पाला, रोग और कीट प्रबंधन: सरसों की फसल को सुरक्षित रखने की पूरी रणनीति
16 दिसंबर 2025, नई दिल्ली: पाला, रोग और कीट प्रबंधन: सरसों की फसल को सुरक्षित रखने की पूरी रणनीति – सरसों की फसल में पाले का प्रकोप भारी नुकसान पहुंचा सकता है। दिसंबर के अंत और जनवरी की शुरुआत में पाले से पौधों की ऊपरी वृद्धि प्रभावित होती है, जिससे द्वितीयक शाखाएं निकलती हैं और दाने छोटे रह जाते हैं। पाले से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय समय पर सिंचाई है। इसके अलावा सल्फर युक्त यौगिक, थायोयूरिया और कुछ फफूंदनाशकों का छिड़काव करने से पौधों की सहनशीलता बढ़ती है।
रोग प्रबंधन की बात करें तो सफेद रोली, तना गलन और अल्टरनेरिया झुलसा प्रमुख रोग हैं। सफेद रोली की रोकथाम के लिए 10 से 25 अक्टूबर के बीच बुवाई और बीज उपचार आवश्यक है। रोग दिखने पर रिडोमिल एमजेड का छिड़काव प्रभावी रहता है। तना गलन के लिए 25–30 प्रतिशत फूल आने पर बेनोमाइल या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव किया जा सकता है।
कीटों में माहू (चेपा) सरसों की सबसे गंभीर समस्या है, विशेषकर देर से बोई गई फसलों में। फूलों और फलियों पर इसका प्रकोप तेल की मात्रा को भी कम कर देता है। यदि 10 पौधों में से एक पौधे पर माहू दिखाई दे या एक पुष्प गुच्छे में 20–30 माहू हों, तो ऑक्सीडीमेटोन मिथाइल या डाइमेथोएट का छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव दोपहर बाद करना जरूरी है, ताकि मधुमक्खियों को नुकसान न पहुंचे।
सही समय पर किए गए कृषि कार्य, संतुलित पोषण और समुचित रोग-कीट प्रबंधन से सरसों की फसल न केवल सुरक्षित रहती है, बल्कि बेहतर उपज और गुणवत्ता भी सुनिश्चित करती है।
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