मूंग में खरपतवार प्रबंधन
लेखक: विकास सिंह, मुनि प्रताप साहू, व्ही.के. चौधरी, जे. एस. मिश्र, भा.कृ.अनु.प.- खरपरवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर (म.प्र.)
10 अप्रैल 2025, भोपाल: मूंग में खरपतवार प्रबंधन – दलहनी फसलों में मूंग एक महत्वपूर्ण फसल है इसके दानों में लगभग 23-24 प्रतिशत प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन, और विटामिन की प्रचुर मात्रा होती है इसका उपयोग दाल के अलावा नमकीन, पापड़ एवं मिठाइयाँ बनाने में भी होता है। मूंग को सभी मौसमों में बोया जा सकता है लेकिन वर्तमान समय में किसानों का रुझान मूंग की ग्रीष्मकालीन खेती के प्रति बढ़ा रहा है। भाकृअनुप- भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के अनुसार वर्ष 2022 में इसकी खेती लगभग 5.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में की गई जिससे 3.17 मिलियन टन उपज एवं 570 किलोग्राम/हेक्टेयर उत्पादकता प्राप्त हुई। मूंग में कीट-व्याधियों, रोगों व खरपतवारों आदि से उपज में काफी हानि होती है जिसमे सबसे ज्यादा हानि खरपतवार पहुंचाते हैं। इनके कारण फसलों और खरपतवारों के मध्य पोषक तत्वों, पानी, स्थान, प्रकाश आदि के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है।
मूंग में खरपतवारों से होने वाली हानियाँ
द्य मूंग में खरपतवारों से बहुत अधिक नुकसान होता है। ये भूमि में उपस्थित पोषक तत्वों को ग्रहण करने के साथ-साथ अन्य फसल वृद्धि कारकों जैसे पानी, हवा, जगह, प्रकाश आदि के लिए फसल से प्रतिस्पर्धा भी करता है जिससे फसल वृद्धि और उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित होती है।
द्य फसलों में लगने वाले रोगों के कारक और कीट-व्याधियो आदि को प्रतिकूल तथा अनुकूल परिस्थितियों में खरपतवार आश्रय देते है। जिससे फसलों में रोग व कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है जो उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करता है।
द्य फसल बीज के साथ खरपतवार बीज मिलकर उनकी गुणवत्ता एवं बाजार मूल्य/भाव को कम कर देते है।
खरपतवार नियंत्रण का उचित समय
फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था मूंग में बुवाई के 30 से 35 दिनों तक रहती है । यदि इस समय खरपतवार प्रबंधन नही किया जाए उस स्थिति में फसल उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। इसलिये अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मूंग को इस अवधि तक खरपतवार मुक्त रखना चाहिए, इसके लिए खरपतवार नियंत्रण की विभिन्न विधियों में से किसी भी विधि का प्रयोग कर खरपतवार नियंत्रित किये जा सकते है। इसलिए खरपतवार नियंत्रण की प्रभावी विधियों की जानकारी होना बहुत जरुरी है।
खरपतवार नियंत्रण के लिये यह जानकारी होनी चाहिये कि फसलों की किस अवस्था में खरपतवार सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं ताकि उस अवस्था में फसली खेतों को खरपतवार मुक्त रखा जाये और मुख्य फसल को सम्पूर्ण विकास के लिए पूर्ण अवसर प्राप्त हो सके है एवं अधिक फसल पैदावार से किसान को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ प्राप्त हो।
मूंग में उगने वाले मुख्य खरपतवार
मूंग में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे: इकाइनोक्लोआ कोलोना (संवा), डायकैथियम एनुलैटम (मार्वल घास), पास्पेलिडीयम फ्लेविडम (येलो वाटरक्राउन घास), डाईनेब्रा रेट्रोफ्लेक्सा (वाईपर घास), इलुसिन इंडिका (इंडियन गूस ग्रास), डिजीटेरिया सैन्ग्युनेलिस (क्रेब ग्रास) एवं चौड़ी वाले अल्टरनेनथेरा सेसिलिस (रेशमकांटा), युफोर्बिया जेनीकुलाटा (दूधी), कान्वोल्वुलस अर्वेंसिस (हिरनखुरी), फाईसेलिस मिनिमा (ग्राउंड चेरी) तथा साइप्रस रोटंडस (मोथा) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत में उगते है।
खरपतवार नियंत्रण की विधियाँ
नियंत्रण विधियों में,खरपतवारों को पूर्ण रूप से नष्ट न कर उनकी वृद्धि व विकास को रोकने या कम करने का प्रयास किया जाता है। फसल की प्रारंभिक वृद्धि धीमी होने के कारण खरपतवार को बढ़वार के लिए पर्याप्त अवसर मिल जाता है जो फसल वृद्धि और विकास को बुरी तरह प्रभावित करते हैं । खरपतवार को मुख्यत: चार तरीकों को अपनाकर नियंत्रित किया जा सकता है-
- सस्य विधि
शुद्ध बीजों का प्रयोग : बुवाई के समय शुद्ध एवं साफ बीज, जिसमे खरपतवार के बीज ना हो का प्रयोग खरपतवार रोकथाम के लिए बहुत ही कारगर है।
पौधों की इष्टतम आबादी: पौधों की इष्टतम आबादी खरपतवारों से बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकती है और खरपतवारों को उगने व बढऩे के लिए जगह नहीं छोड़ती है। इष्टतम फसल आबादी प्राप्त करने के लिए उचित बीज का चयन,सही विधि से बुआई,पर्याप्त बीज दर,मिट्टी जनित कीटों और बीमारियों से सुरक्षा आदि जैसी प्रथाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं।
