म.प्र. राजस्व प्रशासन अंधेर नगरी चौपट राज
- श्रीकान्त काबरा, मो. 9406523699
कृषि भूमि पर अवैध बसाहट को हतोत्साहित करने के लिए भोपाल जिला प्रशासन ने नये दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिनके अनुसार कृषि भूमि का 2165 वर्गफुट से कम का बटान शासकीय अभिलेख में अंकित नहीं होगा और इसी तारतम्य में जिला प्रशासन ने पूर्ववर्ती वर्षों में किये लगभग 50 हजार भूखंडों को जो कि 2165 वर्ग फुट से कम थे, उनका नामांतरण निरस्त कर ऐसे भूधारकों को किसान मानने से और ऐसे भूखंडों को कृषि कार्य हेतु उपयोगी मानने से मना कर दिया है। प्रशासन के अनुसार आधा एकड़ से कम बटान कृषि भूमि का कृषि प्रयोजन के लिये कृषि योग्य नहीं माना जाएगा तब कृषि भूमि पर 2165 वर्गफुट का बिना डायवर्सन के भूखंड के बटान का क्या औचित्य है?
कृषि भूमि के विक्रय के लिए किसी भी स्तर पर खरीद-बिक्री के लिए पंजीयन हेतु वर्गफुट में मूल्य निर्धारित करना पूर्णत: विसंगति पूर्ण, अवैध बसाहट को प्रोत्साहित करना मात्र है। एक ओर कृषि भूमि पर छोटे भूखंड बनाकर इनके पंजीयन को वैधानिक मान्यता देकर शासन पंजीयन शुल्क वसूल कर अपनी राजस्व आय बढ़ा कर खजाना भर रहा है। और दूसरी ओर कृषि भूमि पर बने मकानों को अवैध बसाहट मानकर जिला प्रशासन उन्हें तोड़-फोड़ कर उजाड़ रहा है। पूरी प्रक्रिया में इससे जुड़े कर्मचारी अधिकारीगण भ्रष्ट तरीके से माल बना रहे हैं। पंजीयन विभाग कृषि भूमि का वर्गफुट में मूल्य निर्धारित कर पंजीयन करके अवैध बसाहट को बढ़ावा दे रहा है, राजस्व विभाग के कर्मचारीगण इन छोटे भूखंडों का नामांतरण कर चांदी काट रहे हैं, ग्राम और नगर निवेश विभाग से लेकर नगर पालिकायें, नगर निगम, पंचायतें और राजस्व प्रशासन इन्हें अवैध ठहरा रहा है, डंके की चोट, खुलेआम भूमाफिया समाचार-पत्रों में विज्ञापन देकर, सड़क किनारे गुमठियां लगा कर इन भूखंडों को बेचने के खेल में मोटा माल बना रहे हैं व शासकीय, वैधानिक नियम कायदों से अनभिज्ञ किसान ठगी और कानूनी पचड़ों में घिरता जा रहा है।
कृषि भूमि पर 2165 वर्गफुट के भूखंड के पंजीयन को भोपाल जिला प्रशासन द्वारा वैधानिक रूप से मान्य ठहराने का क्या औचित्य है? क्या इतने छोटे भूखंड का कृषि भूमि के नक्शे पर बटान अंकित किया जा सकना संभव है? क्या बटांकन का नंबर नक्शे पर दर्शाया जाना संभव है? बड़ी धांधली चल रही है। कृषि भूमि पर इतने छोटे बटान की जिला प्रशासन द्वारा स्वीकृति दिया जाना कुछ ऐसा ही है- चोर से कहें चोरी कर और साहूकार से कहें होशियार रह। अवैध अतिक्रमण से मध्यप्रदेश का कोई भी गांव, शहर अछूता नहीं है। इसका प्रमुख कारण राजनैतिक हस्तक्षेप, सत्ता में बने रहने के लिये इस लूट तंत्र की न केवल अनदेखी करना वरन उसे संरक्षण प्रदान करना प्रशासकीय अकर्मण्यता, अक्षमता और उसकी इस लूट तंत्र में हिस्सेदारी होना है। यह कोई दबी-छुपी बात नहीं है। प्रजातंत्र में इस दुरावस्था को हर स्तर पर सभी लोग जानते हुए अपने हित लाभ का आकलन कर सहयोगी बने हुए हैं, जिसकी लाठी उसकी भैंस यही व्यवस्था चल रही हैं, न तो किसी को देश की फिक्र है और न ही अगली पीढ़ी की, तभी भू-माफिया हावी हैं ईमानदार कर्मचारी संरक्षण के अभाव में या तो पिट रहे हैं या चुप्पी साधे हुए हैं।