फसल की खेती (Crop Cultivation)

गेहूं में पीले और भूरे रतुआ के संक्रमण का प्रबंधन कैसे करें

17 जनवरी 2025, नई दिल्ली: गेहूं में पीले और भूरे रतुआ के संक्रमण का प्रबंधन कैसे करें – गेहूं की फसल में पीला और भूरा रतुआ रोग (जिसे धारीदार और पत्ती रतुआ भी कहा जाता है) एक गंभीर समस्या है, जो पौधों की पत्तियों को प्रभावित कर उत्पादन में भारी गिरावट ला सकती है। ये फफूंदजनित रोग तेजी से फैलते हैं और अनुकूल मौसम, विशेष रूप से ठंडी और आर्द्र स्थितियों, में अधिक सक्रिय होते हैं।

इसी समस्या से निपटने के लिए ICAR-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थानकरनाल (हरियाणा) ने किसानों के लिए प्रभावी और वैज्ञानिक बचाव के तरीके सुझाए हैं। इन तरीकों में फफूंदनाशकों का सही समय पर उपयोग, फसल की नियमित निगरानी और मौसम की स्थिति के अनुसार फसल प्रबंधन शामिल हैं। ICAR के अनुसंधान और सिफारिशों से किसान न केवल अपनी फसल को रतुआ रोग से बचा सकते हैं, बल्कि उपज में सुधार भी कर सकते हैं।

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पीला रतुआ और भूरा रतुआ: रोकथाम और प्रबंधन

रतुआ रोग गेहूं की फसल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर जब मौसम इसके अनुकूल हो। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें और पीला रतुआ (धारीदार रतुआ) या भूरा रतुआ के लक्षणों की पहचान करें। यदि रतुआ का प्रकोप पाया जाए, तो निम्नलिखित उपाय अपनाएं:

संक्रमित क्षेत्र में रसायन का छिड़काव

रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी को 0.50 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। इसके विकल्प के रूप में टेबुकोनाजोल 1% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्ल्यूजी को 0.06 प्रतिशत की दर से उपयोग करें। इन फफूंदनाशकों का छिड़काव रतुआ के फैलाव को रोकने में प्रभावी होता है।

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सही मात्रा और मिश्रण विधि का पालन करें

फफूंदनाशकों का सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करें। एक लीटर पानी में 1 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल मिलाएं और इसे 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़कें। इसी तरह, टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्ल्यूजी को 0.6 प्रतिशत की दर से मिलाकर प्रति एकड़ 120 लीटर पानी में छिड़काव करें। सही मिश्रण और मात्रा का पालन करना फसल की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।

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वैकल्पिक फफूंदनाशकों का उपयोग

जिन किसानों ने पिछले वर्ष एक ही प्रकार के फफूंदनाशक का छिड़काव किया हो, उन्हें इस वर्ष किसी अन्य अनुशंसित फफूंदनाशक का उपयोग करना चाहिए। इससे रतुआ रोग के खिलाफ प्रभावी नियंत्रण सुनिश्चित होगा।

मौसम को ध्यान में रखते हुए छिड़काव करें

फसल पर फफूंदनाशकों का छिड़काव केवल तभी करें जब मौसम साफ हो। बारिश, कोहरा या ओस के दौरान छिड़काव से बचें, क्योंकि यह फफूंदनाशक के प्रभाव को कम कर सकता है।

इन सावधानियों और उपायों का पालन कर किसान अपनी फसल को रतुआ रोग से बचा सकते हैं और गेहूं की उपज को सुरक्षित बना सकते हैं।

सामान्य सुझाव

1. हाल ही में उत्तर भारत में हुई वर्षा को देखते हुए, अच्छी वृ‌द्धि सुनिश्चित करने के लिए प्रति एकड़ किलोग्राम 40 यूरिया की खुराक डालने की सलाह दी गई है।

2. जिन क्षेत्रों में वर्षा नहीं होती है, वहां फसल को पाले से बचाने के लिए, यदि मिट्टी में पर्याप्त नमी न हो तो हल्की सिंचाई की जा सकती है

3. पानी बचाने और लागत कम करने के लिए खेतों में समय पर और विवेकपूर्ण तरीके से सिंचाई करें। इस अवस्था में उचित खरपतवार प्रबंधन का पालन किया जाना चाहिए।

4. सिंचाई से पहले मौसम पर नज़र रखे और यदि बारिश का पूर्वानुमान हो तो सिंचाई न करें, ताकि अधिक पानी की स्थिति से बचा जा सके।

5. यदि फसल में पीलापन आ रहा है, तो अत्यधिक नाइट्रोजन का उपयोग न करें। (यूरिया) साथ ही, कोहरे या बादल वाली स्थिति में नाइट्रोजन के उपयोग से बचे।

6. पीले रतुआ संक्रमण के लिए फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें और रोग के लक्षण मिलने पर निकटवर्ती संस्थान, कृषि विश्ववि‌द्यालय अथवा कृषि विज्ञान केन्द्रों से संपर्क करें।

7. संरक्षण कृषि में यूरिया का छिड़काव सिंचाई से ठीक पहले की जानी चाहिए।

उर्वरक की मात्राः

बुवाई के 40-45 दिन बाद नाइट्रोजन की खुराक का प्रयोग पूरा कर लेना चाहिए। बेहतर परिणामी के लिए सिंचाई से ठीक पहले यूरिया का प्रयोग करें।

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