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कम वर्षा में खाद, बीज, किस्मों की रणनीति

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‘खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में तथा जिले का पानी जिले में रहे’ की अवधारणा अन्तर्गत भूमि में नमी संरक्षण की विधियां जैसे-खेत में डोली बनाना, मेड़बंदी, ढाल के विपरीत जुताई, भारी मिट्टी क्षेत्र में गर्मियों में जुताई, मल्च आदि नमी संरक्षण के कार्य किये जायें। सीडबेक तैयार करने के लिए कृृषि यंत्र जैसे कि रोटोवेटर और सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल अथवा जीरो टिलेज ड्रिल का उपयोग करना चाहिए, जिससे मृृदा नमी का पूर्ण उपयोग किया जा सके। हल्की भूमि में सिंचाई जल के हस को कम करने के लिए सिंचाई नालियों में पॉलीथिन शीट बिछा देनी चाहिए। यह पॉलीथिन शीट हल्की मिट्टी में पानी को नीचे नहीं जाने देती हैं। जिससे नालियों में ज्यादा पानी भूमि की निचली सतहों में नहीं जा पाता है।

 

  •  मुकेश कुमार चौधरी, मो: 9352867240

email : suman2011262@gmail.com

वर्षा की कई विषम अथवा विपरीत परिस्थितियां पैदा होती हैं जो निम्न हैं:-

  •     वर्षा का विलम्ब से प्रारम्भ होना।
  •     वर्षा का जल्दी समाप्त होना।
  •     बीच में लम्बे समय तक सूखे की स्थिति का होना।
  •     लम्बे समय के बाद मानसून के अन्त में अच्छी वर्षा का होना।
  •     फसल की विभिन्न अवस्थाओं पर भारी वर्षा एवं बाढ़ की स्थिति।

इन सभी विषम परिस्थितियों में फसल उत्पादन के जिन प्रमुख सिद्धान्तों की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हैं, वे निम्न प्रकार हैं:-

  •  फसल की किस्म कम अवधि वाली होनी चाहिए, साथ ही अधिक उपज वाली भी हो।
  •  फसल की किस्म को कम पानी की आवश्यकता होनी चाहिए।
  •  फसल की किस्म सूखा सहन करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
  •  फसल की किस्मों का चुनाव प्राप्त होने वाली वर्षा एवं मिट्टी के अनुरूप ही किया जावें।
  •  कम से कम तीन वर्ष में एक बार गोबर की खाद 8 से 10 टन या वर्मी कम्पोस्ट 4 से 5 टन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग अवश्य करें, ताकि भूमि में नमी धारण करने की क्षमता एवं उर्वराशक्ति बनी रहे।
  • बुआई से पूर्व बीजोपचार अवश्य करें।
  • प्रथम वर्षा होने पर ही बुआई एवं उर्वरक का प्रयोग ऊर कर करें।
  • फसल में तीसरे व चौथे सप्ताह में निराई-गुड़ाई अवश्य करें।
  • मिलवा फसलों की स्थिति अनुसार बुआई करें।
  • फसल की क्रान्तिक अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करें।
  • फसल में नत्रजन उर्वरकों को टॉप ड्रेसिंग के रूप में देें, यह प्रक्रिया न अपनाने पर 2 प्रतिशत यूरिया 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें।
  • सिंचाई की सुविधा होने पर जीवन रक्षक सिंचाई दें।
  • परिस्थिति के अनुसार अन्न अथवा चारे के रूप में फसल का चयन।
  • समन्वित कीट व व्याधि नियंत्रण तथा प्रबंधन करें।

