Crop Cultivation (फसल की खेती)

गेंहूं के खेतों में नरवाई प्रबंधन

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, इंदौर के द्वारा शुरू की गई परियोजना मेरा गाँव मेरा गौरव के अंतर्गत पुन: मोबाइल आधारित पूसा एम कृषि-सलाह सेवा मध्य प्रदेश के सभी जिलों में शुरु की गई। पूसा एम कृषि- एक माध्यम है जो किसानों को कृषि अनुसंधान संस्थानों से जोड़ता है और मोबाइल पर ही उनकी समस्या का समाधान भी करता है। इस एप्लीकेशन द्वारा ग्रामीण किसानों के लिए विशेषज्ञ सलाह प्रदान की जाती है। पूसा एम.कृषि.एप्लीकेशन के द्वारा किसानों के मोबाइल पर फसल अलर्ट सन्देश, स्थानीय मंडी भाव तथा मौसम की पूर्व जानकारी के साथ फसल की बुवाई, सिंचाई का समय, कटाई, भण्डारण, पोषक तत्वों, कीट एवं बीमारियों की जानकारी तथा किसानों द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब कृषि विशेषज्ञ के द्वारा स्थानीय भाषा में लिखित या वाईस सन्देश के द्वारा प्रदान किया जाता है।
इस एप्लीकेशन में किसान फसल का फोटो खींचकर विशेषज्ञ तक पहुंचाकर अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकता है। इस समय गेहूं फसल की कटाई का काम बहुत तेजी से चल रहा है और अनेक स्थानों पर कटाई का काम पूर्ण भी हो चुका है। किसान भाईयों से निवेदन है कि हार्वेस्टर से गेहंू फसल की कटाई करने के बाद बचे हुए फसल अवशेष यानि नरवाई में आग नहीं लगाएं तथा सरकार द्वारा इसे अपराध घोषित किया जा चुका है। साथ ही यह खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। क्योंकि नरवाई के जलने से फसल अवशेषों में उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं जोकि आगे बोई जाने वाली फसल के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। साथ ही भूमि की ऊपरी सतह में अरबों की संख्या में पाये जाने वाले मित्र जीव – केंचुआ, बैक्टीरिया और फफूंद आदि भी आग लगाने से अक्रियाशील हो जाते हैं तथा भूमि की उर्वराशक्ति बुरी तरह से प्रभावित होती। हम जिस रूप में पोषक तत्वों को जमीन में डालते है, पौधे उसी रूप में पोषक तत्वों को प्राप्त नहीं करते। भूमि की ऊपरी सतह में स्थित लाभदायक सूक्ष्मजीवों के द्वारा इन पोषक तत्वों को एक निश्चित वातावरण एवं प्रक्रिया के तहत प्राप्य रूप में बदलते है। खेतों में आग लगाने से इन लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या कम होती जाती है। जिससे अगली फसलों में महत्वपूर्ण उर्वरकों की अधिक मात्रा खेतों में डालनी पड़ती है। रसायनिक उर्वरकों का आवश्यकता से अधिक मात्रा में प्रयोग करने से मिट्टी की प्रकृति बदल जाती है तथा सूक्ष्मजीवों की संख्या काम होने पर मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। पर्यावरण को नुकसान फसल अवशेष जलाने से वायुमंडल और भूमि का तापमान बढ़ जाता है। वायुमंडल एवं भूमि में आक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाईआक्साइड जैसी गैसों की बढ़ोतरी हो जाती है, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक होती है।
पशु चारे की कमी अधिकतर फसलों के भूसे का उपयोग चारे के रूप में होता है। फसल कटाई के बाद फसलों के अवशेष जलाने से कम से कम 10 क्विंटल भूसा प्रति एकड़ नष्ट हो जाता है।
हादसे- फसल अवशेष जलाने से कई बार हादसे भी हो जाते हैं। आग खेतों से फैलती हुई दूसरे किसान के खेत तक पहुंच जाती है।
फसल अवशेष प्रबंधन – हार्वेस्टर द्वारा छोड़े गये फसल अवशेष एवं डंठल की कटाई ट्रेक्टर चलित स्ट्रारीपर से कर सकते है। इस ट्रैक्टर चलित स्ट्रारीपर के द्वारा एक घंटे में लगभग एक एकड़ क्षेत्र के डंठलों को काटकर भूसे में बदल देता है। जिससे लगभग10 क्विंटल तक भूसा प्राप्त होता है। जिसका उपयोग पशुओं को खिलाने के लिये तथा बचे हुए भूसे से जैविक खाद भी बना सकते है या बेच कर अतिरिक्त आय भी प्राप्त की जा सकती है। इस यंत्र के अलावा कल्टीवेटर एवं रोटावेटर से फसल अवशेष को बारीक कर मिट्टी में मिलाने सेयह जैविक खाद बन जाती है। रोटावेटर उपलब्ध न होने की स्थिति में खेतों की गहरी जुताई करने से भी नरवाई मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाती है। फसल अवशेष को यदि मिट्टी में नहीं मिलाएं तो इन फसल अवशेष को एकत्रित कर जैविक खाद बनाना चाहिए। इसके अतिरिक्त बिना जुताई (जीरो जुताई) अपनाकर खेती कर सकते हैं तथा कुछ सावधानी बरत कर जैसे रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण, समय पर पानी लगाना आदि से अच्छा मुनाफा कमाने के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए विशेष प्रकार की जीरो जुताई मशीन का उपयोग किया जाता है जिसमें खेत तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती है। आजकल बाजार में नरवाई के जल्दी सडऩे के लिए कल्चर उपलब्ध है जिनसे जैविक खाद बनाकर खेतों में इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी भी सूरत में नरवाई को जलाएं नहीं तथा इसका सदुपयोग उपरोक्तानुसार करें। नरवाई जलना मतलब खेत की उर्वराशक्ति का सत्यानाश करना है। इससे बचें तथा खेत को बर्बाद होने से बचाएं। अधिक जानकारी के लिए तथा फसल की बुवाई से लेकर कटाई एवं भण्डारण में आने वाली किसी भी समस्या के लिये पूसा एम कृषि- सेवा के द्वारा तुरंत समाधान प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा किसान भाई अपने ही गाँव के मौसम पूर्वानुमान के लिये इस लिंक से मोबाइल एप डाउनलोड कर सकते है तथा जिन किसानों के पास एन्ड्रॉइड़ फोन नहीं है। वो किसान कृषि से सम्बंधित प्रश्न पूसा एम कृषि के टोल फ्री नम्बर 1800209998 पर कृषि सम्बंधित कोई समस्या या जानकारी क्षेत्रीय भाषा में लिखित संदेश के रूप में प्राप्त कर सकते है।

