Horticulture (उद्यानिकी)

अदरक लगायें भरपूर लाभ कमायें

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अदरक लगायें भरपूर लाभ कमायें

अदरक (जिंजीबर ओफिशनेल रोस्क) कुल- जिंजिबिरेंसिया का प्रकन्द मुख्यत: मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। अदरक का हमारे दैनिक आहार एवं स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है। अदरक का उपयोग मसालों, दवाइयों चटनी, अचार, मुरब्बा, सब्जी एवं जल जीरा आदि रूपों में किया जाता है। यह कई प्रकार के खाद्य पदार्थो एवं पेय पदार्थो को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने में उपयोग किया गया जाता है। इसमें जिन्जरोल नामक तीखा गंधयुक्त पदार्थ होता है। जो कि गर्म, पाचक, उत्तेजक, रूचिकर, क्षुधाबर्धक, कृमिनाशक होता है। इसके 100 ग्राम खाने योग्य भाग में निम्नलिखित पोषक तत्व पाये जाते हैै, जो इस प्रकार है।

नमी 80.9 ग्राम, खनिज- लवण 1.2 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट्स 12.3 ग्राम, प्रोटीन 2.3 ग्राम, कैल्सियम 20.0 मिली ग्राम, लोहा 3.5 मिली ग्राम, रिवोफ्लेविन 0.03 मिली ग्राम, विटामिन 6.0 मिली ग्राम, ऊर्जा 67.0 कि. कैलोरी फास्फोरस 60.0 मिली ग्राम, केरोटीन 40.0 माइक्रोग्राम, नियॉसिन 0.6 ग्राम पाया जाता है। सूखी अदरक सोंठ के रूप में प्रयुक्त की जाती है। इसके अलावा अदरक के रस एवं तेल का उपयोग आयुर्वेदिक औषधि के रूप में ग्रामीण अंचलों में सर्वविदित है। अदरक किसानों के लिये आय का एक अच्छा स्त्रोत है।

जलवायु:- अदरक वर्षात की फसल है, और मुख्यतया प्राकृतिक वर्षा पर ही निर्भर रहती है, इसकी खेती 150 से 200 से.मी. (60से 80 इन्च) वर्षा वाले इलाकों में की जाती है। अदरक की खेती गर्म और नमीयुक्त जलवायु में अच्छी तरह की जा सकती है। इस की खेती समुद्र तट से 1500 मीटर तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। अदरक की खेती वर्षा आधारित और सिंचाई करके भी की जा सकती है। इस फसल की सफल खेती के लिए बुआई से अंकुरण तक मध्यम वर्षा, वृद्धि तक अधिक वर्षा और खुदाई से लगभग 1 महिना पहले शुष्क वातावरण अति आवश्यक है। इसकी खेती बालुई,चिकनी,लाल या लेटेराइट मिट्टी में उत्तम होती है। एक ही खेत में अदरक की फसल को लगातार नहीं बोना चाहिए।

भूमि एवं भूमि की तैयारी:- अदरक की खेती सभी प्रकार की जीवॉंन्श युक्त एवं उचित जल निकास वाली भूमियों में की जा सकती है, किन्तु हल्की रेतीली अथवा दोमट जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो इसकी खेती के लिये उपयुक्त होती है। भारी भूमियों में गाँठे (पंजा) की तथा फैलाव ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसकी खेती के लिये भूमि की 4-5 जुताई करके भुरभुरी एवं समतल बना लेना चाहिए। जहां जल निकास की सुविधा न हो वहां 1-2 मीटर चौड़ी, 2-3 इन्च ऊँची उठी हुई, तथा 3-4 मीटर लम्बी क्यारियां बनाकर बोनी करना चाहिए।

उन्नत किस्में:- भारत एवं विदेशें में फसल गुणवत्ता की दृष्टि से विभिन्न किस्में उगाई जाती है। वाणिज्यिक तौर पर कच्चा अदरक, तेलीरोल (ओलेरियोसिन) व सोंठ के लिये सिफारिष की गई किस्में इस प्रकार हैं:-

