मधुमक्खी पालन एक लाभदायक व्यवसाय
लेखक: घनानन्द तिवारी,जगतारण, विजय राठौड़, एग्री सर्च इंडिया प्रा. लि., रायपुर,tiwari1980@gmail.com
24 जनवरी 2025, भोपाल: मधुमक्खी पालन एक लाभदायक व्यवसाय – शहद प्रकृति की एक बहुमूल्य देन है यह एक मीठा चिपचिपा पारदर्शक एवं अर्धतरल पदार्थ है जो मधुमक्खियों द्वारा पुष्पों के मकरन्द को एकत्र करके तैयार किया जाता है। मधुमक्खियों व इनसे प्राप्त होने वाले शहद तथा इसके महत्व के बारे मनुष्यों को प्रचीनकाल से ही जानकारी है। जिनका वर्णन वेदों व पुराणों में मिलता है। अपनी मिठास व औषधीय गुणों के कारण शहद काफी लोकप्रिय है। मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाला एक अन्य पदार्थ मोम है जिसका उपयोग विभिन्न उत्पादों को बनाने में किया जाता है। प्रचीनकाल में मधुमक्खियां पाली नहीं जाती थीं मधुमक्खियों का कृत्रिम पालन मौनगृहों में उन्नीसवीं सदी में आरम्भ किया गया। 1 किग्रा शहद में लगभग 3500 कैलोरी ऊर्जा पाई जाती है शहद खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाने में सहायक होता है। इसका प्रयोग युनानी व आयुर्वेदिक दवाओं में प्रचीनकाल से ही होता आ रहा है। पर्वतीय क्षेत्र हरा-भरा होने के साथ-साथ वातावरणीय संतुलन को भी बनाये रखता है जिसके कारण पहाड़ों में पूरे साल मधुमक्खियों के लिए पराग की उपलब्धता बनी रहती है इन्ही गुणवत्ता के कारण मधुमक्खियां यहां से दूसरे स्थानों पर बहुत ही कम पलायन करती है।
मौन पालन का महत्व
मधुमक्खी पालन कृषि का एक महत्वपूर्ण अंग है इससे शहद व मोम तो प्राप्त होता है साथ ही साथ मधुमक्खियों के माध्यम से बेहतर पर-परागण के कारण फसलों की पैदावार में 20 से 100 प्रतिशत तक की वृ़िद्ध आंकी गयी है। मधुमक्खियों के पालने से ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकेंगे। मधुमक्खियों के उत्पाद जैसे शहद का प्रयोग औषधीय गुणों के अलावा टूथपेस्ट, शैम्पू तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधन का भी उत्पादन किया जाता है जबकि मोम से पालिश, मोमबत्ती, कार्बन कागज, सौन्दर्य प्रसाधन, क्रीम, दवाईयां व बिजली के सामान बनाने के काम आता है। उपरोक्त के अलावा मधुमक्खियों के शरीर से एक दवा बनाई जाती है जिसका उपयोग डिप्थिरिया रोगियों के लिए किया जाता है जबकि इसके डंक से प्राप्त द्रव का प्रयोग गठिया जैसी बीमारी को ठीक करने के लिए तथा कोलेस्ट्राल को कम करने के लिए किया जाता है। प्रतिवर्ष एक मधुमक्खी की कालोनी से लगभग 1500-2000 रू. का शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है।
भारत में मधुमक्खियों की प्रजातियां
मधुमक्खियों को प्रचीनकाल से ही संसार के सभी भागों में पाला जाता रहा है। भारतवर्ष में मधुमक्खियों की चार प्रजातियां पाई जाती हैं जिसमें पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी, एपिस डारसाटा भारतीय मधुमक्खी एपिस इंडिका, छोटी मौन एपिस फ्लोरिया व इटैलियन मधमक्खी एपिस मेलीफेरा प्रमुख हैं। इटैलियन मधमक्खी एपिस मेलीफेरा प्रजाती को यूरोप से 1962 में मंगाकर वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से पाला गया तथा इसके पालन व लोकप्रियता में आशातीत वृद्धि हुई है।
पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी: इस प्रजाति की मधुमक्खी स्वभाव से बहुत ही खतरनाक होती है तथा ये अपना छत्ता काफी ऊंचाई पर पेड़ों या पहाड़ों की गुफाओं में बनाते हंै जिसके कारण इसे राक बी की संज्ञा दी गई है। इनके छत्ते का आकार लगभग 5-7 फीट लम्बा व 2-4 फीट चौड़ा होता है। इसके एक छत्ते से लगभग 30-35 किग्रा शहद प्राप्त हो जाता हैै। इससे उत्पादित शहद में नमी की मात्रा कुछ ज्यादे ही होती है। इस प्रजाति की मधुमक्खी को इसके स्वभाव व रहन-सहन के कारण पाला नहीं जा सकता।
भारतीय मौना: इस प्रजाति की मधुमक्खी को भारतीय मौना भी कहते हैं जो कि आकार में पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी से छोटी तथा स्वभाव में भी शान्त होती है जिसके कारण इस प्रजाति की मधुमक्खी को आसानी से पाला जा रहा है। भारतीय मौना अपना छत्ता घरों की दीवारों, पुराने मकानों की छतों व पेड़ों की शाखाओं पर बनाते हैं। इसके एक छत्ते से लगभग 3-3.5 किग्रा शहद प्राप्त हो जाता है। इसके शान्त स्वभाव व रहन-सहन के कारण आसानी से मौन गृहों में पाला जा रहा है।
छोटी मौना: इस प्रजाति की मधुमक्खी आकार में अन्य प्रजाति की मधुमक्खियों से काफी छोटी होती है तथा स्वभाव में भी काफी शान्त होती है इस प्रजाति की मधुमक्खियों में डंक नहीं होता है। को आसानी से पाला जा रहा है। छोटी मौना अपना छत्ता घरों की दीवारों, व पेड़ों की खोखले तनों में बनाते हैं। इसके छत्ते काफी छोटे होते हैं जिससे लगभग 0.5 किग्रा शहद प्राप्त हो जाता है। इसके शहद कम देने के कारण नहीं पाला जाता है। इस प्रजाति की मधुमक्खियां सूखी जलवायु को ज्यादा पसंद करती है।
इटैलियन मधमक्खी: इस प्रजाति की मधुमक्खी आकार में एपिस डारसाटा प्रजाति की मधुमक्खी से छोटी होती है तथा भारतीय मौना से बड़ी होती है तथा इसका स्वभाव में भी शान्त होता है तथा ये भारतीय मौना से लगभग 9 से 10 गुना अधिक शहद पैदा करती है जिसके कारण इस प्रजाति की मधुमक्खी को पालने की मांग बढ़ी है और इसके इसी खूबी के कारण अधिकाधिक पाला जा रहा है। इसके एक छत्ते से लगभग 45-181 किग्रा तक शहद प्राप्त हो जाता है। इसके शान्त स्वभाव व रहन-सहन के कारण आसानी से मौन गृहों में पाला जा रहा है।
मधुमक्खी पालन: कृत्रिम रूप से मधुमक्खियों के पालन को एपीकल्चर या बीकीपिएग कहते हैं। पुराने समय में लोग इन मधुमक्खियों को लकड़ी के लम्बे व खोखले ले व लकड़ी के सन्दूक या घड़ों का प्रयोग करते थे लेकिन ये सभी विधियां संतोषप्रद नहीं थीं। इसके साथ ही साथ शहद निकालने की विधि भी अत्यधिक दूषित थी जिसमे पुरे छत्ते को निचोड़ कर शहद निकाला जाता था जिससे छत्ता अथवा अण्डे व बच्चे सभी नष्ट हो जाते थे तथा उनके अवशेष शहद में रह जाते थे जिसके कारण उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होती थी। उपरोक्त कमियों को आधुनिक मौन पेटियों को लाकर दूर किया गया है। आधुनिक मौन पेटियां लकड़ी के सन्दूक के समान होती हैं जिनमें दो खण्ड होते हैं जिसके चौथाई भाग को शहद भाग तथा दूसरे खण्ड के तीन चौथाई भाग को शिशू भाग कहते हैं। दोनों खण्डों के बीच में एक जाली होती है जिससे श्रमिक एक खण्ड से दूसरे खण्ड में आसानी से आ जा सकते हैं जबकि रानी न जा सके। रानी को अलग इसलिए रखते हैं क्योंकि वह ऊपर बने खण्डों में अण्डे न दे सकें। लकड़ी का यह सन्दूक चारों ओर से बन्द रहता है केवल निचले तल पर एक छोटा छेद होता है जिससे एक बार में केवल एक मक्खी ही अन्दर या बाहर आ जा सके। मौन छत्तों के समान मौनान्तर होता है जिससे मधुमक्खियां उनके बीच में आसानी से घूम या काम कर सकती हैं। मधुमक्खियों को पालने में