पायलट रविराज ने किसानी में उड़ान भरी
हर किसी युवा का सपना होता है कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी सी नौकरी करे। लेकिन 31 वर्ष के युवा रविराज बिसेन ने पायलेट की तीन वर्ष की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद भी नौकरी के पीछे भागना पसंद नहीं किया और जैविक खेती में भाग्य आजमाना पसंद किया। अपने अथक परिश्रम एवं लगन ने रविराज दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया है।
बालाघाट जिले के उकवा के पास स्थित ग्राम पोंडी का रहने वाला है रविराज बिसेन। उसने भोपाल में तीन वर्ष का पायलेट ट्रेनिंग का कोर्स भी किया है। योग्य होने के बाद भी उसने नौकरी में जाने की बजाय अपनी खेती में ही कुछ नया कर दिखाने का तय कर लिया था। जैविक खेती एवं श्री पद्धति से फसल लगाकर रविराज ने धान, सरसों एवं सब्जियों में अधिक उत्पादन हासिल कर अपने क्षेत्र के किसानों को एक नई राह दिखा दी है। रविराज ने अपने 25 एकड़ खेत में इस वर्ष धान की पूरी खेती श्री पद्धति से की है। इससे उसने प्रति एकड़ 25 से 28 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त किया है।
रविराज ने गत वर्ष प्रयोग के तौर पर अपने एक एकड़ खेत में पीली सरसों लगाई थी। बालाघाट जिले में किसानों द्वारा प्राय: लाल सरसों ही लगाई जाती है। लाल सरसों में 33 प्रतिशत तेल होता है। जबकि पीली सरसों में 43 प्रतिशत तेल होता है और लाल सरसों की तुलना में अधिक दाम पर बिकती है। उसने सरसों के बीज की नर्सरी तैयार कर धान के रोपा की तरह सरसों का रोपा श्री पद्धति से लगाया था। तीन-तीन फीट की दूरी पर एक एकड़ खेत में सरसों के कुल 4900 पौधे लगाये गये थे। रवि को एक एकड़ में सरसों का चकित करने वाला 17 क्विंटल उत्पादन प्राप्त हुआ था।
एक एकड़ में लगे सरसों के पौधों की ऊंचाई 6 फुट तक पहुंच गयी थी। रविराज ने अपने क्षेत्र के किसानों को जैविक और श्री पद्धति से खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने का बीड़ा उठा लिया है। वह अपने स्वयं के संसाधनों से एवं कृषि विभाग के सहयोग से क्षेत्र के किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण देने लगा है। रवि का कहना है कि रसायानिक खाद के उपयोग से हमारे खेतों में पैदा होने वाला अनाज प्रदूषित हो जाता है। इस प्रदूषित अनाज के सेवन से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे बचने का एकमात्र उपाय जैविक खेती है। जैविक खेती से अनाज के प्राकृतिक गुण नष्ट नहीं होते हैं।