Uncategorized

खरीफ में आये सब्जियों की बहार

Share

खरीफ के मौसम में वातावरण में नमी एवं तापमान की अधिकता तथा वर्षा ऋतु के कारण सब्जियों का चयन सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इस मौसम में कद्दूवर्गीय सब्जियॉं जैसे लौकी, गिलकी, करेला, खीरा आदि को लगाया जाना उपयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त टमाटर, मिर्च, अगेती फूलगोभी, खरीफ प्याज, भिण्डी आदि सब्जियों की भी खेती की जाती है।
सब्जी फसल में किस्मों का चयन
सही किस्मों का चयन सफल फसल उत्पादन की प्रथम कड़ी है। किस्मों का चयन मौसम के अनुसार करना चाहिए। वर्षा ऋतु में वायरस जनित रोगों का प्रकोप भी ज्यादा होता है इसलिए कीट एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों को प्राथमिकता दें। सब्जियों में किस्मों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है जैसे उन्नतशील जातियां तथा संकर किस्में। अधिक उत्पादन हेतु संकर अनुशंषित किस्में इस प्रकार है।
लौकी: पूसा नवीन, पूसा संतुष्टी, पूसा संकर-3, अर्का बहार
गिलकी: पूसा चिकनी करेला: पूसा नसदार
टमाटर: पूसा-120, पूसा रूबी, अर्का विकास, अर्का रक्षक, पूसा संकर – 4
मिर्च: पूसा ज्वाला, जवाहर -283, पूसा सदाबहार, अर्का लोहित, काशी अर्की
गोभी: पूसा अगेती, पूसा स्नोबाल 25, पंत गोभी-2 एवं 3
प्याज: एन-53, एग्रीफाउंड डार्करेड, भीमा सुदर
भिण्डी : पूसा सावनी, वर्षा उपहार, अर्का अनामिका
मुख्य खेत की तैयारी – खेत की अच्छी प्रकार से जुताई कर समतल करें। रोपाई से एक माह पहले गोबर की खाद या कम्पोस्ट की अच्छी गली व सड़ी खाद भूमि में मिला लें। रसायनिक उर्वरकों के रूप में दी जाने वाली खाद की अनुशंसित मात्रा में ही प्रयोग करें। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई अथवा बुआई के पूर्व भूमि में प्रयोग करें तथा नत्रजन को दो से चार भागों में बांटकर संपूर्ण फसल अवधि में दें। उर्वरकों को टपक सिंचाई पद्धति में वेंचुरी के माध्यम से भी कम-कम अंतराल पर पौधों को दिया जा सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि टपक सिंचाई के द्वारा केवल घुलनशील उर्वरकों का ही प्रयोग करें। खरीफ के मौसम में पौधों की रोपाई मेड़ों पर करें। प्याज की खेती हेतु खेत में 1 मीटर चौड़ी तथा 15 से.मी. उठी हुई पट्टियां बनाकर उन पर रोपाई करने से जल निकास सुगम होता है। कद्दूवर्गीय सब्जियों तथा टमाटर की फसल को खरीफ के मौसम में वर्षा के पानी से नुकसान होने की संभावना रहती है। इससे पौधों में कई प्रकार के रोग तथा उत्पाद की गुणवत्ता में भी हानि होने की संभावना रहती हैं इसलिए खेत में 10-15 फीट की दूरी पर बांस गड़ाकर उन पर लोहे (जी. आई.) के तार कस दिये जाते है। अब इन तारों पर प्रत्येक पौधों को सुतली की सहायता से बांध देते है। इससे पौधे सीधे बढ़ते है तथा इनमें लगने वाले फल भूमि के संपर्क में नही आ पाते है।
निंदाई-गुड़ाई – निंदाई-गुड़ाई से खेत साफ रहता है जिससे मुख्य फसल की बढ़वार अच्छी होती है। समय-समय पर खरपतवारों को निकालने से मुख्य फसल के पौधों को पानी एवं पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण हेतु खुरपी, कुल्पा, वीडर का उपयोग किया जाता है। रसायनिक खरपतवारनाशकों का प्रयोग भी फसल विशेष को ध्यान रखते हुए किया जा सकता है। वर्तमान में 25 माइक्रोन मोटाई वाली प्लास्टिक मल्च फिल्म का प्रयोग खरपतवार की रोकथाम हेतु किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसमें फसल की रोपाई के पूर्व प्लास्टिक फिल्म को खेत में बिछा दिया जाता है तथा बाद में इनमें निश्चित दूरी पर छेद करके पौधों की रोपाई की जाती है।
सिंचाई – खरीफ में वर्षा को ध्यान में रखते हुए खेत में सिंचाई की जाती है। सामान्यतया 6-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते है।
वर्तमान में सिंचाई हेतु टपक सिंचाई ज्यादा लाभदायक है। इसमें पानी तथा उर्वरकों की बचत के साथ-साथ श्रमिकों की भी कम आवश्यकता होती है। इसमें पानी सीधे पौधों की जड़ों के पास बूंद-बूंद के रूप में पहुंचता है। इस विधि में पौधों की आवश्यकतानुसार उर्वरकों को वेंचुरी द्वारा सिंचाई जल के साथ ही पौधों को उपलब्ध करवाया जाता है।

