जैविक खेती में नवाचार
कृषि क्षेत्र में संसाधनों की कमी, बढ़ती जनसंख्या, भूमि की घटती उपलब्धता और भूमि के क्षरण ने हमें इस बात पर पुर्नविचार हेतु बाध्य कर दिया है कि भविष्य की पीढ़ी के मद्देनजर हम किस प्रकार अपने संसाधनों खासकर भूमि का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करें, जिससे प्रति इकाई भूमि से सतत अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। इसके लिये कृषि के क्षेत्र में नवाचार की दिशा में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता समय की मांग है। बढ़ती जनसंख्या की कृषि के अतिरिक्त अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति से जमीन की उपलब्धता, समय के साथ-साथ कम होती जा रही है, जिसका प्रभाव हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों के अतिरिक्त शहरों में भी दिखाई दे रही है। खासकर बड़े शहरों के आसपास तो खेती की जमीन कांक्रीट के जंगलों में तब्दील होती जा रही है। इससे शहरी क्षेत्र के पर्यावरण में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है, हरियाली की कमी से तापमान में वृद्धि हो रही है। कृषि उत्पाद खासकर साग-सब्जी एवं फलों की बढ़ती मांग से महंगाई में भी वृद्धि हो रही है, साथ ही अंधाधुंध रसायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक दवाओं तथा फलों को पकाने हेतु एवं सब्जी को आकर्षक बनाने हेतु अमानक रसायनों का उपयोग बढ़ता जा रही है। इससे उत्पाद की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखने को मिल रहा है। शहरी क्षेत्रों में लगे पानी की निकासी के नालों के गंदे जल द्वारा सिंचित साग-सब्जी विशेषकर पत्तेदार (भाजी) सब्जियों में हानिकारक भारी तत्वों की निर्धारित सीमा से अधिक होना मानव स्वास्थ्य हेतु अत्यधिक हानिकारक है। शहरी क्षेत्रों में घरेलू कार्बनिक कचरा (साग-सब्जी के छिलके, बचे हुए खाद्य सामग्री आदि) भी आसपास के वातावरण को गंभीर रूप से प्रभावित करते हंै। साथ ही स्वच्छता अभियान में भी एक रूकावट का कार्य करती है। उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही साथ शहरी क्षेत्रों में भूमि एवं जल प्रबंधन के माध्यम से कृषि क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने हेतु पारंपरिक एवं नवाचार पद्धतियों को अपनाया जाना जरूरी है।
सेक्टर 2, अवंति विहार रायपुर (छत्तीसगढ़) की श्रीमती पुष्पा साहू अपने घर की छत पर सब्जी एवं फलों की खेती कर रही हैं। छत पर गोभी, बैंगन, कुंदरू, कांदा, भाजी, टमाटर, लौकी, मिर्च, पालक भाजी, मूली, धनिया, पुदीना आदि सब्जियों, गेंदा, गुलाब, मोगरा, नीलकमल आदि पुष्पों के साथ ही सेब, अमरूद, केला, आम, मौसंबी, नींबू, चीकू, पपीता और मुनगा फलों की खेती कर रही हैं। इन सभी चीजों की खेती में कृषि के हाईटेक तकनीकों का उपयोग करते हुए पूरी तरह जैविक उत्पाद अपनी आवश्यकता के अनुसार प्राप्त कर रही हैं। श्रीमती साहू बताती हैं कि आज महंगाई के कारण लोगों के लिये सब्जियां और फल खरीदना जहां एक ओर मुश्किल हो गया है वहीं दूसरी ओर रसायनमुक्त जैविक साग-सब्जी भी नहीं मिल पा रही है। इसलिये छत में बागवानी कर परिवार को केमिकल मुक्त सब्जियां खिला रही हैं। साथ ही महीने में लगभग पांच सौ से हजार रुपए बचा रही हैं। मात्र 2-3 हजार रुपए खर्च करने से आप पूरे साल भर मौसमी जैविक सब्जियों का स्वाद ले सकते हैं। इसी प्रकार 5-7 हजार रुपये खर्च कर आम, अमरूद, केला और चीकू जैसे फलों की भी खेती छत में की जा सकती है। श्रीमती पुष्पा साहू द्वारा अपने घर के छत में विभिन्न ऋतुओं के हिसाब से फलों की उन्नत प्रजाति के पौधे लगाने से साल भर विभिन्न फल मिले, इस सोच के साथ उन्होंने छत में बागवानी की खेती करने का काम साल 2012 से शुरू किया। |
छत की खेती के लाभ
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बहुवर्षीय साग-सब्जियों/फलों की खेती | |
सब्जियां | मुनगा |
फल | केला, पपीता, आम, चीकू, अनार, नींबू, संतरा, अमरूद, सीताफल |
मसाला वाली | लहसुन, प्याज, अदरक, हल्दी, |
फसलें | आमी हल्दी |
मौसमी साग-सब्जियों/फलों की माहवार खेती | ||
मई-जून से सितम्बर-अक्टूबर माह तक सितंबर – अक्टूबर से दिसंबर -जनवरी माह तक दिसंबर – जनवरी से मई-जून माह तक | ||
करेला, भटा, मिर्च, रखिया, बरबटी | लाल एवं अन्य पत्तेदार सब्जी, लब-लब, कद्दू, | तरोई, लाल एवं अन्य पत्तेदार |
भिंडी, कद्दू | टमाटर, भिंडी, रखिया | सब्जी, कद्दू, भटा, मिर्च, प्याज |
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तकनीकी मार्गदर्शन-डॉ. कृष्ण कुमार साहू मृदा विज्ञान एवं रसायन शा विभाग, इंगां.कृ.वि., रायपुर, मो. : 09826162940, ईमेल-email : iroigkv@gmail.com |