अमरूद की कृषि कार्यमाला
भूमि की तैयारी
अमरूद की खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, परन्तु बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है साथ-ही-साथ मृदा में उचित जल निकास होना चाहिये एवं मृदा सभी प्रकार के विकारों जैसे – लवणीयता, क्षारीयता एवं अम्लीयता से मुक्त होना चाहिये। मृदा का पीएच 5-8 हो ऐसी भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है, परन्तु पीएच बढऩे के साथ-साथ अमरूद में उखटा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
भूमि की तैयारी हेतु एक ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कर 2-3 हल्की जुताईयां कर भूमि को समतल कर लेना चाहिये तथा भूमि में 6& 6 मीटर की दूरी पर 75 & 75 & 75 सें.मी. (ल.& चौ. & ऊ.) के गड्डे बना लेना चाहिये।
गड्डे खोदते समय गड्डों की ऊपरी एक तिहाई मृदा को अलग कर लेना चाहिये निचली एक चौथाई मिट्टी को अलग हटा देना चाहिये। इन गड्डों को 15-20 दिन ग्रीष्म ऋतु में खुला छोड़ देना चाहिये ताकि मृदा में उपस्थित कीट एवं उनके अण्डे नष्ट हो जायें। गड्डों को इस प्रकार भरना चाहिये कि वे भूमि से 15-20 सें.मी. ऊपर उठे हुए दिखाई दें। इसके पश्चात् गहरी सिंचाई कर देना चाहिये जिससे गड्डों में उठी हुई मृदा भू-सतह के बराबर हो जाती है गड्डे भरने के 20-25 दिन बाद गड्डों के बीचों बीच पौध रोपण का कार्य शुरू कर देना चाहिये। पौधे की पिण्डी बिखरे ना। पौधों को सामान्य तौर पर दोपहर के बाद लगाना चाहिये जिससे पौधों की मृत्यु दर कम हो जाती है पौध रोपण के पश्चात् हल्की सिंचाई कर देना चाहिये।
उन्नत किस्में
इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49, अर्का मृदुला, अर्का किरण , ललित, स्वेता, चित्तीदार, ग्वालियर-27, धारीदार, एपिल कलर, सफेद जाम, हिसार सुर्ख।
खाद एवं उर्वरक
अमरूद की अच्छी बढ़वार हेतु एवं गुणवत्ता युक्त फलों की प्राप्ति हेतु समय-समय पर खाद एवं उर्वरक देना चाहिये। इसके लिये निम्न दर की अनुसंशा की गई है –
गड्डों की ऊपरी एक तिहाई मृदा में 15-20 कि.ग्रा. अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, 300 ग्राम सुपर फॉस्फेट, 200 ग्राम पोटाश साथ-ही-साथ 300 ग्राम नीम खली मिलाना चाहिये। उपरोक्त खाद एवं उर्वरक के अतिरिक्त 0.5त्न जिंक सल्फेट, 0.4त्न बोरिक एसिड, 0.4त्न कॉपर सल्फेट का पुष्प आने के पहले छिड़काव करने से पौधों की वृद्धि एवं उत्पादन अच्छा देखा गया है। फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा जून माह में हल्की निंदाई-गुड़ाई करके देना चाहिये तथा शेष बची नत्रजन की मात्रा अक्टूबर-नवम्बर माह में देना चाहिये। अमरूद के पौधे में जिंक की कमी से पत्तियों का आकार छोटा, नुकीला तथा गुच्छे में निकलती है तथा फूल एवं फल कम लगते हैं।
खाद देने की विधि एवं समय
मुख्य तने के चारों ओर 60-120 सें.मी. तक गोले में 15-12 सें.मी., गहराई पर खाद एवं उर्वरक को देना चाहिये। खाद, फॉस्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा मई-जून में देना चाहिये। नत्रजन की बची शेष मात्रा अक्टूबर-नवम्बर में देना चाहिये।
सिंचाई एवं जल निकास
अमरूद में पौधों की सिंचाई थाला विधि से करते हैं। परन्तु ड्रिप विधि का उपयोग सर्वोत्तम होता है। सिंचाई वर्षा ऋतु के बाद से प्रारम्भ कर दिसम्बर-जनवरी तक समाप्त कर देना चाहिये। छोटे पौधो में शरद ऋतुु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई कर चाहिये। यदि ग्रीष्म ऋतु में सिंचाई करते है तो अन्तर 8-10 दिन कर देना चाहिये। पुराने फल वृक्षों में सिंचाई का अन्तराल 20-30 दिन का हो सकता है। बरसात के बाद सिंचाई प्रारम्भ करके फल तुड़ाई के पश्चात् बन्द कर देना चाहिये।
बहार नियंत्रण