स्टेल सीड बेड : स्टेल सीड बेड एक अपेक्षाकृत सरल खरपतवार प्रबंधन रणनीति है इस विधि में खेत को तैयार कर सिंचाई कर के छोड़ दिया जाता है तथा खरपतवारों को उगने दिया जाता है । 7-10 दिन बाद इन्हें खेत में हल्की जुताई के माध्यम से मिला दिया जाता है, जिससे खरपतवार की समस्या को कम किया जा सकता है।
बुआई के समय में बदलाव : खरपतवारों के उगने का एक निश्चित समय होता है। यदि हम बुआई के समय में परिवर्तन कर दें तो खरपतवार की समस्या को कम किया जा सकता है।
फसल चक्र : प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में न उगाया जाए इस क्रम में फसल चक्र को सम्मलित करने से मृदा सुधार,खरपतवारों और कीटों के प्रकोप में कमी के साथ साथ फसल उत्पादन में वृद्धि देखी गई है।
अंतर फसल (इंटरक्रॉप) : इस विधि में मुख्य फसल के बीज खाली स्थान में अंतर फसल फसल लगाईं जाती है जिससे की खरपतवारों के वृद्धि व विकास के लिए स्थान शेष नहीं रह जाता जिससे खरपतवार सघनता में कमी आ जाती है ।
मृदा आच्छादन (मल्चिंग): मल्चिंग के लिए सूखे चारा या फसल अवशेषों को आवश्यकतानुसार छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर दो कतारों के बीच फसल बुआई के पश्चात फैला दिया जाता है, जिससे खरपतवारों के बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं। आच्छादन से मृदा में नमी अधिक समय तक बनी रहती है और मृदा तापमान नियंत्रित रहता है तथा साथ-साथ खरपतवारों के अंकुरण को भी कम कर देता है जिससे खरपतवारों का प्रकोप कम होता हैं।
2. यांत्रिक विधि
यह विधि खरपतवार प्रबंधन की एक उत्तम विधि है। इस विधि में प्रति इकाई श्रम, समय व धन की बचत होती है। यांत्रिक विधियों का उपयोग कर ऐसे फसलों में भी खरपतवार प्रबंधन किया जा सकता है, जहाँ रसायनों का इस्तेमाल पूर्णतया प्रतिबंधित होता है जैसे- जैविक कृषि, इस दशा में यांत्रिक विधियों द्वारा खरपतवार प्रबंधन अति महत्वपूर्ण हो जाता है। यह विधि आज भी खरपतवार प्रबंधन की एक उत्तम व सर्वाधिक फसल उपज प्रदान करने वाली विधि है। विभिन्न यांत्रिक विधियाँ जिनका प्रयोग विभिन्न प्रकार के खरपतवार नियंत्रण हेतू किया जाता है, वह निम्नलिखित हैं-
हाथ से निराई-गुड़ाई: सरल और प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 15-45 दिन बाद खुरपी की सहायता से हाथ से निराई-गुड़ाई की जाती है। यह फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से उत्तम समय माना जाता है। इस विधि से खरपतवार नियंत्रण के साथ मृदा में वायु के संचार में वृद्धि होती है जिससे पौधों के वृद्धि व विकास के लिए अनुकूल दशा निर्मित होती है तथा उपज अच्छी प्राप्त होती है।
हस्त चलित हो द्वारा निराई: यह भी खरपतवार प्रबन्धन की एक उत्तम विधि है, इस विधि का प्रयोग कतार में बोई गई फसलों में आसानी से किया जाता है। इसको दो कतारों के बीच में चलाया जाता है तथा कतारों के बीच उगे खरपतवार मृदा के 1-2 सेमी गहराई से काट दिए जाते हैं। इस विधि द्वारा हाथ से निदाई विधि की तुलना में कम समय व श्रम में अधिक क्षेत्र के खरपतवारों को आसानी से हटाया जा सकता है।
खुदाई : इस विधि में ऐसे खरपतवार जिनका प्रसार भूमिगत कंद,प्रकंद, जड़,तना आदि से होता है इनको समूल खोदकर बाहर निकाला जाता है। बहुवर्षीय खरपतवार जैसे कांस, दूब घास, मोथा, आदि के नियंत्रण हेतु यह उत्तम विधि है। इसके प्रयोग से बहुवर्षीय खरपतवारों का सम्पूर्ण नियंत्रण संभव है। इस विधि में बहुवर्षीय खरपतवारों को जमीन से निकालने हेतु कुदाली या गैती का इस्तेमाल किया जाता है।
खरपतवार नाशी | रसायन मात्रा (ग्राम) | व्यापारिक मात्रा सक्रिय तत्व /हे. | प्रयोग का समय | प्रयोग | |
पेंडीमेथालिन 30 ईसी | 1000 | 3.3 ली./हे. | अंकुरण के पूर्व(0-3 दिन) बुवाई के पश्चात (18 -22 दिन) | आवश्यक मात्रा को अंकुरण पूर्व 500 लीटर पानी तथा अंकुरण पश्चात् 375 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करें | |
पेंडीमेथालिन 37.8 सीएस | 678 | 1.7 ली./हे | |||
पेंडीमेथालिन + इमाजेथापायर | 900-100 | 2.81 – 3.13 ली./हे. | |||
इमाजेथायपर | 80-100 | 0.8-1.00 ली./हे. | |||
क्विज़ालोफ़ॉप | 50-60 | 1.00-1.20 ली./हे. | |||
प्रोपाक्विजाफोप | 75 | 0.75 ली./हे. | |||
प्रोपक्विज़ाफॉप + इमाजेथायपर | 125 | 2.0 ली./हे. | |||
इमाजेथायपर + इमैजामोक्स | 70 | 0.10 ली./हे | |||
सोडियम-एसिफ्लुओरफेन + क्लोडिनाफॉप | 245 | 1.0 ली./हे. |
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