ग्रीष्मकालीन धान की बजाय किसान मूंग, तिल एवं सन व ढैंचा उगाएं
31 मार्च 2025, ग्वालियर: ग्रीष्मकालीन धान की बजाय किसान मूंग, तिल एवं सन व ढैंचा उगाएं – हरसी बांध में पानी कम होने से ग्रीष्मकालीन धान के लिये पानी मिलने में आने वाली कठिनाई को देखते हुए किसानों को ग्रीष्म काल में धान की बजाय ग्रीष्मकालीन दलहनी फसलें जैसे मूंग, तिल व ढैंचा उगाने की सलाह दी गई है। इन फसलों से खेत की मृदा (मिट्टी) का उर्वरा संतुलन बना रहता है। साथ ही ये फसलें कम पानी, कम समय और कम मेहनत में अच्छा व लाभदायक उत्पादन देती हैं।
उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास श्री आर एस शाक्यवार ने बताया कि ग्रीष्मकालीन धान में पानी की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। मौजूदा वर्ष में हरसी जलाशय में पानी की उपलब्धता कम है और इस वजह से क्षेत्र का जल स्तर भी नीचे है। ग्रीष्मकालीन धान व उसके बाद खरीफ में धान की फसल लगाने से पोषक तत्वों का अत्यंत दोहन हो जाता है और मृदा की उर्वरता अर्थात उत्पादन क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। साथ ही ग्रीष्मकालीन धान में पेस्टीसाइड एवं दवाइयों के अधिक उपयोग से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।
ग्रीष्मकाल में धान की बजाय मूंग उगाने से खरीफ में समय से धान लगाई जा सकती है। जाहिर है खरीफ के धान की समय से कटाई हो जाती है और गेहूं की बुवाई कर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इससे फसल चक्र के सिद्धांत का भी पालन हो जाता है जो खेत की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिये अत्यंत जरूरी है। किसान ग्रीष्मकाल में मूँग के अलावा तिल की फसल भी उगा सकते हैं। साथ ही खरीफ में जिस रकबे में धान प्रस्तावित है, उसमें हरी खाद प्राप्त करने के लिये सन या ढेंचा उगा सकते हैं। इसे खेतों में पढ़ने पर मृदा की उर्वरता उच्च स्तर पर पहुँच जाती है। इसलिए जिले के किसानों से मौजूदा वर्ष में गर्मी की धान न लगाने और उसके स्थान पर मूंग, तिल अथवा सन या ढेंचा लगाकर अधिक उत्पादन प्राप्त करने और पर्यावरण व मृदा संरक्षण में सहयोग देने की अपील की गई है।
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