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सहेजें मिट्टी एवं पर्यावरण

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कृषि जो कि हमारी मूलभूत आवश्यकता भोजन को पूरा करती है, इससे बढ़कर यह देश की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बनाने में सहायक है। खेती से होने वाली उपज मुख्यत: मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्वों पर निर्भर करती है। यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 162.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि वायु एवं पानी से होने वाले क्षरण से प्रभावित है, इसके अतिरिक्त देश के भू-भाग का एक बड़ा हिस्सा मिट्टी की अम्लता, क्षारीयता, लवणता एवं खड्डों से प्रभावित है। ये सभी कारण खेती के लिए जमीन की सुलभता को कम कर रहे हैं। कृषि में उत्पादकता को बढ़ाने के लिये, मिट्टी संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाना आज की प्रमुख आवश्यकता बन गया है। काली मिट्टी की अधिकता वाले क्षेत्रों में वर्षा के पानी का कम जज्ब या अवशोषण होने से, बहते हुए पानी के साथ मिट्टी एवं पोषक तत्व भी बह जाते हैं, जिससे मिट्टी क्षरण एवं मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। मिट्टी क्षरण को रोकने के लिए कुछ कृषि-विज्ञान संबंधी एवं जीव विज्ञान संबंधी उपायों का अनुकरण किया जा सकता है।

कैसे रोकें खेतों में मिट्टी
वर्षा से होने वाले मिट्टी के कटाव को रोकने में पेड़ों की जड़े बहुत अधिक सहायक होती हैं, इसके साथ ही यदि कटाई के बाद फसलों के बचे हुए भाग को मिट्टी के ऊपर बिछा दिया जाए तो इससे पानी के साथ बहने वाली मिट्टी तो रुकेगी ही साथ-साथ सूर्य की गर्मी से जो वाष्पीकरण होता है उससे भी बचा जा सकता है।
आमतौर पर किसान इन अवशेषों को जला देता है जिससे न केवल वायु प्रदूषण होता है बल्कि मिट्टी की उपजाऊ  क्षमता भी कम हो जाती है। यदि सिर्फ कृषि अवशेषों को जलाने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाईऑक्साईड की गणना की जाय, तो भारत विश्व में कार्बन डाई ऑक्साईड के उत्सर्जन में 18 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। यह अपने आप में एक बड़ी की जनसंख्या में श्वास नली संबंधी परेशानियां भी उत्पन्न करते हैं। मिट्टी संरक्षण में कुछ जैविक उपाय निम्न है-

  • वर्षा में पेड़-पौधे तेजी से बढ़ते हैं जिससे कि भूमि के ऊपर एक छतरी समान बन जाती है, वर्षा की बूंदें सीधे मिट्टी पर न गिरकर उससे होकर गुजरती हैं जिससे कि उनका वेग कम हो जाता है और कम वेग की वजह से मिट्टी ऊपर की ओर नहीं उछलती।
  • सोयाबीन, मक्का, ज्वार इस तरह की छतरी बनाने में काफी कारगर होते हैं, वर्षा के पहले इस तरह की फसल लगाकर मिट्टी के कटाव को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
  • कृषि अवशेषों की परत बिछाने से न केवल वाष्पीकरण एवं बहाव कम होता है बल्कि इसके अपघटन से लाभदायक पोषक तत्व भी मिट्टी में मिल जाते हैं जो कि अगली फसल के लिए उपयोगी है।
  • फसलों के संस्थापन के बाद भी हम बीच की जगहों में कृषि अवशेषों को डाल सकते हैं।
  • इस घांस-पांत को फसलों की कटाई के बाद मिट्टी में मिलाया जा सकता है जिससे कि मिट्टी की भौतिक एवं रसायनिक संरचना बेहतर बनती है।
  • घांसे जैसे कि वेटिवर, रोशा, मार्वल एवं गुईना काली मिट्टी के बहाव को रोकने में काफी सहायक है,इन्हें मेढ़ों पर लगाया जा सकता है।
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