  • कच्चे अदरक के लिये -रियो-डि-जनोरियो, चाइना, वायनाड लोकल, टफनगिया।
  • तेलीराल के लिये- रियो-डि-जनोरियो।
  • सोंठ के लिये- मारन, वायनाड मेनन थोडे, मानन्तवाटी, वल्लुनाटु, अरनाडु।

खाद की मात्रा:- अदरक को बहुत ही अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी खेती अन्य कम पोषक तत्व चाहने वाली फसलों के फसल-चक्र में होना चाहिए। अदरक को चूना एवं फास्फोरस की आवश्यकता होती है। बुवाई के पूर्व जमीन तैयार करते समय 80-100 गाड़ी (25.30टन) प्रति हेक्टर गोबर की सड़ी कम्पोस्ट खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला लेना चाहिये, इसके अलावा बोने के पहले 100 से 120 किलो नत्रजन 50 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो पोटाश प्रति हैेक्टर डालना चाहिए। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा बोनी के समय दें। शेष नत्रजन की आधी मात्रा 2-3 बार में बुवाई के दो माह बाद डालना चाहिए।

बीज की मात्रा एवं बोने का समय: अदरक की बोनी केेरल में मई, मध्यप्रदेष के टीकमगढ़ में मध्य जून एवं उत्तरप्रदेष तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई के प्रथम एवं द्वितीय सप्ताह तक की जाती है। बुवाई का समय इस प्रकार चुनना चाहिए। ताकि वर्षा शुरू होने के पहले अदरक के पौधे दो सप्ताह के हो जायें। देर से बोई गई अदरक की पैदावार बहुत कम होती है। बीज बोने के लिये प्राय: सुबह या शाम का समय उपयुक्त रहता है। क्योंकि इस समय धूप कम रहती है।

बीज का चुनाव:- अदरक बोने के लिए स्वस्थ्य फसल के बीज लेकर ही बोनी करनी चाहिए, अदरक की स्थानीय जातियों में कुछ आकार प्रकार एवं उपज में अंतर देखा गया है। चाइना और रियो- डि-जेनेरियो ने केरल में दो तीन गुना अधिक उपज दी। अदरक की अच्छी किस्म की पहचान उसकी गंध, तीखापन एवं रेशों की मात्रा द्वारा की जाती है।

बीज की मात्रा:– अदरक बोने के लिए अदरक की पिछली फसल के कंद उपयोग में लाये जाते है। बड़े-बड़े अदरक के पजों को इस तरह तोड़ लेते है, कि उसमें कम से कम 2-3 अंकुर रहें। एक हैक्टर बोनी करने के लिए लगभग 12-15 क्विंटल कंद बीज की आवश्यकता पड़ती है, अंतर्वर्तीय फसलों में बीज की मात्रा कम लगती है।

बीज उपचार एवं बोने का तरीका:- बीज के लिये अदरक का रोग मुक्त कंद का चयन करें। बोने के पूर्व कंदों को बावीस्टीन 3 ग्राम प्रतिलीटर अथवा डायथेन एम-45, 5 ग्राम प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर कंद को कम से कम 30मिनिट तक डुबाकर उपचारित करें।उपचारित बीज की बोनी कतारों में करना चाहिये। इसके लिये 30-40 से.मी. कतार से कतार एवं 20-25 से. मी. पौधे से पौधे की दूरी रखी जाती है। बीज कंदों को लगभग 4-5 से.मी. गहराई में बोने के पश्चात् हल्की मिट्टी या गोबर की खाद की पर्त से ढक दें।

मलचिंग:- बोनी के तुरंत बाद क्यारियों को ऊपर से हरी पलास या अन्य वृक्षों की हरी पंित्तयों, पुआल या भूसा आदि से ढँक देना चाहिये। इससे भूमि नमी काफी समय तक बनी रहती है। अंकुरण शीघ्र होता है। प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से फसल का बचाव हो जाता है। बर्षात की तेज बूंदों से मिट्टी बैठ नहीं पाती है। जिससे कंदेां का प्रसार ठीक से होता है। सिंचाई कम पड़ती है, एवं भूमि वायु संचार होता है। यदि एक माह के अंतर से दो बार ढंकाई करें तो अधिक अच्छा है, इससे भूमि में जैविक खाद की पूर्ति भी होती है।

