छत्तीसगढ़: कृषि सखियों की नई सोच ने बदली गांवों की तस्वीर
15 दिसंबर 2025, रायपुर: छत्तीसगढ़: कृषि सखियों की नई सोच ने बदली गांवों की तस्वीर – राजनांदगांव जिले के ग्राम मोखला और भर्रेगांव की महिला स्व-सहायता समूहों ने रसायन-मुक्त खेती को अपनाकर एक प्रेरक मिसाल कायम की है। प्रयास एवं उन्नति स्व-सहायता समूह की कृषि सखियों ने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत प्राप्त तकनीकी प्रशिक्षण का तीसरे स्तर तक उपयोग करते हुए प्राकृतिक खेती को जीवन का नया आधार बना लिया है।
जैविक उत्पादों का निर्माण और प्रयोग
समूह द्वारा तैयार किए गए जैविक उत्पादों में जीवामृत, बीजामृत, धनामृत, अग्न्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, निमास्त्र तथा दशपर्णी अर्क प्रमुख हैं। इन
उत्पादों को तैयार करने की विधि और उपयोग की सही जानकारी समूह की सदस्यों ने न केवल सीखी बल्कि गांव के अन्य किसानों को भी सिखाई। परिणामस्वरूप खेतों में रसायनों की लागत घटने के साथ ही मिट्टी और फसलों पर रसायनों के दुष्प्रभाव कम हुए हैं।
क्लस्टर विस्तार और आपूर्ति व्यवस्था
कृषि विभाग ने महिला समूहों की इस पहल को देखते हुए 375 एकड़ क्षेत्र में प्राकृतिक खेती के क्लस्टर विकसित किए और समूहों को जैविक आदान सामग्री की आपूर्ति की जिम्मेदारी सौंपी। स्थापित बीआरसी (जैव आदान विक्रय केन्द्र) के माध्यम से बोवाई से लेकर कटाई तक आवश्यक जैविक सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है। ग्राम धामनसरा, ढोडिया, भोडिया, मोखला, भरेगांव, बांकल और पनेका के किसानों को कुल मिलाकर 1200 लीटर दशपर्णी अर्क, ब्रह्मास्त्र व निमास्त्र वितरित किए गए तथा इनके प्रयोग की विधि भी
विस्तार से बताई गई।
आत्मनिर्भरता और आय के अवसर
जैविक उत्पादों के उत्पादन और विक्रय से समूहों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई है। खरीफ सीजन में प्रत्येक समूह ने लगभग एक लाख रुपये की आय अर्जित की — जिससे स्थानीय स्तर पर आजीविका के स्पष्ट अवसर पैदा हुए हैं। बीआरसी की अध्यक्ष श्रीमती नीतू चंद्राकर बताती हैं कि जैविक उत्पादों के उत्पादन ने महिलाओं को आर्थिक सशक्तता दी है और गांवों में रसायनों से होने वाले स्वास्थ्य व पर्यावरणीय खतरों के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है।
आगे की दिशा और चुनौतियाँ
समूह की प्राथमिकता है कि अधिक से अधिक महिलाएं इस आंदोलन से जुड़ें और प्राकृतिक खेती को गांव-गांव तक पहुंचाएं। आगे की चुनौतियों में स्थिर बाजार, जैविक उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखना और प्रशिक्षण-सुगमता का विस्तार शामिल है। अगर इन पहलुओं पर निरंतर ध्यान दिया जाए तो यह आंदोलन दूरगामी सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का रूप ले सकता है।
कृषि सखियों की यह छोटी-सी शुरुआत इस बात का संदेश देती है कि सही प्रशिक्षण, स्थानीय संसाधनों का सदुपयोग और महिला नेतृत्व से गांवों की तस्वीर सचमुच बदल सकती है।
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