मध्यप्रदेश : मद में डूबी सरकार
लगभग डेढ़ दशक से राज्य में किसान हितैषी होने का दावा करने वाली मप्र सरकार ने किसानों पर गोली चलवा दी है। राज्य के मंदसौर, उज्जैन, रतलाम, नीमच, इन्दौर, धार में हिंसक प्रदर्शन एवं गोली चालान से छ: किसानों की मौत अचानक ही नहीं हुई है। राज्य के किसानों ने 01 जून से 10 दिसम्बर तक सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन एवं आंदोलन की चुनौती दे रखी थी। हिंसक प्रदर्शन के पांच दिन पूर्व तक आंदोलनकारी दूध सहित तरकारियों की सपलाई पूरे राज्य में रोके हुये थे। लेकिन राज्य सरकार का तंत्र एवं इंटेलीजेंसी इसे बड़े ही हल्के में ले रहे थे। अहम में डूबी राज्य सरकार ने, आन्दोलनकारी नेताओं से बातचीत करने के बजाय उन्हें कूटनीतिक मात देने की रणनीति बनाई थी।
राज्य के किसानों में बरसों पुराना आक्रोश
मप्र सरकार जहां लगातार पांच बरसों से अधिक उत्पादकता का जीत रही कृषि कर्मण अवॉर्ड के जश्न में डूबी हुई है तो राज्य के अन्नदाता को उसकी उत्पादित फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। राज्य का किसान पिछले चार बरसों से बेहद मुश्किलों में है। उसके पास परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन नहीं है। अभावों में जी रहा राज्य का कास्तकार – परिवार, रिश्तेदारों एवं बाजार के सामने हर पल शर्मिंदा हो रहा है। राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या देश में दूसरे नंबर पर है। पिछले दो बरसों से बंपर उत्पादन के बाद उसके उत्पादों को खरीदने उचित खरीददार नहीं मिल रहे हैं। जिसके कारण वह आलू, टमाटर एवं प्याज की फसलों को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हो चुका है। शासकीय समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी में जुटी सहकारी समितियां नगद भुगतान के बदले आंशिक राशि का अग्रिम तारीखों वाला चेक दे रही थी। इतना ही नहीं इस भुगतान के बदले सहकारी बैंकों द्वारा किसानों को दस रुपये मूल्य के सिक्कों वाली थैलियां थमायी जा रही थीं।
प्रतिवर्ष राज्य में नये वित्तीय वर्र्ष के शुरूआती माह में मिलने वाले किसान क्रेडिट कार्ड फसल ऋण पर राज्य सरकार ने इस वर्ष रोक लगा दी है। जैसे-तैसे राज्य सरकार जून माह में देने तैयार हुई तो इसे एकमुश्त ऋण देने के बजाय खरीफ फसल के दौरान क्रेडिट कार्ड के कुल ऋण का मात्र चालीस फीसदी देने का राज्य सरकार ने निर्णय लिया, सरकार के इस निर्णय के खिलाफ राज्य के किसानों में जनआक्रोश तेजी से पनपने लगा था। राज्य के भाजपा किसान प्रकोष्ठ के नेता भी सरकार से ऋण कटौती न करने का आग्रह कर रहे थे, लेकिन सत्ता के मद में डूबे सरकार के नुमाइंदों ने किसानों की मुश्किलों को समझने की कोई कोशिश ही नहीं की थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विदिशा प्रवास के दौरान जिला सहकारी बैंक के जिलाध्यक्ष श्यामसुन्दर शर्मा ने किसानों को बगैर किसी कटौती के किसान क्रेडिट कार्ड राशि का पूरा ऋण किसानों को उपलब्ध कराने का आग्रह किया था। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हालातों की गंभीरता को समझे बगैर किसान के पास पर्याप्त धन उपलब्धता की बात कर मुद्दे को बहुत हल्के में लेने की कोशिश की। मुख्यमंत्री को इस बयान ने भी पीडि़त किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का काम किया, इस तरह की पीड़ाओं ने राज्य के अन्नदाता को हिंसक बना दिया।
जल्दबाजी का समझौता
सरकार द्वारा जल्दबाजी में लाया गया समझौता, किसानों एवं सरकार के लिये अपरिपक्व ही है। समझौता के तहत सरकार किसानों से आठ रुपये किलो प्याज खरीदेगी। अब जबकि बारिश की शुरुआत हो चुकी है। सरकार अब इस प्याज को सड़ाकर पूर्व वर्ष की तरह सरकारी धन का अव्यय ही करने वाली है।
संकट मोचक बीमे को दरकिनार किया
समझौता में फसल बीमा को अब राज्य सरकार ने ऐच्छिक बनाने की बात कही है। यह वही फसल बीमा है जिसे गत वर्ष प्रधानमंत्री फसल बीमा के नाम पर प्रचारित किया गया था। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे किसानों का संकट मोचक बताया था। किसान क्रेडिट कार्ड से लोन लेनेे में फसल बीमा को एक आवश्यक अनिवार्य प्रक्रिया माना गया है। चूंकि यह बीमा किसानों की फसल सुरक्षा के लिये ही है। लेकिन राज्य सरकार इसे कैसे ऐच्छिक बना रही है। यह कम आश्चर्यजनक नहीं है। समझौते के तहत मानी गई मांगों से राज्य के किसानों का कोई बड़ा फायदा होता नहीं दिखाई देता है। असल में राज्य का किसान उसकी फसल का उचित मूल्य चाहता है। ताकि उसे लागत मूल्य के उपरांत एक निश्चित लाभ मिल सके। राज्य का वास्तविक किसान कर्जा माफी नहीं चाहता है। उसके बदले वह सरकार से सिंचाई का पानी, बीज, उर्वरक उपलब्धता की गारंटी चाहता है।
शिवराज बैकफुट पर
प्रदेश को विपक्ष विहीन मानने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं ही कांग्रेस को मुद्दा देकर कांग्रेस के लिये संजीवनी का काम कर दिया है। किसानों के मौत पर मुख्यमंत्री का उपवास एवं एक दिन बाद इसे खत्म करवाने के लिये भाजपा संगठन द्वारा प्रदेश भर से उपवास स्थल पर भीड़ जुटाने का प्रायोजित अभियान राज्य सरकार की मृतकों एवं राज्य के पीडि़त किसानों के प्रति संवेदनाओं की पोल खोलने वाला कार्यक्रम साबित हुआ है। भीड़ जुटाने के लिये राज्य के भाजपा विधायकों एंव पार्षदों द्वारा किये गये प्रयास राज्य सरकार की छबि खराब करने वाले रहे हंै, जो अगाामी विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ सरकार के खिलाफ एक बड़ी खतरे की घंटी है।
वक्त है सरकार किसानों के मर्म को समझें
मध्यप्रदेश का किसान आत्महत्या के मामले में देश के दूसरे नंबर पर बना रहना भी राज्य के अन्नदाता की बदहाली को प्रतिबिम्बित करता है। सहकारी समितियों में भ्रष्टाचार, नगद भुगतान की कमी, राजस्व एंव तहसीलों का असहनीय भ्रष्टाचार, हर छोटी बड़ी योजना के लाभ के लिये अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा सेवा शुल्क के रूप में ली जाने वाली रिश्वत ने राज्य के किसान को पल-पल अभावग्रस्त एवं मजबूर बना रखा है। वक्त है कि सरकार किसानों के बीच पहुंचकर वास्तविकता को समझने की कोशिश करें।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)