पूसा माइकोराइजा: पौधों की जड़ों का प्राकृतिक सहयोगी
16 दिसंबर 2025, नई दिल्ली: पूसा माइकोराइजा: पौधों की जड़ों का प्राकृतिक सहयोगी – पूसा संस्थान द्वारा विकसित पूसा माइकोराइजा बहुत प्रभावी जैव उर्वरक है। यह पौधों की जड़ों और कवक के बीच सहजीवी संबंध पर आधारित है। माइकोराइजा में पौधा और कवक एक-दूसरे से लाभ लेते हैं। पौधा प्रकाश संश्लेषण( यानि सूर्य की रौशनी से बनी एनर्जी) से बने कार्बन यौगिक कवक को देता है। इसके बाद कवक मृदा से पानी और पोषक तत्वों को पौधे की जड़ों तक पहुंचाता है।
यह कवक जड़ और मिट्टी के बीच एक प्राकृतिक पुल की तरह काम करता है। इससे पोषक तत्वों का लाभ पौधों में कई गुना बढ़ जाता है। जड़ों के भीतर बनने वाली आर्बस्क्यूल संरचना के जरिए से यह आदान-प्रदान होता है। इससे पौधों की जड़ प्रणाली मजबूत और बड़ी होती है।
माइकोराइजा का वैज्ञानिक महत्व
रिसर्च के अनुसार माइकोराइजा उतना ही पुराना है जितना स्थलीय पौधों का विकास। यह लगभग 75 प्रतिशत पौधों में आसानी से अपनी मोजुदगी बना लेता है। हालांकि सरसों, फूलगोभी और पत्ता गोभी जैसी परिवार की फसलों में यह प्रभावी नहीं होता।
पूसा माइकोराइजा का असर सबसे पहले जड़ों पर दिखाई देता है। इससे जड़ों का सतही क्षेत्र और आयतन बढ़ता है। इसका सकारात्मक प्रभाव बाद में पूरे पौधे के विकास और उपज पर पड़ता है।
उपयोग की विधि और उपलब्धता
खेतों में बीज बुवाई के समय इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। एक तो बुवाई के समय ही बीज के साथ ही माइकोराइजा भी मिट्टी में पहुँच जाए। जिससे जड़ निकलते ही कवक सक्रिय हो सके। अधिकतर सामान्य फसलों के लिए 4 से 5 किलो पूसा माइकोराइजा प्रति एकड़ पर्याप्त होता है। गमले या बागवानी पौधों में 30 से 50 ग्राम प्रति पौधा जड़ों के पास डालना चाहिए।
पूसा माइकोराइजा 1, 5 और 10 किलो की पैकिंग में उपलब्ध है और इसे सीधे पूसा संस्थान के सूक्ष्म जीव विज्ञान संभाग से या डाक द्वारा मंगवाया जा सकता है। सही तरीके से उपयोग करने पर यह न केवल रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करता है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण दोनों के लिए दीर्घकालिक लाभ प्रदान करता है।
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