प्रमुख कीट एवं रोगों की रोकथाम
खरीफ फसलों में विभिन्न प्रकार के कीट एवं रोगों का प्रकोप होता है। कीटों में मुख्य रूप से रसचूसक कीट जैसे सफेद मक्खी, माहो, तेला तथा सूंडी वाले कीटों में एवं फल छेदक, पत्ती सुरंगक, फल मक्खी आदि प्रमुख है।
रसचूसक कीटों के नियंत्रण हेतु इमीडाक्लोप्रिड 0.3 मि.ली. 1 लीटर अथवा थायोमिथाक्सम 0.3 ग्राम 1 लीटर की दर से फसल पर छिड़काव करें। छेदक कीटों के नियंत्रण के लिए क्लोरोपाईरीफास 2 मि.ली/लीटर अथवा इंडाक्साकार्ब 0.5 मि.ली/लीटर से छिड़काव का उपयोग करें।
इसी प्रकार सब्जियों में विभिन्न प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है इनमें प्रमुख रूप – झुलसा, भभूतिया, उकटा, पदगलन, म्लानि, जीवाणु सूखा रोग तथा वायरस जनित रोग है। फफूंदजनित रोगो के नियंत्रण हेतु मेन्कोजेब, कार्बेन्डाजिम, थायोफिनेट मिथाईल, बोर्डो मिक्सर आदि फफूंदनाशकों को 2 -2.5 ग्राम / लीटर की दर से उपयोग किया जाता है। वायरस जनित रोगों जैसे मिर्च का चुडऱ्ा-मुडऱ्ा, मोजेक आदि की रोकथाम हेतु डायमिथिएट – 2 मिली/लीटर अथवा इमीडाक्लोप्रिड 0.3 मिली/लीटर का छिड़काव लाभदायक होता है।
इसके अतिरिक्त कीट एवं रोगों की रोकथाम हेतु फसल चक्र, रोग एवं कीट प्रतिरोधी जातियों का प्रयोग, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई, नत्रजन युक्त उर्वरकों का अनुशंसित मात्रा में उपयोग आदि बातों का भी ध्यान रखें।
पौधशाला/नर्सरी में रखी जाने वाली सावधानियां
टमाटर, मिर्च, गोभी, प्याज आदि पौध से उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियां है। अच्छी सफल फसल उगाने के लिए पौधा का स्वस्थ होना आवश्यक है। अत: पौधशाला की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ होने चाहिए। खरीफ ऋतु में नर्सरी हेतु ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहां पानी न भरता हो। साधारणतया क्यारी की लंबाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर तथा ऊंचाई 15 सें.मी. होनी चाहिए। लंबाई आवश्यकतानुसार घटाई या बढ़ाई जा सकती है। इसमें 20-25 कि.ग्रा. अच्छी तरह से गली-सड़ी गोबर की खाद को ट्राईकोडर्मा रजिएनम से उपचारित कर, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 15-20 ग्राम फफूंदनाशक डायथेन एम-45 और कीटनाशक क्लोरोपाईरीफास घूल (20-25 ग्राम) मिला देना चाहिए। बीज को 5 से.मी. दूर पंक्तियों में लगातार गोबर की खाद या मिट्टी की पतली तह से ढक दें। बीजाई के तुरंत बाद क्यारी को सूखी घास से ढक दें। इसके अतिरिक्त पौधशाला में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे –

  • जब तक पौधे स्थापित न हो जाये, प्रतिदिन सिंचाई करें।
  • नमी की अधिकता होने पर पदगलन रोग की आशंका में पौधशाला में डायथेन एम-45 2 ग्रा./ली. पानी में घोलकर सिंचाई करें।
  • हर सप्ताह खरपतवार व अवांछनीय पौधों की निकासी करें तथा हल्की गुड़ाई करें।
  • पौधे उखाडऩे से 3-4 दिन पूर्व सिंचाई न करें परंतु पौध उखाडऩे वाले दिन सिंचाई करने के बाद ही पौध को उखाडे। रोपण से पूर्व पौधों को डायथेन एम-45 2 ग्रा./ली. या कार्बेन्डाजिम 2 ग्रा./ली. पानी के घोल में कुछ समय डुबाये रखे।
  • स्वस्थ पौधों का ही रोपण करें और यह कार्य दोपहर बाद करें।

सब्जियों के प्रमुख रोग व कीट नियंत्रण

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *