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धान्य एवं तिलहनी फसलों में खरपतवार प्रबंधन

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खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग द्वारा खरीफ मौसम की प्रमुख धान्य एवं तिलहनी फसलों में खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग करके भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। जहां समय एवं श्रमिक कम तथा पारिश्रमिक ज्यादा हो वहां इस विधि को अपनाने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की बचत होती है। इस विधि को अपनाने से श्रम शक्ति भी कम लगती है तथा मुख्य फसल को भी हानि नहीं पहुंचती। यहां पर खरीफ की मुख्य फसलों में उगने वाले खरपतवारों को नष्ट करने हेतु निराई-गुड़ाई एवं खरपतवारनाशी रसायनों को उनकी मात्रा के साथ उचित समय पर उपयोग करने का वर्णन किया गया है
बाजरा
बुवाई के तीसरे चौथे सप्ताह तक खेत में निराई करके खरपतवार अवश्य निकाल दें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई गुड़ाई प्रथम निराई गुड़ाई के 15 दिन पश्चात करें। गुड़ाई करते समय ध्यान रखें कि पौधों की जडें़ कट न जायें। जहां प्रारम्भ में निराई गुड़ाई करना सम्भव न हो वहां बाजरे की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने के लिये बुवाई के तुरन्त बाद प्रति हेक्टेयर आधा किलो एट्राजिन सक्रिय तत्व का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें। छिड़काव के बाद भी निराई करके खरपतवार अवश्य निकालें।

खरीफ मौसम में प्रमुख धान्य एवं तिलहनी फसलों में बाजरा, ज्वार, मक्का, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, अरण्डी की खेती की जाती है। किसान, उन्नत किस्म के बीज, उपयुक्त उर्वरक, नियमित सिंचाई तथा पादप सुरक्षा के विभिन्न उपाय जैसे उत्पादन साधनों को वैज्ञानिक विधि से अपनाकर कृषि से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में अब भी पूर्णतया सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसका एकमात्र कारण है कि वे उन्नतशील साधनों को अपनाने के साथ-साथ खरपतवारों के नियंत्रण पर पूर्ण ध्यान नहीं देते। यदि किसान को अपनी फसल से भरपूर उपज प्राप्त करनी है तो इन फसलों के शत्रु खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के महत्व को समझकर उनको समय पर नष्ट करना होगा। खरपतवारों की उपस्थिति फसल की उपज को 35-37 प्रतिशत तक कम कर देते हैं। खरीफ मौसम में खरपतवारों का नियंत्रण निराई-गुड़ाई एवं रसायनों के प्रयोग द्वारा आसानी से किया जा सकता है।

