घर में बगिया लगाएं
किसान, उपभोक्ता को लूट से बचाएं
इसे विडम्बना ही कहा जाये कि वर्तमान में न तो कृषक को अपनी फसल के उचित दाम मिल पा रहे हैं और न ही उपभोक्ता को उचित मूल्य पर गुणवत्ता पूर्ण उत्पाद मिल पा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा घोषित एमएसपी के मुताबिक कृषक को उसके उत्पाद का कम से कम घोषित मूल्य तो मिलना ही चाहिए। डॉ. स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा के अनुसार कृषक को लागत मूल्य का डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिये। इसके विपरीत एमएसपी निर्धारण करने में स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसाओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा। इसी प्रकार ज्यादातर किसान भी एमएसपी के अनुरूप दाम मिल पाने से वंचित हैं। इसीलिये लागत न मिलने और आदानों के दिन- प्रतिदिन महंगे होते जाने के फलस्वरूप कृषकों में असंतोष बढ़ता जा रहा है और वह आंदोलनों और आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहा है। यह स्थिति भारत जैसे कृषि प्रधान देश जिसमें 60-70 प्रतिशत आबादी कृषि पर आधारित है के लिये अत्यंत घातक है। घटी हुई कीमतों का लाभ उपभोक्ता तक न पहुंच पाना बढ़ती महंगाई का बड़ा कारण है। |
कृषक संरक्षण – मैं जब भी ग्रामीण हाटों में जाता हूं तो मुझे यह देखकर बहुत दुख होता है कि किसान अधिकतर खाद्य सामग्री विशेष रूप से सब्जियां बाजार से खरीदता है। कृषक अपनी जमीन पर अपनी आवश्यकता की सब्जी एवं खाद्यान्न पैदा कर सकता है। इसके लिये कृषकों को अपनी वाटिका बनाना होगी। वाटिका के लिये परिवार में सदस्यों की संख्या अनुसार, आधा से एक एकड़ सिंचाई सुविधा के पास जगह निर्धारित करनी होगी। इसमें मौसमी सब्जियों के लिये क्यारियां 15 बाई 6 या 20 बाई 6 फिट की सुविधा अनुसार बनाई जा सकती हैं। इनके बीच में चलने के लिये 2 फिट का रास्ता छोड़ दें। इनके किनारे-किनारे सिंचाई के लिये नालियां या पाइप लगाये जा सकते हैं। इस प्रकार की 10 से 15 क्यारियां बनाना उपयुक्त होगा। शेष क्षेत्र में गेहूं, चावल, चना, मसूर, उड़द, मूंग, मूंगफली, गन्ना, सरसों, तिल्ली, करड़ी, मक्का, ज्वार, बाजरा लगाने के लिये बड़ी क्यारियां लगाई जा सकती हैं। इन क्यारियों में मौसम अनुकूल सब्जियां, दलहन, तिलहन एवं अन्य उत्पाद जैविक कृषि पद्धति से उत्पादित किये जा सकते हैं। क्षेत्र अनुसार ये सब्जियां लगाई जा सकती हैं-
सब्जियां खरीफ – लौकी, गिलकी, तोरई, कद्दू, कुंदरू, बरबटी, भिंडी, टमाटर, बैंगन, पालक, लाल भाजी, मिर्ची, सेम, खीरा, धनिया, मटर, गुनगा, प्याज
सब्जी रबी- मटर, फूलगोभी, पत्ता गोभी, बंद गोभी, पालक, मैथी, सरसों, लाल भाजी, बैंगन, टमाटर, मूली, शलजम, चुकंदर, धनिया, गाजर, राजिमा, आलू, प्याज, लहसुन, मिर्च
जायद– लोकी, गिलकी, खीरा, ककड़ी, धनिया, मिर्च, बैंगन, टमाटर, प्याज, मिर्च
अनाज, खरीफ – धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, सवां
अनाज, रबी – गेहूं, जौ
दलहन, खरीफ मूंग, उड़द, अरहर
रबी – मूंग, उड़द
तिलहन – खरीफ – मूंगफली, तिल
रबी – सरसों, कुसुम
अन्य फसलें – गन्ना इसी के साथ गृहवाटिका एवं अतिशेष जमीन पर अन्तरवर्तीय फसलें एवं फलों का समावेश भी किया जा सकता है।