सामान्य समय पर वर्षा होने पर अपनाई जाने वाली प्रमुख कृषि कार्य योजना:-

  • वर्षा शुरू होने पर खरीफ फसलों जैसे- बाजरा, मक्का, उड़द, मूंग, मोठ, ग्वार आदि की बुआई करें।
  • फसल की सिफरिश के अनुसार बीज दर एवं अन्य शस्य क्रियायें अपनाई जायें।
  • मिलवा फसल में बाजरा के साथ मूंग अथवा उड़द आदि दलहनी फसलें लेें।
  • उन्नत अल्पावधि किस्मों की बुआई करें।
  • बाजरा फसल में असिंचित परिस्थितियों में उर्वरक सिफारिश के अनुसार बुआई से पूर्व उरकर अवश्य दें।
  • सिंचित क्षेत्र में बाजरा, मक्का, धान, कपास, उड़द व अरहर में सभी उन्नत कृृषि विधियां सिफारिश अनुसार अपनायें।
  • दलहनी फसलों में उर्वरक की पूरी मात्रा बुआई से पूर्व दें।
  • अन्न वाली व तिलहन फसलों में नत्रजनीय उर्वरक की आधी मात्रा व फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों की पूरी मात्रा बुआई से पूर्व दें। शेष आधी मात्रा भूमि में नमी होने पर खड़ी फसल में बुआई के तीन-चार सप्ताह बाद दें।
  • पोटाश युक्त उर्वरकों का प्रयोग आवश्यकतानुसार मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें।
  • मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही भूमि में जिंक की कमी होने पर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें।
  • कीट व व्याधियों से फसल की रक्षा के लिए समुचित पौध संरक्षण उपाय अपनायें।
  • पानी भराव वाले इलाकों में जल निकास की व्यवस्था करें।
  • धान उत्पादक क्षेत्रों में सामुदायिक पौधशाला (रोपणी) हेतु किसानों को प्रेरित करें।
  • जहां संभव हो रबी की फसलों हेतु नमी का संरक्षण करें।

फसल काल में लम्बे समय तक सूखे की स्थिति में अपनाई जाने वाली प्रमुख कृषि कार्ययोजना:-

  • यदि वर्षा समय पर आ जाती हैं और इसके 10 से 15 दिन बाद सूखे की स्थिति होने पर बोई गई फसलें सूख जाती हैं और वर्षा पुन: प्राप्त हो जाती है तो वैकल्पिक फसलों अथवा अल्पावधि किस्मों की 15 से 20 प्रतिशत अधिक बीज दर रखकर बुआई की जानी चाहिए।
  • यदि सूखे की स्थिति 30 से 45 दिन बाद आती है तो उपलब्ध नमी को ध्यान में रखते हुए उचित पौध संख्या बनाए रखने हेतु फसल की छटाई करें।
  • सतह आवरण (मल्चिंग) द्वारा भूमि में नमी संरक्षण का कार्य करें।
  • यदि फसल में लम्बे अन्तराल पर वर्षा न होने से 15 अगस्त तक सुख जाती है और इसके बाद वर्षा होने पर भूमि में नमी संरक्षण के उपाय अपनावें जावे तथा तोरिया, सरसों, अलसी, धनिया व चना फसलों की बुआई करें।
  • सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने की स्थिति में सामयिक जीवन रक्षक सिंचाई करना चाहिए।
  • सूखे के कारण फसल खराब हो जाने पर इसका चारे के रूप में प्रयोग करें।

वर्षा जल्दी समाप्त (15 से 20 अगस्त) होने पर अपनाई जाने वाली प्रमुख कृृषि कार्ययोजना:-

  • खेत में खरपतवार निकालें और इनको फसलों की कतारों के बीच सतह आवरण के रूप में बिछावें ताकि भूमि की सतह से वाष्पीकरण को कम किया जा सकें।
  • मिलवा फसलों में से संवेदनशील फसल को उखाड़ कर चारे के रूप में उपयोग में लेवें।
  • यदि फसल पूर्णत: नष्ट होने की आशंका है तो चारे के रूप में काम में लेें।
  • जल संग्रहित वर्षा क्षेत्र से जीवन रक्षक सिंचाई के काम में लें।
  • नमी संरक्षण के लिए खड़ी फसल में बखर चलाकर मृृदा आवरण करें।
  • बाजरा में फूल आने की अवस्था पर थायो यूरिया 0.5 प्रतिशत का छिड़काव सिफारिश अनुसार करें।

