आवश्यक हो गया है अवयव में दलहनी फसल को वर्ष भर के अंदर खेत में अवश्य बोयें जिससे भूमि मेें सख्त परत टूट जाये और खेत में बैक्टीरिया का आदान-प्रदान हो जाये। साथ ही जमीन भुरभुरी हो जाय तथा कुछ कार्बनिक पदार्थ का भी प्रादुर्भाव हो जाये। इसके लिए या तो जायद में फसल के रुप में उड़द और मंूग की बुवाई करें।
समय से बुवाई
इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि देर से फसल बुवाई करने पर लागत ज्यादा जा रही है। उत्पादन दिन-प्रतिदिन लागत की अपेक्षा घट रहा है। समय से बुवाई के लिए कुछ मोटी जानकारियां नीेचे दी जा रही हैं।
– खरीफ में धान की नर्सरी की बुवाई 20 मई तक अवश्य कर लें। रोपाई 20 जून से आरंभ हो जायें। 15 जुलाई के बाद धान की रोपाई नहीं करें अन्यथा हापर कीट तथा बीमारियों का प्रकोप अधिक होगा।
– खरीफ में उड़द, मूंग, ज्वार, बाजरा की बुवाई पहली वर्षा के बाद करें, लेकिन अरहर जो साल भर की फसल है, इसकी बुवाई 31 अगस्त तक आराम से की जा सकती है, क्योंकि अरहर थोड़ा ऊंचे खेत मेें ही लिया जाता है। अत: अगस्त में जब कहीं मौका मिल जाता है इसकी बुवाई कर दी जाये। इससे अरहर के पौधे छोटे तो हो सकते हैं लेकिन जो अरहर में दो बार फलियां आ रही हों वह एक बार आयेंगी। कीड़े-मकोड़े भी कम लगेंगे, फसल उत्पादन सवा से डेढ़ गुनी हो सकता है क्योंकि पेड़ छोटे होने से कीड़ों-मकोड़ों की नियंत्रण भी असानी से किया जा सकता है। साथ ही अरहर में ज्वार की फसल लेने उकठा में भी कमी होती है।
सोयाबीन- उत्तर-पश्चिम भारत में सोयाबीन की बुवाई का उपयुक्त समय जून के मध्य से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक है। जबकि मध्य भारत के लिए जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई का प्रथम पखवाड़ा सही समय है। सोयाबीन की नवीनतम प्रजातियों में पूसा-9712 व पूसा-9814 प्रमुख है। जो कि उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में बुवाई हेतु उपयुक्त है।

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