पूसा 701, 443, 612 और 1801: जानिए कौन सी बाजरे की किस्म आपके क्षेत्र के लिए सही है?
12 जुलाई 2025, नई दिल्ली: पूसा 701, 443, 612 और 1801: जानिए कौन सी बाजरे की किस्म आपके क्षेत्र के लिए सही है? – भारत में बाजरा एक महत्वपूर्ण खरीफ फसल है, जो खासतौर पर बारिश पर निर्भर क्षेत्रों में किसानों के लिए जीवन रेखा साबित होती है। पोषक तत्वों से भरपूर यह फसल कम वर्षा वाले इलाकों में भी शानदार उपज देती है। पूसा संस्थान ने हाल ही में बाजरे की उन्नत किस्में और आधुनिक कृषि तकनीकों को विकसित किया है, जो किसानों की आय बढ़ाने और पोषण की समस्या से निपटने में मददगार साबित हो सकती हैं। आइए, इन नई तकनीकों और किस्मों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
सही किस्म का चयन: क्षेत्र के हिसाब से उन्नत विकल्प
पूसा संस्थान के विशेषज्ञों का कहना है कि बाजरे की खेती में सफलता के लिए सही किस्म का चयन बेहद जरूरी है। देश को अलग-अलग जोन में बांटा गया है, और हर जोन के लिए खास किस्में तैयार की गई हैं।
- A1 जोन (कम वर्षा वाले क्षेत्र): राजस्थान, गुजरात और हरियाणा जैसे क्षेत्र, जहां वार्षिक वर्षा 400 मिलीमीटर से कम होती है, वहां पूसा कम्पोजिट 443 बेहतरीन विकल्प है। यह किस्म 75-76 दिनों में पक जाती है और 22-23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। साथ ही, यह डाउनी फफूंद, ब्लास्ट, रस्ट, एर्गोट और स्मट जैसी पांच प्रमुख बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है।
- A जोन (मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र): हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब जैसे सात राज्यों के लिए पूसा कम्पोजिट 701 उपयुक्त है। यह 78-79 दिनों में पकती है और 25-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। यह भी बीमारियों से लड़ने में सक्षम है।
- B जोन (अधिक वर्षा वाले क्षेत्र): महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के लिए पूसा कम्पोजिट 612 बनाई गई है। इसकी उपज 27-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह भी रोग-प्रतिरोधी है।
- बायोफोर्टिफाइड किस्म: पूसा 1801 एक खास किस्म है, जो 2024 में लॉन्च हुई। इसमें आयरन (70 पीपीएम) और जिंक (57 पीपीएम) की उच्च मात्रा है। यह 84 दिनों में पकती है और 33-34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है, जो कुपोषण से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए वरदान है।
बुवाई का सही तरीका: लाइन में बोएं, फायदा पाएं
बाजरे की बुवाई का सबसे अच्छा समय जून का आखिरी सप्ताह से जुलाई का पहला सप्ताह है। इसके लिए 1.5 से 2 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि छिटकवा विधि की बजाय लाइन में बुवाई करें। लाइन से लाइन की दूरी 50-60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखें। इसके फायदे हैं:
- बुवाई के बाद बारिश होने पर भी अंकुरण पर असर नहीं पड़ता।
- ट्रैक्टर से खेत की जोत आसान हो जाती है।
- पौधों की संख्या नियंत्रित रहती है, जिससे उपज बढ़ती है।
बीज को डाउनी फफूंद से बचाने के लिए मेटालैक्सिल (6 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें।
खरपतवार नियंत्रण: शुरुआती 30 दिन हैं अहम
बाजरे की फसल को शुरुआती 30 दिनों तक खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी है। इसके लिए बुवाई के तुरंत बाद एट्राजीन (1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) को 400-500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यह पहले 15 दिनों तक खरपतवार को नियंत्रित रखता है। इसके बाद 15वें दिन खुरपी से निराई-गुड़ाई करें। इससे फसल स्वस्थ रहती है और उपज में बढ़ोतरी होती है।
उर्वरक का प्रयोग: मिट्टी की जांच है जरूरी
बाजरे की खेती में उर्वरकों का सही इस्तेमाल उपज को दोगुना कर सकता है। सामान्य तौर पर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है। लेकिन सही मात्रा जानने के लिए मिट्टी की जांच कराएं, ताकि जरूरत के हिसाब से खाद डाली जा सके।
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