गेहूं खरीदी लक्ष्य – खरीददारी में भेदभाव क्यों ?
देश में पिछले वर्ष 2016-17 में गेहूं का 983.8 लाख टन उत्पादन आंका गया। इस वर्ष गेहूं के उत्पादन का लक्ष्य 975.0 लाख टन रखा गया जिसके पूर्ण होने की संभावना है। भारत सरकार ने इसमें से 320 लाख टन गेहूं क्रय करने का लक्ष्य रखा गया है जो इस वर्ष के कुल उत्पादन का एक तिहाई से भी कम है। देश में गेहूं के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत उत्पादन (लगभग 276 लाख टन) पंजाब तथा हरियाणा उत्पन्न करते हैं और यह दो राज्य ऐसे हैं जहां गेहूं के उत्पादन का 90 प्रतिशत उत्पादन सरकार द्वारा खरीदा जाता है। यदि इस वर्ष भी यही स्थिति रही तो कुल 320 लाख टन खरीदी लक्ष्य का लगभग 193 लाख टन गेहूं, पंजाब व हरियाणा के किसानों से ही खरीद लिया जायेगा। कुल खरीददारी के लक्ष्य का मात्र 125 लाख टन देश के अन्य राज्यों के किसानों से खरीदा जा सकेगा। जिसमें से 67 लाख टन मध्य प्रदेश का हटाने के बाद अन्य राज्यों के लिए 60 लाख टन इस खरीददारी के लिए शेष बचता है। यह अन्य राज्यों के किसानों के प्रति भेदभाव है। पिछले वर्षों में पंजाब व हरियाणा के किसानों का 90 प्रतिशत उत्पादन सरकारी खरीद में गया है जो लगभग 248 लाख टन होता है। भारत सरकार को गेहूं सरकारी खरीद के लक्ष्य को अन्य राज्यों के हित में बढ़ाना चाहिए और देश के कुल उत्पादन के कम से कम 50 प्रतिशत उत्पादन को सरकारी खरीद के अन्तर्गत लाना चाहिए, जिसे क्रमबद्ध तरीके से वर्ष 2022 तक 75 प्रतिशत तक ले जाने के उपाय अपनाने चाहिए। इससे किसान को कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मिलेगा जो उनकी उत्पादन लागत के समरूप होगा। आशा है वायदों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत का 50 प्रतिशत जोड़कर ईमानदारी से निर्धारित किया जायेगा।
मध्यप्रदेश में सरकार द्वारा 67 लाख टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य वर्ष 2017-18 के लिए रखा गया है। यह मध्य प्रदेश के गेहूं उत्पादन का 47 प्रतिशत है, यह देश के अन्य राज्यों की तुलना में अच्छा कहा जा सकता है, परन्तु पंजाब व हरियाणा की तुलना में अभी भी आधा है। प्रदेश में यह खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर होनी चाहिए न कि भावांतर योजना के भंवर में किसान को उलझाकर। प्रदेश सरकार ने 67 लाख टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य रखा है। यह कदम प्रदेश के किसानों के हित में होगा, परन्तु प्रदेश शासन को इसके भण्डारण की व्यवस्था अभी से करना होगी ताकि किसानों द्वारा खून पसीने से उगाया हुआ गेहूं उचित भण्डारण की व्यवस्था न होने पर नष्ट हो जाये, जो प्रदेश व देश के हित में नहीं होगा।