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इस साल सामान्य रहेगा मानसून

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इस साल सामान्य रहेगा मानसून लगभग 96 फीसदी होगी बारिश

(नई दिल्ली कार्यालय)
नई दिल्ली। इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान अच्छी बारिश होने की संभावना है। भारतीय मौसम विभाग ने अपनी पहली भविष्यवाणी में गत दिनों कहा कि इस साल मानसून सामान्य रहेगा और लंबी अवधि के औसत के करीब 96 फीसदी बारिश होगी। मानसून सामान्य रहने से कृषि उपज, ग्रामीण मांग और मुद्रा स्फीति पर सकारात्मक असर पडऩे की संभावना है। बहरहाल विश्लेषकों का कहना है कि अच्छे मानसून के साथ ही देश में बारिश के वितरण का भी अहम योगदान होता है।

मौसम विभाग ने मानसून सामान्य रहने का अनुमान इसीलिए लगाया है क्योंकि अल-नीनो कमजोर पडऩे की संभावना है और हिंद महासागर में सकारात्मक स्थिति बन सकती है। इन दोनों का दक्षिण-पश्चिम मानसून पर सकारात्मक असर पड़ेगा, लेकिन बारिश की तीव्रता को लेकर आशंका बनी हुई है। मौसम विभाग के मुताबिक सामान्य बारिश की संभावना 38 फीसदी है। अनुमान में 5 फीसदी घट-बढ़ हो सकती है। मौसम विभाग ने अपने पहले अनुमान में कहा कि शुरुआती संकेतों से पता चलता है कि मानसून के दौरान देश भर में बारिश का वितरण एकसमान रह सकता है यानी बारिश पूरे देश में होगी। हालांकि बारिश के क्षेत्रवार वितरण का विस्तृत अनुमान जून के शुरुआत में जारी किया जाएगा, जब तक अल-नीनो के बारे में स्थिति और स्पष्टï हो सकती है।
भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक श्री केजे रमेश ने कहा, ताजा अनुमान से संकेत मिलता है कि मानसून के अंतिम हिस्से में कमजोर अल-नीनो की स्थिति बन सकती है लेकिन सकारात्मक हिंद महासागर डायपोल की स्थिति सामान्य या उससे अधिक बारिश के लिए मुफीद हो सकती है। जून से सितंबर के दौरान लंबी अवधि के औसत की 96 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य मानसून माना जाता है। 90 फीसदी से नीचे रहने पर बारिश कम मानी जाती है। इसी तरह 105 से 110 फीसदी बारिश को सामान्य से अधिक बारिश कहा जाता है। विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार अलनीनो विकसित होने की संभावना महज 30 से 40 फीसदी है। इतना ही नहीं जिस अवधि में अलनीनो विकसित होना शुरू होगा, उस दौरान देश में मानसून अंतिम चरण में होता है। बारिश से जुड़ी गतिविधियां थमने लगती है और कृषि कार्य हो चुके होते हैं।

कैसे बनता है अलनीनो
वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के निकट खासकर पेरू वाले क्षेत्र में यदि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द समुद्र की सतह अचानक गर्म होनी शुरू हो जाए तो अलनीनो बनता है। यदि तापमान में 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच बढ़ोतरी हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है। इससे मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है।  असर यह होता है कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली ट्रेड विंड कमजोर पडऩे लगती है। ये हवाएं मानसून हवाएं होती हैं, जो भारत में बारिश करती है।
क्या होता है असर
2014 और 2015 में अलनीनो के चलते देश में सामान्य से क्रमश: 11 व 14 फीसदी कम बारिश हुई थी। हालांकि कुछ साल ऐसे भी है जब अलनीनो के बावजूद अच्छी बारिश हुई है। मौसम विभाग के महानिदेशक श्री रमेश साफ करते हैं कि अलनीनो मानसून को प्रभावित करने वाला सिर्फ एक कारक है।  इस वर्ष  30 से 40 फीसदी अलनीनो प्रशांत महासागर में विकसित होने की संभावना है।

 

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