निंदाई, गुड़ाई एवं सिंचाई:- अदरक का अंकुरण बोने के लगभग 15-20 दिन के बाद होता है, क्योंकि अदरक की फसल में खाद की मात्रा काफी दी जाती है। इसलिये खरपतवार (नींदा) भी बहुत होता है। किन्तु पत्तियों से ढंके रहने के कारण लगभग 1 माह तक फसल नींदा मुक्त रहती है। इसके बाद नींदा आते है। अत: अदरक की बोनी के लगभग 40-45 दिन के बाद की अवस्था में हर माह फसल की निंदाई-गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ाना चाहिये। वर्षात के बाद शीतकाल आने पर प्रति 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए। मिट्टी चढ़ाते समय मुख्य तने के बाजू से निकलने वाले अंकुरों को तोड़कर निकालने के बाद मिट्टी चढ़ाना चाहिए। कुल 2-3 निंदाईं-गुड़ाई की आवष्यकता पड़ती है। वर्षा के न होने पर प्रति सप्ताह सिंचाई करना चाहिए, लेकिन ध्यान रहे कि खेत में सिंचाई खेत में किसी भी स्थान में पानी न भरा रहे, इसके लिए आवश्यक है, कि जमीन समतल एवं उचित जल निकास होनी चाहिए।

खुदाई एवं उपज:- फसल लगभग 8-9 माह में परिपक्व हो जाती है। खुदाई के बाद कंदों की मिट्टी झड़ाकर पानी से अच्छी तरह धो लिया जाता है, और हवा में थोड़ी देर सुखाकर बाजार भेजा जाता है। सोंठ बनाने के लिए सामान्य खुदाई से 15-30 दिन पूर्व खुदाई की जाती है। खुदाई देरी से करने पर रेशों की मात्रा बढ़ जाती है, भाव कम हों तो एक वर्ष तक औसत पैदावार 150 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है, इससे 30 से 40 क्विंटल सोंठ बनाई जाती है।

पौध संरक्षण:-

  • हानिकारक कीट:-इस फसल में तना छेदक एवं थ्रिप्स कीट से नुकसान होता है। तना छेदक कीट कंदों में छेद करके भारी नुकसान पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिये ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. (मेटासिस्टॉक्स) 2मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • बीमारियाँ:-इस फसल को सर्वाधिक नुकसान मृदू सडऩ एवं कंद सडऩ रोग से होता है। रोग फफूंदी द्वारा उत्पन्न होते है।रोगी पौधा निचली सतह से पीला पडऩे लगता है। और धीरे-धीरे पूरा पौधा रोग ग्रस्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त इस फसल का पत्तियों का धब्बा रोग से भी नुकसान होता है। पत्तियों पर अण्डाकार लम्बे धब्बे पड़ जाते है। तथा पत्तियां सूख जाती है।

नियंत्रण के लिये आवश्यक है, कि उचित जल निकास वाली भूमि का चयन करें। बीज कंदों को फफूंद नाशक दवा से उपचारित करके बोनी करें। रोगी पौधे को खेत से उखाड़ कर नष्ट कर दें। रोग का प्रभाव दिखतेे ही ब्लाइटॉक्स 50 या ब्लूकापर या कार्बेन्डाजिम (0.2प्रतिशत )नामक फफूंद नाशक दवा में से किसी एक दवा की 2-2.5 ग्राम प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 12-15 के अंतर पर पुन: छिड़काव करें।

कन्द को धोने के बाद एक सप्ताह तक सूर्य के प्रकाश में सुखा लेते हैं। अदरक की उपज, प्रजाति एवं क्षेत्र आधारित होती हैं जहाँ पर फसल उगाई जाती है। नमकिला अदरक दूसरों की अपेक्षा कम रेशे वाली होती है । नरम प्रकंदों को अच्छी तरह साफ करके 1प्रतिशत सिट्रिक एसिड तथा 30 प्रतिशत नमक के घोल में डूबा कर रख देते हैं । चौदह दिन बाद यह उपयोग के लिए तैयार हो जाती है। इसका भंडारण ठंडी जगह पर करना चाहिए ।

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