ज्वार
सामान्यतया दो-तीन निराई-गुडा़ई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। पहली निराई-गुडा़ई फसल बोनेे के 15 से 20 दिन के अन्दर करनी चाहिए। अगर खरपतवार अधिक हो तो बुवाई के 35 से 40 दिन के अंदर दूसरी निराई-गुडा़ई करें। ज्वार में खरपतवार नष्ट करने के लिये बुवाई के तुरन्त बाद प्रति हेक्टेयर 0.75 से 1 किलो एट्राजिन मात्रा का 600-800 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।
मक्का
मक्का में खरपतवारों की समस्या अधिक होती है। खरपतवारों के कारण उत्पादन में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। मक्का में खरपतवार नष्ट करने के लिये बुवाई के तुरन्त बाद प्रति हेक्टेयर आधा-एक किलो एट्राजिन सक्रिय तत्व का 600-800 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।
मूंगफली
अधिक पैदावार के लिए मूंगफली के खेत को 25 से 45 दिन की अवधि तक खरतपवारों से मुक्त रखना चाहिए। इसके लिए कम से कम दो बार निराई-गुडा़ई, पहली 20-25 दिन और दूसरी 40-45 दिन पर की जानी चाहिए। पेगिंग की अवस्था में निराई-गुड़ाई नहीं करनी चाहिये। पेन्डीमिथालीन (30 ई.सी) की 1 लीटर सक्रिय तत्व (3.3 लीटर दवा) को 800 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरन्त बाद (बुवाई के 24 से 48 दिन के अंदर) छिड़काव करें।
तिल
तिल में खरपतवारों से बहुत नुकसान होता है। अत: फसल से अधिक उपज लेने के लिए फसल की बुवाई के बाद 25-30 दिन तक खरपतवारों से मुक्त रखें। सामान्यतया दो निराई-गुडा़ई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। पहली निराई-गुड़ाई फसल बोनेे के 15 से 20 दिन के अन्दर करें। अगर खरपतवार अधिक हो तो बुवाई के 35 से 40 दिन के अंदर दूसरी निराई-गुडा़ई करें। निराई-गुडा़ई के लिए मजदूरों की कमी होने पर, तिल में एक कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से एलाक्लोर (1.75 कि.ग्रा.) या पेण्डीमिथालिन (1 कि.ग्रा.) के प्रयोग से भी खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इन दोनों खरपतवारों का प्रयोग बुवाई के बाद 2-3 दिन के अंदर करें। दवाई को 400-500 लीटर पानी में घोल कर बराबर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार खरपतवारनाशी दवा के प्रयोग के साथ-साथ फसल की 20 से30 दिन की अवस्था पर एक निराई-गुडा़ई भी करें । शस्य विधियां जैसे कि अन्त:फसलीकरण, ग्रीष्म में गहरी जुताई, उचित फसल चक्र, पलवार आदि को अपनाने से भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
सोयाबीन
सोयाबीन में वर्षा के मौसम की फसल होने के कारण खरपतवारों की समस्या अधिक होती है। खरपतवारों के कारण उत्पादन में 30-70 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। खरपतवारों का नियन्त्रण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है। ट्राईफ्लुक्लोरोलीन दवा की एक लीटर सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर (2.2 लीटर दवा) बुवाई से पहले या पेन्डीमिथालीन (30 ई.सी) की 1 लीटर सक्रिय तत्व (3.3 लीटर दवा) या क्लोमोजोन 1 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद और अंकुरण से पहले या इमेजाथायपर 75-100 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्विझालाफॉप इथाईल 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। इन रसायनों को 750-800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। खरपतवार की दोबारा वृद्धि को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30 और 45 दिन बाद गुड़ाई करें।
अरण्डी
अरण्डी में खरपतवारों से काफी नुकसान होता है। पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे के बीच अधिक दूरी होने और साथ ही वे पौधों की शुरू में कम बढ़वार के कारण, अरंडी में खरपतवारों का बहुत अधिक प्रकोप होता है। अत: फसल की अच्छी बढ़वार और उपज के लिए यह आवश्यक है कि फसल को बुवाई के 25 से 45 दिन की अवधि तक खरतपवारों से मुक्त रखना चाहिए। इसके लिए 15-20 दिन के अन्तराल पर फसल की दोबारा निराई-गुडा़ई करें। खरपतवारनाशियों के प्रयोग से भी खरतपवारों के प्रकोप को कम कर सकते हैं। इस फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए ट्राईफ्लुक्लोरोलीन दवा की एक लीटर सक्रिय तत्व (2.2 लीटर दवा) प्रति हेक्टेयर बुवाई से पहले छिड़काव करें। इन रसायनों को 600-800 लीटर पानी में घोल कर छिडक़ाव करे और छिड़काव के बाद रसायन को मिट्टी की ऊपर की परत में अच्छी तरह मिला दें। खरपतवार की दोबारा वृिद्ध को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30 और 45 दिन बाद गुडा़ई करें।

रसायनिक खरपतवार प्रबंधन के समय कुछ ध्यान रखने योग्य बातें:रसायनिक खरपतवार प्रबंधन के समय कुछ ध्यान रखने योग्य बातें:

क्या करें-

  • रसायनों का प्रयोग अनुमोदित मात्रा के अनुसार ही करें।
  • रसायनों  की बोतल/डिब्बों में दिये गये निर्देशों के अनुसार ही रसायन का प्रयोग करें।
  • खरपतवारनाशी के पैकेट पर वैधता अवधि जांच लें।
  • खरपतवार के प्रकार व संख्या को ध्यान में रखकर खरपतवारनाशी का चयन करें ।
  • रसायनिक खरपतवारनाशी का प्रयोग करते समय खेत में नमी का होना आवश्यक है।
  • खरपतवारनाशी का प्रयोग करते समय फलेट फेन नोजल का प्रयोग करें।
  • खरपतवारनाशी चक्र का अनुसरण करें ताकि खरपतवारों की प्रतिरोधी क्षमता विकसित ना हो।

क्या ना करें-

  • खरपतवार उगने के बाद के खरपतवारनाशी का प्रयोग करते समय रेत, यूरिया या मिट्टी के साथ ना मिलायें।
  • तेज हवा चलते समय खरपतवारनाशी का छिड़काव न करें।
  • खरपतवारनाशियों का प्रयोग पूर्ण जानकारी के बिना नहीं करें।
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