फल – नींबू, अमरूद, संतरा, मौसम्बी, आम, चीकू, केला, पपीता अपनी आवश्यकता की खाद्यान्न, सब्जी एवं फल उत्पादित करने के पश्चात अति शेष उत्पाद को भी कच्चे माल के रूप में बेचने के बजाय गांव में ही ग्रुप बनाकर प्रोसेसिंग करके बेचने पर उत्पादक को अधिक लाभ मिल सकेगा। कृषक उत्पादन के लिये यह आवश्यक, स्वास्थ्यवर्धक, मिट्टी के लिये उपयुक्त एवं पर्यावरण के अनुकूल सब्जियों के लिये पूर्ण रूप से जैविक पद्धति अपनाएं और संभव हो तो शेष जमीन पर जैविक प्रणाली अपनाकर अपनी मिट्टी की सेहत बचायें। लागत मूल्य कम करें और अधिक लाभ अर्जित करें। यहां यह भी आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक कृषक अपनी आवश्यकता का उत्पादन स्वयं करें। इसे ग्रुप बनाकर सदस्यों के बीच अलग-अलग फसल निर्धारित कर लगा सकते हैं। उत्पाद को बार्टर) प्रणाली के आधार पर आपस में अदला-बदली भी कर सकते हैं।
अन्तरवर्तीय फसल | कतार |
खरीफ | |
मक्का + सोयाबीन | 2:04 |
कपास + सोयाबीन | 2:02 |
सोयाबीन + अरहर | 4:02 |
मक्का + कपास | 2:02 |
मक्का + मूंग | 2:02 |
अरहर + उड़द | 2:02 |
अरहर + मक्का | 1:02 |
तिल + उड़द | 2:02 |
तिल + मूंग | 1:01 |
रबी | |
चना + सरसों | 9:01 |
गन्ना + चना | 1:02 |
गन्ना + मूंग | 1:01 |
गन्ना + धनिया | 1:03 |
सरसों + मसूर | 1:09 |
फलों के बागानों में अंतरवर्तीय फसलों को बढ़ावा |
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आम + हल्दी/अदरक | |
नींबू/अनार/अमरूद + मेथी | |
मोसम्बी + धनिया व मेथी | |
संतरा/अमरूद + मटर | |
केला + प्याज/चना | |
हल्दी + अरण्डी | |
हल्दी + अरहर |
भावांतर से भाव गिरे इस संतुलन के लिये बहुत समझपूर्ण नीतिगत कदम न उठाये गए, तो यह गले की फांसी बन सकता है। इसका ज्वलंत उदाहरण है म.प्र. शासन की कृषि उत्पादन को अवमूल्यन से बचाने की भावान्तर योजना। इस योजना के घोषित एवं लागू होते ही बाजार में कृषि उत्पादों के दाम पिछले वर्ष की तुलना में 10 से 25 प्रतिशत घट गये। वही मॉडल रेट शासन द्वारा निर्धारित किये जाने का कोई औचित्य ही नहीं है। यह उपभोक्ता, उत्पादक एवं सरकार तीनों के लिये ही घाटे का सौदा बन गया है। उदाहरण स्वरूप उड़द को ही लें। उड़द का समर्थन मूल्य इस वर्ष रूपये 5400 प्रति क्विंटल है। इसके विरूद्ध बाजार में कृषकों को उड़द के भाव रुपये 700 प्रति क्विंटल से 22-23 सौ रुपये प्रति क्विंटल ही दाम मिल पा रहे हैं। जबकि शासन द्वारा निर्धारित मॉडल रेट रु. 3000 के आसपास है। यानि 3000 रुपये से रेट चाहे कितना भी कम हो, किसान को भावान्तर योजना में 2400 रुपये से अधिक क्षतिपूर्ति नहीं मिल सकेगी। इस प्रकार 3000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे मिली दर का शुद्ध नुकसान, किसान के हिस्से का है। वहीं सरकार का नुकसान 2400 रु. तक मार्जिन राशि का प्रति क्विंटल है। जबकि उपभोक्ता को यही उड़द रु. 11000 से 13000 प्रति क्विंटल या रु. 110 से 130 प्रति किलो तक मिल रही है। जाहिर है कि बिचौलिये कम से कम 3-4 गुना मुनाफा कमा रहे हैं। शासन के खजाने से भी हजारों करोड़ राशि खर्च की जा रही है, जिसका अंतत: भार उपभोक्ताओं पर ही आना है। अत: परिस्थितियां सभी के लिए असंतोषजनक हैं। ऐसे परिदृश्य में जब शासन अपना दायित्व कैसे निभाएं, यह ठीक से समझ नहीं पा रहा है, कृषक एवं उपभोक्ता को ही मध्यवर्ती रास्ता निकालना होगा। किसान का अर्थशा वैसे भी मेरे मन में हमेशा विचार आता है कि जब कृषक को बाजार में समुचित मूल्य नहीं मिलता है तो वह बेचने मात्र के लिये कृषि उत्पाद क्यों पैदा करें। जबकि यदि अपनी मूल आवश्यकता के लिये विष रहित जैविक उत्पाद कृषक कर लें तो वह आत्मनिर्भर बन सकेगा। बाजार से उसे न तो आदान क्रय करना होंगे और न ही आवश्यक उत्पाद जल्दी में, औने-पौने दाम पर बाजार में बेचना होगा। खाद्यान्न एवं सब्जियों के अतिरिक्त उसे केवल साबुन, नमक, कपड़े, बच्चों की पढ़ाई, शादी-ब्याह आदि के लिये ही पैसों की आवश्यकता होगी, जिसकी व्यवस्था के लिये अतिशेष उत्पाद अपनी मर्जी की कीमत पर विक्रय कर पूर्ति कर सकता है। |