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पौधशाला का रेखांकन

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पौधशाला हेतु स्थान का चयन:  पौधशाला में स्थान की प्रधानता होती। इसलिये यह अति आवश्यक है कि नर्सरी के लिए चुना गया स्थान जलवायु, मृदा, जल, मानवश्रम एवं अन्य आवश्यक सुविधाओं के साथ-साथ बाजार व मांग क्षेत्र के आसपास भी होना चाहिये, क्षेत्र की जलवायु सभी प्रकार के प्रवर्धन में सहयोगी तथा मृदा उपजाऊ, निष्क्रिय पीएच मान युक्त, पानी पर्याप्त मात्रा में व गुणवत्ता में श्रेष्ठ होना चाहिये। पौधशाला में पौधे छोटी अवस्था में रखे जाते हैं। अत: यह अति-आवश्यक कि पौधशाला क्षेत्र पूर्णत: सुरक्षित, उपजाऊ, अच्छी गुणवत्ता के जलयुक्त, मानव श्रम की उपलब्धता, कीट व रोगों से मुक्त, बाजार के निकट होना चाहिये।
पौधशाला के लिये क्षेत्र: पौधशाला कार्य एक व्यवसाय होने के कारण इसका क्षेत्र भी व्यवसाय के समान लघु, मध्यम वृहत्त तीन भागों में बांटा जा सकता है। एक लघु नर्सरी के लिये 2500 से 10,000 वर्ग मीटर, मध्यम के लिये 10,000 से 25,000 वर्गमीटर तथा वृहत्त नर्सरी हेतु 25,000 वर्गमीटर से 100,000 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता पड़ती है। पौधशाला का क्षेत्र उद्देश्य एवं उत्पादन स्थिति को ध्यान में रखकर कम व ज्यादा किया जा सकता हैं भूखंड में जहां पर भूमि गहरी है, वहां मातृवृक्ष लगाये जाने चाहिए। जहां कम गहरी व समस्या ग्रस्त है। वहाँ मूलवृंत तथा अन्य क्यारियाँ बनाई जायें। कम उपजाऊ भूमि पर कार्यालय, निवास तथा विक्रय स्थल का निर्माण करना चाहिये। जो भूमि अधिक ढलावदार है वहां पर उत्पादक उद्यान व मातृवृक्षों को कन्टूर पद्धति से लगायें।
जल व्यवस्था : पौधशाला की जल व्यवस्था को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है।
जल स्त्रोत: सम्पूर्ण पौधशाला का रेखांकन जलस्त्रोत के प्रकार एवं क्षमता पर निर्भर करता है उज्ज गुणवत्ता युक्त पर्याप्त पानी उपलब्ध होना चाहिए। जल स्त्रोत में किसी भी समय आवश्यक मात्रा में जल उपलब्ध होना चाहिए। उपलब्ध जल स्त्रोत के आधार पर ही प्रवर्धित पौधों की क्यारियाँ तथा अन्य क्यारियाँ और गमलाघर आदि का रेखांकन किया जा सके।
वितरण व्यवस्था: पौधशाला में जल विवरण व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए की जल को बिना व्यर्थ किए आवश्यक स्थान तक सुगमता से पहुंचा दिया जाए। जल वितरण में पानी की हानि को बचाने के लिये स्थाई एवं अद्र्ध-स्थाई पाईप लाईन लगानी चाहिए।
जल भंडारण: पौधशाला में लगभग 7 दिन तक आवश्यक जल की मात्रा भंडारण की क्षमता होनी चाहिए ताकि आवश्यकता होने पर छोटे पौधे में पानी दिया जा सके। यह कक्ष पौधशाला के सबसे ऊंचे स्थान पर बनाया जाना चाहिए तथा सम्पूर्ण पौधशाला से पाईप लाइनों से जुड़ा रहना चाहिए।
जल निकास व्यवस्था: पौध शाला में जल निकास की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए। जल निकास व्यवस्था में मुख्य जल- निकास नाली नर्सरी के सबसे निचले भाग पर बनाई जाती है। इस नाली से अन्य सहायक जल निकास नालियाँ बनाकर जोड़ दी जाती हैं। नर्सरी का प्रत्येक भाग जल निकास नालियों से जुड़ा हों।
वर्षा जल भंडारण टैंक: पौध शाला में वर्षाजल का विशेष महत्व होता है। पौधशाला की अवस्था में वर्षा जल का उपयोग करने से पौध उत्पादन स्वस्थ एवं अंकुरण क्षमता में बढ़वार होती है। अत: नर्सरी के निचले भाग पर एक बड़ा टैंक या खडीन बनाकर वर्षा जल को सुरक्षित रखें।
यातायात व्यवस्था: पौधशाला पर यातायात की अच्छी सुविधा होनी चाहिए। पौधों का विक्रय अधिकांशत: वर्षाऋतु में ही होता है। अत: सड़क पक्की एवं इस योग्य होनी चाहिए कि उसमें ट्रक, ट्रैक्टर, बैलगाड़ी या अन्य साधन सुविधापूर्वक नर्सरी तक आ सके। नर्सरी के आन्तरिक भाग भी पक्के रास्तों से जुड़े होने चाहिए। सड़क  के दोनों ओर मातृवृक्ष के रूप में शोभादार वृक्षों और झाडिय़ों का उपयोग किया जा सकता है।
नर्सरी के प्रकार: नर्सरी को किस रूप में विकसित करना उचित होगा यह बात उस क्षेत्र की मांग पर निर्भर करती हैं जैसे किसी एक ही फल वृक्ष के पौधों की अधिक मांग हो तो विशिष्ट नर्सरी के रूप में विकसित करना पड़ेगा।

 

पौधशाला के आवश्यक विभाग
पौधशाला में आन्तरिक रेखांकन इस प्रकार होना चाहिए कि सभी संबंधित विभाग एक-दूसरे से जुड़े हुए हों। पौधशाला को आवश्यकता के अनुसार मातृवृक्ष ब्लॉक, मृलवृंत ब्लॉक, छायाग्रह, कार्यस्थल, विक्रय स्थल, गमलाघर, खाद संग्रहण ग्लास हाऊस, नेट हाऊस, पॉली हाऊस, आवास तथा विविध प्रकार की क्यारियाँ आदि भागों में बांटना चाहिए।
मातृवृक्ष: उच्च गुणवत्ता के पौधे प्राप्त करने के लिये क्षेत्र के अनुसार आवश्यक किस्मों के पौधे नर्सरी के एक भाग में स्थापित करना चाहिए, जिसमें नींबू, संतरा, मौसमी, अनार, फालसा, आम, चीकू, कटहल, आंवला, बेर, शहतूत आदि पौधे की प्रचलित किस्में के पौधे लगाने चाहिये।
शोभाकारी पौधे: नर्सरी को बहुउद्देश्यीय बनाने के लिये शोभाकारी पौधे का उत्पादन भी आवश्यक है। इन पौधों को तैयार करने के लिये मातृपौधों के रूप में एकेलिफा, बोगेनविलिया, चम्पा, टिकोमा, गुड़हल, कनेर, मोगरा आदि के छोटे-छोटे ब्लॉक लगाने चाहिये।
गुलाब की क्यारियाँ: गुलाब की मांग अधिक होने के कारण गुलाब की मुख्य किस्मों की लाइनें लगानी चाहिये।
मूलवृंत की क्यारियाँ: विभिन्न फल वृक्षों के मूलवृंत तैयार करने के लिये नर्सरी में एक निश्चित स्थान रखना चाहिए जिसमें थैलियां व गमले रखकर मूलवृंत तैयार किया जा सके।
प्रवर्धित पौधों की क्यारियाँ: प्रवर्धित पौधों की क्यारियाँ पौधों के संसाधन तथा विक्रय के लिये बनाई जाती हैं। यह स्थान हमेशा मुख्य सड़क तथा सहायक सड़क से लगा हुआ होना चाहिये।
कालिकायन कक्ष : यह कक्ष प्रवर्धित क्यारियों के पास ही होना चाहिये। इस कक्ष में कलिकायन कार्य किया जाता है। कलिकायन कक्ष को यू.वी.एस. की चद्दरों से ढककर रखना चाहिए।
सब्जी तथा मौसमी पुष्प पौद क्यारियाँ: यह क्यारियाँ कार्यालय के पीछे की तरफ होना चाहिये। इसके लिये स्थान उपजाऊ व ऊंचा उठा होना चाहिये।
खाद भंडारगृह : नर्सरी मुख्य भाग जहां गमले एवं थैलियों की भराई होती है, उसके आसपास गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट व सुपर कम्पोस्ट इकाईयां व खाद भंडारण की व्यवस्था होनी चाहिये।
छायागृह, कार्यस्थल, गमला स्थल एवं भंडारण स्थल : यह सभी भाग एक-दूसरे से जुड़े होने चाहिए तथा नर्सरी में एक तरफ बने होने चाहिए। आवश्यक सामग्री रखने के लिये भंडार गृह तथा तैयार पौधों को रखने के लिये छायागृह बनाना चाहिए।
आवास एवं कार्यालय: चौकीदार गृह मुख्य दरवाजे के पास कार्यालय नर्सरी के मध्य में तथा आवास नर्सरी के पीछे के भाग में होना चाहिए।
वायु अवरोधक : सभी दिशाओं में नींबू, देशी आम, जामुन, करोंदे, शीशम, बाँस आदि वृक्ष लगाकर नर्सरी को गर्म व ठंडी हवाओं से बचाना चाहिए।
नमूना पौधा: मुख्य द्वार से कार्यालय के मध्य रोड़ के दोनों तरफ उन्नत किस्मों के नमूने पौधे लगायें ताकि उनको देख्र किसान पौधों का चुनाव आसानी से कर सकें।
मृदा निर्जमीकरण कक्ष: इस कक्ष का निर्माण गमला गृह व थैलियाँ भरने के स्थान के पास होना चाहिए। इस कक्ष में जड़ माध्यमों व मृदा को जीवाणुओं से मुक्त किया जाता है।

 

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