मध्यप्रदेश में अक्टूबर से अप्रैल के मध्य सिंचित एवं असिंचित परिस्थितियों में गेहूँ खेती की जाती है। इस वर्ष प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश भागो में औसत से थोड़ी कम वर्षा हुई है, जिसकी वजह से प्रदेश में गेहूँ का क्षेत्रफल में पिछले वर्ष की तुलना में कमी आई है। देश की निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के लिये खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये किसानों को अपनी पारंपरिक खेती के तरीकों में परिवर्तन कर उन्नतशील तकनीकों का उपयोग करना अति आवश्यक है। इसके लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) का कृषि विस्तार शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है। इसी के अंतर्गत वर्तमान समय में किसानों की जरुरत के अनुसार विशेष जानकारी को किसानों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। इसी कड़ी में पूसा एम कृषि – मोबाइल आधारित सलाह सेवा विश्व बैंक द्वारा प्रदत्त ऋण, राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के अंतर्गत, कमज़ोर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूल क्षमता बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान एनई दिल्ली और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (सी.एस.टी) गैर सरकारी संस्था ने मिलकर भारत के चार राज्यों मध्य प्रदेश के धार, ओडि़सा के गंजाम, हरियाणा के मेवात और महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में आरम्भ की गई थी।
  • डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा
  • नंदन सिंह राजपूत
  • डॉ. अनिल सिंह
  • आदित्य तिवारी
    भा. कृ. अनु. सं. क्षेत्रीय केंद्र, इंदौर एवं पूसा एम कृषि.,
    पूसा एम कृषि. मो. एपलिंक Email : www.tcsmkrishi.com/app/scca/
    टोल फ्री नम्बर 18002099987, ईमेल rapootns85@gmail.com
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