कम बारिश में भी मुनाफा: फसल विविधकरण से बदलें अपनी खेती की तकदीर
12 जुलाई 2025, नई दिल्ली: कम बारिश में भी मुनाफा: फसल विविधकरण से बदलें अपनी खेती की तकदीर – आजकल देश भर के किसान भाई फसल विविधकरण यानी क्रॉप डायवर्सिफिकेशन को अपनाकर अपनी खेती को नई दिशा दे रहे हैं। यह तकनीक न सिर्फ मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खतरों से भी बचाती है। खास तौर पर उन इलाकों में जहां सालाना बारिश 50 सेंटीमीटर से कम होती है और पानी के साधन सीमित हैं, वहां यह किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। पूसा संस्थान के विशेषज्ञों की मानें तो फसल विविधकरण के जरिए फल, सब्जियां और दलहनी फसलों को शामिल करके न केवल आय बढ़ाई जा सकती है, बल्कि खेती को लंबे समय तक लाभकारी बनाया जा सकता है। तो आइए जानते हैं कि इस तकनीक में कौन-कौन सी फसलें शामिल की जा सकती हैं और कैसे ये आपकी खेती को बदल सकती हैं।
कम पानी में फलदार वृक्ष: बंजर को बनाएं हरा-भरा
जिन इलाकों में पानी की किल्लत है, वहां कम जल मांग वाले फलदार वृक्ष लगाना सबसे समझदारी भरा कदम है। पूसा संस्थान के विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि करौंदा, आंवला, फालसा, सहजन (मोरिंगा), अनार और अमरूद जैसे पेड़ इस काम के लिए बेस्ट हैं। ये पेड़ 3-4 साल में फल देना शुरू कर देते हैं और इनकी गहरी जड़ों की वजह से इन्हें कम पानी की जरूरत पड़ती है। इन्हें 4-5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, ताकि बीच की खाली जगह का भी सही इस्तेमाल हो सके। इस खाली जगह को ‘एलिज’ (alleys) कहते हैं, जहां मौसमी फसलों की बुवाई करके आप डबल फायदा उठा सकते हैं।
मौसमी फसलों का जादू: पूरक फसलें, दोगुना उत्पादन
फलदार पेड़ों के बीच की जगह को खाली छोड़ना अब पुरानी बात हो गई। इस जगह पर ऐसी फसलों का चयन करें जो पेड़ों के साथ प्रतिस्पर्धा न करें और आपकी कमाई को बढ़ाएं। ये हैं कुछ शानदार विकल्प:
दलहनी फसलें: मिट्टी की ताकत, किसान की दौलत
- मूंग: मानसून की शुरुआत में मूंग की बुवाई एकदम सटीक है। पूसा 9231, पूसा विशाल, पूसा विराट और आईपीएम 02-03 जैसी किस्में 55-70 दिनों में तैयार हो जाती हैं और प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल तक उपज देती हैं। मूंग नाइट्रोजन को मिट्टी में फिक्स करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फलदार पेड़ों की ग्रोथ भी बेहतर होती है।
- लोबिया: पूसा सुकोमल और पूसा धारानी जैसी किस्में 40-45 दिनों में हरी फलियां देना शुरू कर देती हैं। ये प्रोटीन से भरपूर होती हैं और बाजार में अच्छा भाव मिलता है। प्रति हेक्टेयर 6-7 टन हरी फलियां आसानी से मिल सकती हैं।
- ग्वार: आरजीसी 1002 और आरजीसी 1003 किस्में हरी फलियों और दानों दोनों के लिए शानदार हैं। सब्जी के तौर पर भी इस्तेमाल होने वाली ग्वार आपकी आय का मजबूत जरिया बन सकती है।
तिलहनी फसलें: तेल और सेहत का खजाना
- मूंगफली: इसकी कैनोपी ज्यादा नहीं फैलती, जिससे यह फलदार पेड़ों के साथ आसानी से उगाई जा सकती है। तेल और पोषण का बेहतरीन स्रोत।
- सोयाबीन: दलहनी होने के साथ-साथ तेल उत्पादन के लिए भी मशहूर। यह मिट्टी को पोषण देती है और पानी की बचत भी करती है।
रबी में भी कमाई का मौका
मानसून के बाद रबी का सीजन भी खाली नहीं रहना चाहिए। इस मौसम में सरसों और आलू की खेती से आपकी जेब और भरी रहेगी। पूसा सरसों 26 और पूसा सरसों 28 जैसी जल्दी पकने वाली किस्में और कुफरी चिप्स सोना जैसे आलू की वैरायटी लगाकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। विशेषज्ञों का दावा है कि इन तकनीकों से प्रति हेक्टेयर 2 से 2.5 लाख रुपये तक का शुद्ध लाभ संभव है।
नई सोच, नया मुनाफा
फसल विविधकरण सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि किसानों के लिए समृद्धि की राह है। यह मिट्टी को हरा-भरा रखता है, पानी बचाता है और जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से जंग लड़ता है। पूसा संस्थान की सलाह और उन्नत किस्मों के साथ आप भी अपनी खेती को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। तो किसानों भाइयों, अब देर न करें—फसल विविधकरण को आज ही अपनाएं और अपनी मेहनत को सुनहरा फल दें
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम, व्हाट्सएप्प)
(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)
कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
www.krishakjagat.org/kj_epaper/
कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: