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सोयाबीन की खेती कहीं अभिशाप न बन जाये

सोयाबीन के उत्पादन में भारत का विश्व में पांचवां स्थान है। सोयाबीन के उत्पादन में उत्तरी अमेरिका सबसे अग्रणी है। वर्ष 2017-18 में यहां सोयाबीन का 1205.9 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। अमेरिका में सोयाबीन के उत्पादन में हर वर्ष लगातार वृद्धि होती चली जा रही है। वर्ष 2012-13 में यहां 827.9, 2013-14 में 913.9, 2014-15 में 169.9, 2015-16 में 1069.3, 2016-17 में 1172.1 तथा वर्ष 2017-18 में 1205.9 लाख मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त किया। सोयाबीन का उत्पादन करने वाले देशों में ब्राजील का दूसरा स्थान आता है। यहां भी वर्ष 2012-13 में उत्तरी अमेरिका के बराबर सोयाबीन का उत्पादन 820.0 लाख मीट्रिक टन था, परन्तु इसका वर्ष 2017-18 में उत्पादन 707.0 लाख टन ही पहुंच पाया। सोयाबीन का तीसरा उत्पादक देश अर्जेन्टीना है यहां वर्ष 2012-13 में सोयाबीन का उत्पादन 493.0 लाख मीट्रिक टन था जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर 570.0 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया। सोयाबीन के चौथे बड़े उत्पादक देश चीन में भी पिछले पांच-छ: वर्षों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। वर्ष 2012-13 में जहां चीन में 130.5 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ वहीं वर्ष 2013-14, 2014-15, 2015-16 तथा 2016-17 में यह घट कर क्रमश: 119.5, 121.5, 116.0 तथा 129.0 लाख टन हुआ। वर्ष 2017-18 में यहां उत्पादन में वृद्धि देखी गयी जब बढ़कर 140.0 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गयी
भारत में पिछले पांच-छ: वर्षों में सोयाबीन के उत्पादन में बहुत उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। वर्ष 2012-13 में जहां उत्पादन 121.9 लाख मीट्रिक टन हुआ था वहीं अगले पांच वर्षों में इसमें गिरावट देखने को मिली है। वर्ष 2013-14 में यह 950.0, 2014-15 में 871.0, 2015-16 में 700.0, 2016-17 में 115.0 तथा पिछले वर्ष 2017-18 में 100.0 लाख मीट्रिक टन ही हुआ। देश में सोयाबीन उत्पादक राज्यों में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान प्रमुख हैं। इन प्रदेशों की औसत उत्पादकता 11-12 क्विंटल से अधिक नहीं पहुंच पाई है। मौसम विषम परिस्थितियों में यह 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही रह जाती है। उत्तरी अमेरिका, ब्राजील, अर्जेन्टीना जैसे देशों में सोयाबीन की उत्पादकता 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक रहती है।
देश में पिछले पांच-छ: वर्षों में उत्पादकता में कमी के कारणों का अध्ययन तथा उनका निराकरण अब अतिआवश्यक हो गया है। परन्तु इसके बारे में कोई चर्चा नहीं हो रही है यदि हो भी रही है तो वह बन्द कमरों में। वर्तमान में हम प्रतिकूल मौसम को इसका कारण बताकर खुद को धोखा दे रहे हैं। खरीफ में हमें अन्य वैकल्पिक फसल को अपनाना होगा। अन्यथा जिस फसल में किसानों के रहन-सहन में परिवर्तन लाया है वह अधिक दिनों तक साथ देने वाली नहीं है। जिसका खामियाजा किसानों के साथ-साथ मध्य प्रदेश सरकार को भी आर्थिक व सामाजिक रूप में भोगना होगा।

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