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केंचुआ से ‘कंचन’ बनाते कपिल

किसान की आज सबसे बड़ी समस्या खेती की लागत बढ़ जाना एवं उपज का मूल्य सही नहीं मिलना है, जिससे किसानों का खेती से उठता विश्वास चिंताजनक है। वर्तमान में समझदारी पूर्ण की जाने वाली खेती से ही कृषक अपना एवं परिवार का ठीक ढंग से पालन कर रहा है। कृषि की लागत में सबसे अधिक व्यय उर्वरक प्रबंधन का रहता है। पन्ना जिले के ग्राम सुंगरहा के कृषक श्री कपिल तिवारी ने सबसे पहले उर्वरक की लागत कम करने का संकल्प लिया। श्री तिवारी ने जैविक कृषि पाठशाला नैगवां जिला-कटनी में श्री रामसुख दुबे से मार्गदर्शन लेकर केंचुआ खाद बनाने का संकल्प लिया। इसके लिये पिछले वर्ष 2 वर्मी बेड जो कोल्हापुर महाराष्ट्र से बुलाये, इसमें 10 किलो प्रति बेड केंचुआ डाले इसके बाद 45 दिन में एक बेड से 22 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार हुई इसको धान के खेत में डाला गया जिसमें बेहतर परिणाम से उत्साहित श्री तिवारी ने 8 बेड और तैयार किये। 10 बेड की लागत 15000/- रु. आई जो कि जुलाई 2017 में निरन्तर वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) तैयार कर रहे हैं। 13 जानवरों का गोबर इन बेडों में डाला जाता है। इन बेडों से निर्मित खाद को श्री तिवारी अपनी 9 एकड़ भूमि पर डालते हैं। धान, गेहूं एवं सब्जी उत्पादन में इस खाद के बेहतर परिणाम मिले हैं जिसका उदाहरण इनके द्वारा उत्पादित सब्जी समीपस्थ शाहनगर सब्जी मंडी में हाथों-हाथ अच्छे दाम पर विक्रय होती है। 1 एकड़ क्षेत्र में 10 क्विंटल खाद का बिखराव करते हैं। पहले रसायनिक उर्वरक 60000/- रु. (साठ हजार) व्यय करते हैं जो कि अब नहीं क्रय करते हैं।

श्री तिवारी बताते हैं कि वर्मी कम्पोस्ट खाद से पर्यावरण के साथ भूमि भी स्वस्थ रहती है। उत्पादन भी बढ़ता एवं लागत भी कम आती है। पेशे से पैथालॉजिस्ट श्री तिवारी सुबह 6 से 11 बजे तक खेत में ही रहकर कृषि कार्य देखते हैं। इनका ग्राम कुशवाह (काछी) बहुल्य होने के कारण सब्जी उत्पादक अन्य कृषकों को केंचुआ खाद उपलब्ध कराते हैं। भविष्य में स्वयं द्वारा निर्मित केंचुआ खाद का ब्राण्ड बनाकर अन्य कृषकों को उपलब्ध करायेंगे एवं अपनी भूमि पर जैविक तरीके से उत्पादन के लिए प्रमाणीकरण कराने की योजना है। अन्य जानकारी श्री तिवारी के मो. : 9575030333 पर ले सकते हैं।

– प्रकाश दुबे

जैविक खाद बनाने के तरीके व लाभ

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