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मृदा स्वास्थ्य-किसानों की उन्नति का मुख्य आधार

मृदा के गुणों के आधार पर मृदा स्वास्थ्य के स्तर का पता चलता है जो कि निम्नलिखित है।
मृदा अभिक्रिया: इसका अभिप्राय मृदा विलयन की अम्लता, क्षारीयता एवं उदासीनता से है। मृदा विलयन में विभिन्न तत्व आयन्स के रूप में होते है। अम्लीय आयन्स जैसे हाइड्रोजन, नाइट्रेट व सल्फेट आदि तथा क्षारीय आयन्स जैसे हाइड्रोंजन ऑक्साइड, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम आदि मृदा विलयन मे रहते है। यदि मृदा कोलाइड पर हाइड्रोजन आयन्स का सान्द्रण हाइड्रोजन ऑक्साइड से ज्यादा हो तो मृदा अम्लीय होती है और यदि हाइड्रोजन आयन्स का सान्द्रण कम हो तो मृदा क्षारीय होती है तथा बराबर समान संख्या होने पर मृदा अभिक्रिया उदासीन होती है।

मृदा स्वास्थ्य का अर्थ मृदा के उन सभी प्रभावों से है जिनके आधार पर फसल का उत्पादन अच्छा हो सके और जिसमें पौधों की वृद्धि एवं विकास के सभी गुण उपस्थित हो तथा जीवों की संख्या और उनकी क्रियाशीलता आदर्श स्तर की हो। इन्ही वांछित गुणों के आधार पर मृदा स्वास्थ्य को निर्धारित करते हैं। मृदा स्वास्थ्य के आधार मृदा स्वास्थ्य का इसकी उर्वराशक्ति और उत्पादकता के सिद्धान्त के कारकों से सीधा सम्बन्ध होता है।

मृदा मे में अम्लीय प्रभाव छोडऩे वाले रसायनिक उर्वरक जैसे अमोनियम सल्फेट, अमोनियम क्लोराइड आदि का लगातार प्रयोग करने से मृदा की अम्लीयता बढ़ती चली जाती है जिससे पौधों के विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता पर कुप्रभाव होने के कारण फसल का उत्पादन अच्छा नहीं होता है
मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता एवं संतुलन: पौधों के सभी आवश्यक पोषक तत्वों को सन्तुलित मात्रा में उपलब्ध कराना स्वस्थ मृदा का गुण है पोषक तत्वों की उपलब्धता का सीधा सम्बन्ध मृदा उर्वरता एवं फसल उत्पादन से होता है। एक या अधिक पोषक तत्वों की उपलब्ध मात्रा का दूसरे पोषक तत्वों के सापेक्ष उचित अनुपात में नहीं होने की अवस्था में पौधे इन तत्वों का समुचित उपयोग नहीं कर पाते जिसके कारण मृदा में इनकी अनुपात की मात्रा में असंतुलन उत्पादन हो जाता है। पोषक तत्वों की कमी या अधिकता पौधों के कुपोषण का कारण बनती है जिससे फसल की उपज और गुणवता प्रभावित होती है इसके लिए आवश्यक है कि इन पोषक तत्वों का आनुपातिक मात्रा में प्रयोग किया जाए जिससे मृदा की उर्वरता का ह्रास न हो और लम्बे समय तक मृदा स्वास्थ्य बना रहे।
मृदा जीवांश की मात्रा और अवस्था स्तर:
मृदा जीवांश पदार्थ की मात्रा के आधार पर इसकी उर्वराशक्ति का पता लगाया जा सकता है। मृदा की भौतिक दशा, भूक्षरण में कमी, जल रोकने की क्षमता, जोत मे सुधार आदि मृदा जीवांश की उचित मात्रा होने पर होता है। मृदा को जीवांश पदार्थ पेड़ पौधों के अवशेषों के रूप में प्राप्त होता है यह अवशेष सड़कर अन्त मे गहरे भूरे रंग का पदार्थ बनाते है जिसे हयूमस कहते है। यह एक गतिशील पदार्थ होता है जो मृदा में सदैव परिवर्तनशील होता है इसका प्रभाव मृदा स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे सूर्य की ऊर्जा को सोखने की शक्ति बढ़ जाती है तथा साथ ही मृदा में खनिजों की घुलनशीलता बढ़ती है इससे कारण उसमें उपस्थित पोषक तत्व मुक्त होकर पौधों के लिए काम आते हैं। जीवांश पदार्थ सूक्ष्मजीवों का मुख्य भोजन है जो मृदा में सूक्ष्म जीवों की संख्या व उनकी क्रियाशीलता बनाये रखता है व कुछ ऐसे पदार्थ जो मृदा पर अपना विषैला प्रभाव डालते है उनको उदासीन कर देता है।
मृदा सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता:
मृदा मे पादप और विभिन्न प्रकार के जन्तु दोनों प्रकार के जीव विद्यमान है। मृदा के जन्तुओं मे केचुएं, सूक्ष्मदर्शीय प्रोटोजोआ और पौधों के निम्न रूप जैसे बैक्टीरिया, फंजाई, एल्गी तथा एक्टीनोमाइटिज बहुत संख्या में रहते है। ये जीव, जीवांश पदार्थ को भोजन के रूप में ग्रहण करते है तथा इन्हीं के कारण पोषक तत्वों की घुलनशीलता व उपलब्धता मे वृद्धि होती है।
मृदा के भौतिक गुण :
मृदा के भौतिक गुणों पर मृदा स्वास्थ्य निर्भर करता है। भौतिक गुणों पर कणाकार, संरचना, घनत्व, सांन्द्रता, रंग और ताप आदि अधिक प्रभाव डालते हैं। मृदा जल निकास, वायु संचार, पौधों की जड़ों का विकास तथा पोषक तत्वों की पौधों को उपलब्धता आदि क्रियाएं मृदा भौतिक गुणों से प्रभावित होती है। जीवांश पदार्थ की मृदा में कमी होने पर पोषक तत्वों को रोके रखने की क्षमता कम हो जाती है और मृदा संरचना दानेदार नहीं बन पाती है जिसका सीधा सम्बन्ध मृदा स्वास्थ्य से होता है।