अमरूद में मुख्य रूप से उत्तरी भारत में दो तथा दक्षिणी भारत में तीन बहारे आती है। अमरूद में गुणवत्ता एवं उत्पादन की दृष्टि से मृग बहार सर्वोत्तम मानी गई है। मृग बहार लेने के लिये अन्य बहारों को रोकना या हटाना पड़ता है जिसे बहार नियंत्रण करते हैं। मृग बहार में पुष्पन जून-जुलाई में प्रारम्भ हो जाता है तथा फलन दिसम्बर-जनवरी तक समाप्त हो जाता है। फलों की सम्पूर्ण तुड़ाई के पश्चात् सिंचाई पूर्णत: बन्द कर देना चाहिये। साथ-ही-साथ मुख्य तने के चारों ओर की 4-6 कि.मी. गहरी मिट्टी को 1 मीटर दूरी तक हटा देना चाहिये जिससे भोजन जड़ों से शाखाओं की ओर चला जाता है। मई से जून माह में मिट्टी के उचित खाद एवं उर्वरक मिलाकर पुन: ढंक देते हैं। और हल्की सिंचाई कर देना चाहिये। हल्की सिंचाई के 15 दिन पश्चात गहरी सिंचाई प्रारम्भ कर देना चाहिये। यदि फरवरी मार्च माह में बहार नियंत्रण के लिये 400-600 मिलीग्राम प्रति लीटर नेफ्थेलिक एसिटिक एसिड का 10-12 लीटर घोल की मात्रा प्रति लीटर पौधे के हिसाव से छिड़काव करना चाहिये अथवा यूरिया का 10-15त्न (100-150 ग्राम/लीटर पानी यूरिया) धोल का 8-10 लीटर घोल प्रति पौधे के हिसाब से पुष्पन अवस्था पर करना चाहिये जिससे पुष्प झड़ जाते हैं।
अमरूद ऊष्ण एवं उपोष्ण जलवायु का प्रमुख फल है, इसे ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र का सेव भी कहा जाता है साथ-ही-साथ इसका एक अन्य नाम गरीबों का सेब भी है। भारत में अमरूद फलों में अपना प्रमुख स्थान रखता है अमरूद में विटामिन-सी अधिकता से पाया जाता है एवं यह आयरन, फॉस्फोरस, राबोफ्लोबिन और नियासिन का भी अच्छा स्त्रोत है। इसका सर्वाधिक लोकप्रिय परीरक्षित पदार्थ जैली, नेक्टर, जैम आदि है। फल स्वाद में खट्टा-मीठा एवं सुगन्धित होता है। अमरूद का फल औषधि गुणों युक्त होता है भोजन के पश्चात् लेने से पेट साफ रहता है एवं पेट संबंधी विकारों को भी दूर करता है अमरूद के पौधे थोड़े गर्म मौसम को सहन कर सकते हैं, इसीलिये इसे मध्य भारत में बहुतायत से लगाया जाता है। |
वर्षाकालीन फल (अम्बे बहार) जल्दी पक जाते है और गुणवत्ता में भी अच्छे नहीं होते तथा इन पर रोग व कीट भी अधिक लगते हैं। विटामिन-सी की मात्रा तथा उत्पादन मृग बहार की अपेक्षा बहुत कम रहती है।
काँट-छाँट एवं सधाई
पौध रोपण के पश्चात भूमि से 1 मीटर ऊपर तक पाश्र्व शाखाओं को हटा दें एवं पौधे को सीधा बढऩे दे। इसके पश्चात् प्रत्येक आधा मीटर की दूरी पर शाखाओं को निकलने दें। इससे पौधे कैनोपी (छत्रक) अच्छा रहता है। उचित प्रकाश एवं वायु उपलब्ध रहती है। समय-समय पर सूखी एवं रोगग्रस्त शाखाओं को काटते रहना चाहिये साथ-ही-साथ फलों की तुड़ाई के पश्चात हल्की काँट-छाँट करते रहना चाहिये जिससे पौधे का आकार नियंत्रित रहता है।
अन्त: फसल एवं पूरक फल
बागान लगाने के शुरूआती 3-5 वर्ष तक पौधों की कतारों के मध्य खाली पड़ी जगह पर अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिये कुछ सब्जियों अथवा फसलों की खेती की जा सकती है, उदाहरण स्वरूप सेम. लोविया, टमाटर, मिर्च, गोभी, मैथी, मटर, मूंग, उड़द आदि लगा सकते हैं। परन्तु बेल वाली फसलें पौधों पर नहीं चढऩा चाहिये।
फसलों के स्थान यदि फलों के पौधों का चुनाव खाली पड़ी जगह में किया जाता है तब इन पौधों को पूरक पौधे कहते हैं पूरक पौधों के रूप में पपीता, फालसा, अन्नानास, स्ट्रावेरी, केला आदि का चुनाव कर सकते हंै।
पुष्पन का समय:- अमरूद में तीन बहारें आती है। जिसके अनुसार पुष्पन होता है।
अम्बे बहार:- इस बहार में पुष्पन का समय फरवरी-मार्च तथा फलन जून-जुलाई में होता है। इस बहार के फल कम मीठे, संख्या में कम एवं गुणों में अच्छी नहीं होते।
मृग बहार:- इस बहार में पुष्पन जून-जुलाई माह में होता है तथा फल नवम्बर से जनवरी तक प्राप्त होता है इसमें फल उच्च गुणवत्ता के तथा स्वाद में मीठे, बडे. एवं उत्पादन में अधिक होते है।
हस्त बहार:- इस बहार में पुष्प अक्टूबर माह में आते है तथा फल फरवरी से अप्रैल तक प्राप्त होते हैं।
प्रवर्धन
अमरूद को बीजों द्वारा भी तैयार किया जा सकता है इसके अलावा पौधों को वानस्पतिक प्रवर्धन जैसे – गूटी बाँधना, स्टूल कलम, भेट कलम आदि से किया जा सकता है।
अमरूद के फलों हल्के पीले रंग के ही जाने पर तोड़ लेना चाहिये फलों की तुड़ाई 2-3 दिन के अन्तर पर कर सकते है। औसत प्रति पौधे से 300-400 फल प्राप्त किये जा सकते है पुष्पन के 5-6 माह पश्चात फल पककर तैयार हो जाते हैं। फलों को डण्ठल एवं कुछ पत्तियों के साथ तौड़कर कमरे के तापमान पर 3-4 दिन तक रख करते हैं। |
- अर्जुन कश्यप
- कल्याण सिंह रघुवंशी
- डॅा. राजेश लेखी
- डॉ. कर्ण वीर सिंह, वैज्ञानिक
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