निम्नलिखित औजार या यंत्र प्रयोग में आते हैं जैसे: आधुनिक मौन पेटियां, छत्ताघर, रानी रोकपट, पकाब, दस्ताना, धुआंकार, नरपाश, खुरपी, मोम हटाने वाली छुरी, विभाजक पट, मधुमक्खी पकडऩे का थैला, मधु निष्कासन यंत्र, मधुमक्खी जाली, भोजन पात्र वाहन संदूक इत्यादि। गर्मियों के दिनों के लिए मौन छत्तों के पास पानी व गुड़ या चीनी का घोल बनाकर रखें तथा ये ध्यान रहे कि आधुनिक मौन पेटियों के दोनों तरफ पेड़ हों जो गर्मियों में लू तथा सर्दियों में ठण्डी हवा को रोक सकें। विभिन्न मौसम में स्थान का चुनाव मधुमक्खियों को पालते समय मौसम का विशेष ध्यान रखें अन्यथा मधुमक्खियां मौसम प्रतिकूल होने पर दूसरे जगह पलायन कर जाती हैं। गर्मियों के मौसम में मधुपेटिकाओं को किसी छायादार स्थान पर ही रखें तथा मधुपेटिकाओं के आस-पास पानी से भरे वर्तन अवश्य रखें जिससे उत्पादन पर बुरा प्रभाव न पड़े। जाड़ों के मौसम में मधुपेटिकाओं को ऐसे स्थान पर रखें जहां सूर्य की रोशनी ज्यादा पड़ती हो। गर्मियों के मौसम में मधुमक्खियों को गर्म हवा व लू से बचाने के लिए बाड़ का प्रबंध हो जिससे गर्म हवा मधुपेटिकाओं के अन्दर प्रवेश न कर सके। बसन्त ऋतु मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त व सबसे अच्छा समय माना जाता हैं क्योंकि इस समय उपयुक्त तापमान व भोजन की पर्याप्त उपलब्धता होती है।
मौनचर: मधुमक्खियां जिन पेड़-पौधों से मकरन्द व पराग इका करती हैं उसे मौनचर कहते हैं। जिनमें मुख्यरूप से सरसों वर्गीय फसल, मूली, गाजर, धनिया, सूरजमुखी एवं प्याज अच्छे किस्म के मौनचर हैं इसके अलावा कई प्रकार के फूल एवं फल की प्रजातियां भी अच्छे मौनचर का कार्य करती हैं।
भोजन श्रोत से दूरी: शहद उत्पादन का सीधा सम्बंध मधुपेटिकाओं का भोजन श्रोत के दूरी से है यदि भोजन श्रोत मधुपेटिकाओं से नजदीक है तो मधुमक्खियों को पराग इक_ा करने में कम समय व ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है जबकि दूरी अधिक होने पर समय व ऊर्जा की अधिक आवश्यकता पड़ती है जिसका सीधा प्रभाव शहद उत्पादन पर पड़ता है तथा कम उत्पादन प्राप्त होता है। इसलिए यह कोशिश यह करें कि मधुपेटिकाओं को भोजन श्रोत से कम दूरी पर रखें।
शहद निर्माण प्रक्रिया: मधुमक्खियां हजारों की संख्या में झुण्ड या छत्ता बनाकर रहती हैं जिसके कारण इन्हे सामाजिक कीट कहा जाता है। जिसमें एक रानी 200-300 नर तथा 28-50 हजार श्रमिक मक्ख्यिां होती हैं। शहद एकत्र करने के लिए मधुमक्खियां अपने संूड व जिह्वा की सहायता से फूलों का मकरन्द चूसकर क्राप में भर लेती हैं। मकरन्द चूसते समय इसमे लार ग्रन्थियों से लार निकल कर मिल जाता है लार मिलने के बाद मधुमक्खियां इस रस को जिह्वा की सहायता से आगे पीछे करती हैं जिसके कारण रस गाढ़ा हो जाता है। छत्ते में पहुंचने के बाद मधुमक्खियां क्राप से इस रस को उगलकर मधुकोष्ठों में भर देती हैं इसको कच्चा मधु भी कहते हैं। क्योंकि इसमें पानी की मात्रा अधिक होती है इस पानी को सुखाने के लिए श्रमिक मधुमक्खियां काफी तेजी से अपने पंखें की सहायता से हवा करती हैं। जब मधु पक जाता है तब मधुमक्खियां मधुकोष्ठों के मुंह को मोम से बन्द कर देती हैं। लगभग 1 किग्रा शहद के लिए मधुमक्खियों को रस व पराग प्राप्त करने के लिए लगभग 10 लाख चक्कर लगाने पड़ते हैं। जबकि 1 किग्रा मोम बनाने के लिए लगभग 10 किग्रा शहद की खपत होती है।
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