        मिट्टी स्वास्थ्य की जांच प्रक्रिया :

  • सबसे पहले किसान के खेत की मिट्टी का नमूना लेते है।
  • उसके बाद उस मिट्टी के नमूने को परीक्षण प्रयोगशाला में भेजा दिया जाता है।
  • वहां विशेषज्ञ मिट्टी की जांच करते है तथा मिट्टी के बारे में सभी जानकारियां प्राप्त करते है।
  • उसके बाद रिपोर्ट तैयार करते हैं कि कौन सी मिट्टी में क्या ज्यादा और क्या काम है।
  • तत्पश्चात बाद में इस रिपोर्ट को एक-एक करके किसान के नाम के साथ अपलोड किया जाता है जिससे की किसान अपनी मिट्टी की रिपोर्ट जल्द से जल्द देख सके और उसके मोबाइल पर इसकी जानकारी दी जाती है।
  • बाद में किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रिंट करके दिया जाता है।

मृदा स्वास्थ्य के कारक :
मृदा में पोषक तत्वों को हानि व कुप्रबंधन:- पोषक तत्वों की हानि से मृदा उर्वराशक्ति कम होने के साथ पोषक तत्वों का आपसी संतुलन बिगड़ जाता है क्योंकि सभी पोषक तत्वों की क्षति एक अनुपात में नही होती है। फसल उत्पादन हेतु पोषक तत्वों का समुचित प्रबन्ध मृदा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए आवशयक है।
फसल उगाने की प्रणाली:– भारत में फसल उगाने की तीन प्रणालिया प्रचलित है जैसे इकहरी खेती, मिश्रित खेती व फसल चक्र। इकहरी खेती में एक निश्चित खेत पर प्रत्येक वर्ष एक ही फसल उगायी जाती है। हर फसल अपनी जड़ों से एक प्रकार का विष निकालती है यदि एक ही फसल एक ही खेत पर काफी समय तक लगातार उगायी जाये तो जड़ो से निकले विष की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि मृदा विकृत हो जाती है जिससे मृदा स्वास्थ्य मे लगातारी गिरावट होती जाती है।
सिंचाई जल गुणवत्ता:- मृदा में लवण का सान्द्रण, जल की किस्म एवं गुणवता को प्रभावित करते है जैसे घरेलू गंदे पानी मे जीवांश पदार्थ की अधिक मात्रा होती है। इस जल से सिंचाई करने पर मृदा में जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है। सीवेज पानी में भारी तत्वों की प्रचुरता रहती है जिससे इसके प्रयोग करने से मृदा में आदि की अधिकता होने से सीवेज की जैविक ऑक्सीजन और रासायनिक ऑक्सीजन मांग अधिक होने के कारण मृदा में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण पौधों की जड़ों व मृदा सूक्ष्मजीवों की ऑक्सीजन की आपूर्ति घट जाती है जिसका प्रभाव मृदा और फसल उपज पर पड़ता है।

                            रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग
कृषि रसायनों का अत्यधिक प्रयोग मृदा स्वास्थ्य और फसल उत्पादन व गुणवता को घटाते हैं। समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन कीट- रोग प्रबंधन तकनीकी अपनाकर इससे बचा जा सकता है। मृदा स्वास्थ्य रखरखाव मृदा स्वास्थ्य का आदर्श स्तर बनाये रखने हेतु खेती की वह पद्धति जो फसल चक्र, फसल अवशेष, कार्बनिक व अकार्बनिक खादों एवं उर्वरकों पर आधारित हो जिसमे मृदा की उर्वराशक्ति और उत्पादन में टिकाऊपन के साथ-साथ खाद्य पदार्थ रसायनिक यौगिक रहित गुणकारी मिल सके। इसके लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

  • फसलों को हेर-फेर कर बोने से खरपतवार की वृद्धि कम होती है तथा मृदा अपरदन कम होने से पोषक तत्वों का ह्रास कम होता है और उर्वरता लगभग समान बनी रहती है।
  • प्राकृतिक संसाधनों के शोषण के बजाए उनका न्यूनतम उपयोग किया जाए।
  • मृदा जीवों के संरक्षण हेतु जैविक क्रियाओं को बढ़ावा दिया जाए।
  • भू परिष्करण क्रियाओं द्वारा मृदा में जल शोषण और धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा इसके अलावा वायु संचार व मृदा संरचना में सुधार होता है।
  • कार्बनिक खादों व जैविक उर्वरकों को पोषक तत्वों की आपूर्ति फसल उत्पादन हेतु सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • मृदा की दीर्धकालीन उर्वरता में वृद्धि हेतु वैज्ञानिक फसल उत्पादन पद्धति को अपनाया जाना चाहिए।
  • आदर्श कृषि तकनीकी उपयोग कर मृदा प्रदूषण स्तर को कम किया जाए जिससे मृदा में हानिकारक रसायन न पहुंच सके।
  • तरुण कुमार केवट
  • दीपिका
  • नारायण प्रसाद वर्मा
    email : verma.narayan6@gmail.com
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