परंपरागत खेती छोड़ बागवानी अपनाई, अमरूद से जीवन में खुशहाली आई
26 दिसंबर 2025, (दिलीप दसौंधी, कृषक जगत, मंडलेश्वर): परंपरागत खेती छोड़ बागवानी अपनाई, अमरूद से जीवन में खुशहाली आई – खेती को घाटे का सौदा मानकर जब किसान खेत बेचने को मजबूर हो रहे हैं, ऐसे समय में कसरावद के 67 वर्षीय किसान श्री शांतिलाल पाटीदार और उनकी पत्नी भगवती पाटीदार ने बागवानी खेती अपनाकर एक मिसाल कायम की है। परंपरागत खेती से निराश होकर उन्होंने अमरूद की उन्नत किस्म अपनाई और आज वही खेती उनके लिए सम्मानजनक आजीविका का साधन बन गई है।
शांतिलाल पाटीदार बताते हैं कि वे वर्षों तक गेहूं, सोयाबीन, मक्का और कपास जैसी परंपरागत फसलों की खेती करते रहे, लेकिन मेहनत के मुकाबले लाभ बहुत कम मिलता था। आर्थिक तंगी के कारण वे अपने परिवार को मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं करा पा रहे थे और जीवन संघर्षपूर्ण बन गया था।
2021 में लिया बड़ा फैसला – साल 2021 में उन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर बागवानी की ओर रुख किया। उन्होंने ताइवान पिंक अमरूद की उन्नत किस्म को चुना और अपनी पांच बीघा जमीन पर लगभग 2500 पौधे लगाए। शुरुआत में जोखिम जरूर था, लेकिन मेहनत और सही तकनीक ने रंग दिखाया।
चार साल में बदली तस्वीर- आज चार साल बाद उनकी वही जमीन उन्हें खर्च काटकर सालाना 6 से 7 लाख रुपये की शुद्ध आमदनी दे रही है। अमरूद की यह किस्म साल में दो बार फल देती है, जिससे नियमित आय होती है और मुनाफा भी बेहतर मिलता है।
बगीचे से ही हो जाती है बिक्री– श्री पाटीदार ने बताया कि अमरूद की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि रिटेल और फुटकर व्यापारी सीधे बगीचे से फल ले जाते हैं, जबकि शेष माल मंडियों और थोक बाजारों में भेजा जाता है, जहाँ उन्हें 15 से 20 रुपये प्रति किलो का भाव आसानी से मिल जाता है। खेती से पहली बार सच्ची आमदनी पर भावुक होते हुए वे कहते हैं, “पहली बार जिंदगी में मुझे खेती से सही मायने में आमदनी होने लगी है। अब खेती बोझ नहीं, बल्कि सम्मान और आत्मनिर्भरता का साधन बन गई है।” श्री शांतिलाल पाटीदार की सफलता कहानी इस बात का प्रमाण है कि यदि किसान सही फसल, सही तकनीक और बाजार से जुड़ाव बनाए, तो खेती भी लाभ का व्यवसाय बन सकती है।
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