बकरी पालन से मेनका के आये अच्छे दिन
गरीबी में पली बढ़ी कुमारी मेनका उईके ने कभी सोचा नहीं था कि बकरी पालन का धंधा उनके दिन बदल सकता है। बकरी पालन का धंधा मेनका के लिए अब आय का जरिया बन गया है और इस धंधे से कम समय में हुई आय ने उसके परिवार के अच्छे दिन ला दिये हैं। मेनका अब बकरी पालन के धंधे को और भी आगे बढ़ाना चाहती है।
बालाघाट जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखंड परसवाड़ा के ग्राम डेंडवा की रहने वाली युवती है मेनका उईके। परिवार का गुजारा चलाने में वह अपने माता-पिता की मदद करती है। परिवार के पास थोड़ी सी खेती के अलावा आय का कोई जरिया नहीं था। ऐसे में पशु चिकित्सालय बोदा के चिकित्सक ने मेनका को बकरी पालन की सलाह दी और उसे बैंक से बकरी पालन के लिए ऋण दिलाया।
वर्ष 2016-17 में मेनका को 10 बकरियों एवं एक बकरे की ईकाई के लिए बैंक से 77 हजार 546 रुपये का ऋण दिलाया गया। इसमें से आधी राशि पशु चिकित्सा विभाग द्वारा अनुदान के रूप में दी गयी है। मेनका को बकरी पालन के लिए ईकाई की कुल लागत का मात्र 10 प्रतिशत लगाना पड़ा। बैंक से ऋण मिलते ही मेनका ने 10 देशी प्रजाति की बकरियां एवं जमनापारी नस्ल का एक बकरा खरीदा। पशु चिकित्सा विभाग द्वारा उसकी बकरियों के लिए 3 माह का आहार उपलब्ध कराने के साथ ही बकरियों का 5 वर्ष का बीमा भी कराया गया है।
मात्र 6 माह की अवधि में ही मेनका की बकरियों ने 8 मादा एवं 8 नर बच्चों को जन्म दे दिया है। बकरियों के बच्चे अब बड़े हो गये है और इनकी वर्तमान में कीमत 52 हजार रुपये हो गई है। मेनका ने एक बकरी 3 हजार रुपये एवं एक बकरा 8 हजार रुपये की दर से इनमे से 6 बकरियों एवं 5 बकरों को बेच दिया है। इससे उसे 6 माह में ही 38 हजार रुपये की शुद्ध आय हुई है। मेनका ने पहली बार में हुई आय से बैंक का ऋण भी अदा कर दिया है।
मेनका बकरी पालन के इस धंधे से कम समय में मिले अधिक लाभ से संतुष्ट और बहुत खुश है। इससे उसकी आर्थिक भी अब सुधरने लगी है। अब वह बकरी पालन के धंधे को और आगे बढ़ाना चाहती है। मेनका कहती है कि बकरी पालन के लिए बैंक से ऋण एवं पशु चिकित्सा विभाग से मदद नहीं मिलती तो उसके अच्छे दिन शायद नहीं आ पाते। अब वह गांव के दूसरे लोगों को भी बकरी पालन को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।