 लम्बे समय के बाद मानसून के अन्त में भारी वर्षा होने पर अपनाई जाने वाली प्रमुख कृषि कार्ययोजना:-
इसमें भूमि में नमी संरक्षण की क्रियायें अपनायी जानी चाहिए ताकि रबी के मौसम में फसलों की खेती संभव हो सके। इसमें पानी व नमी संरक्षण के लिए सामान्यत: निम्न कृृषि क्रियायें कारगर पाई गई है:-

  • खेतों की मेड़ों को मजबूत करें ताकि पानी खेत से बाहर न जा सके।
  • खाली खेतों में पशुओं की नियंत्रित चराई।
  • सामयिक भू-परिष्करण (जुताई व पाटा लगाना) द्वारा नमी संरक्षण।
  • खड़ी फसल में खरपतवार निकालकर मल्चिंग करना।
  • खरपतवार नियंत्रण।
  • खड़ीन अथवा निचले स्थानों पर जल का एकत्रीकरण।
  • रबी की अल्पावधि फसलों की विभागीय अनुशंसानुसार बुआई करें।

 

 

विलम्ब से वर्षा होने पर (जुलाई के दूसरे सप्ताह बाद) अपनाई जाने वाली प्रमुख कृृषि कार्ययोजना
 

 

 

  • यदि वर्षा जुलाई के दूसरे सप्ताह बाद शुरू हो तो बाजरा की जल्दी पकने वाली किस्मों की बुआई करनी चाहिए। वर्षा के तीसरे सप्ताह बाद होने पर अनाज के स्थान पर दलहनी फसलों की बुआई करनी चाहिए।
  •  विभिन्न फसलों की किस्मों मे सिफारिश अनुसार उर्वरक बुआई से पूर्व देें।
  • फसल में समय पर ही खरपतवार निकालना चाहिए।
  • भूमि में नमी संरक्षण और मृदा आवरण बनाने हेतु निराई-गुड़ाई करें।
  • यदि वर्षा देर से प्रारंभ हो और सितम्बर तक रहे तो ऐसी पड़त भूमि में नमी संरक्षण  अपनाकर तोरिया, तारामीरा और सरसों की बुआई करें।
  • वर्षा देर से होने पर चारे की फसलों जैसे कि ज्वार, बाजरा, मक्का, ग्वार, चौला की बुआई करें।
  •  फसलों की मिलवा बुआई करनी चाहिए, जिससे एक फसल के नष्ट होने पर दूसरी फसल ली जा सकें।
  •  यदि वर्षा अगस्त के प्रथम सप्ताह में भी वर्षा न होने पर रबी फसलों की बुआई के लिए नमी संरक्षण के उपाय करें।
  • दलहनी व तिलहनी फसलों में बीज दर सामान्य से 15-20 प्रतिशत ज्यादा काम में लें।
  • वर्षा की संभावना को देखते हुए बाजरा, मक्का, धान एवं ज्वार की शुष्क बुआई करें।
  • वर्षा देर से होने पर अनाज वाली फसलों के शीघ्र व अच्छे अंकुरण के लिए बीजों को 10 घंटे 2 प्रतिशत नमक के घोल में भिगोकर बुआई करें।

 

 भारी वर्षा व बाढ़ की स्थिति में अपनाई जाने वाली प्रमुख कृषि कार्ययोजना

  • खेत में अतिरिक्त पानी के निकास की व्यवस्था करें।

  • यदि भारी वर्षा व बाढ़ से फसल पूर्णरूप से नष्ट हो गई तो बाढ़ की स्थिति सुधर जाने पर 15 अगस्त के पहले दलहनी अल्पावधि फसलों की किस्मों की 15 से 20 प्रतिशत अधिक बीजदर रखकर बुआई करें।
  • अगस्त के दूसरे सप्ताह में चारे के लिए बाजरा, ज्वार व ग्वार बोयें।
  • यदि बोयी गई अन्न व तिलहनी फसलों की बढ़वार कम दिखाई देने पर खड़ी फसल में नत्रजनीय उर्वरक दें।
  • कीटों व बीमारियों का भारी प्रक्रोप होने की स्थिति में सिफारिशानुसार समुचित पौध संरक्षण उपाय अपनावें।
  • बाढ़ सम्भावित निचले भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में धान की बुआई करें।

 

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