गौवंश को दें आरोग्यता का कवच
नाभि सडऩा (नैवेल इल)
यह बीमारी बछड़ों में पैदा होने के कुछ दिन बाद ही हो जाती है। बछड़े की नाभी में मवाद पड़ जाती है एवं रोग के आरंभ में बछड़ा सुस्त हो जाता है, बछड़ा लेटा रहता है, दूध नहीं पीता और तेज बुखार आता है। नाभी चिपचिपी व गीली हो जाती है, नाभी में सूजन आ जाती है तथा दर्द होता हैं।
बचाव व रोकथाम
बछड़ा पैदा होने का स्थान साफ एवं स्वच्छ रखें। नाल को धागे से बांधकर साफ ब्लेड से काटें एवं उसके सूखने तक रोज टिंचर, आयोडीन लगाएं यदि नाभी सड़ गयी हो तो तुरन्त पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें।
सफेद दस्त (व्हाइट स्कावर)
यह बछड़ों का घातक रोग है, जिसमें 24 घंटे में मृत्यु हो जाती है, यह रोग एक माह तक के बछड़ों को होता है. आरंभ में बुखार आता है, भूख कम लगती है, पतले दस्त आने लगते हंै, जो गन्दे सफेद या पीलापन लिए होते हैं, इसमें कभी-कभी खून भी आता है तथा दस्त में एक विशेष बदबू आती है।
बचाव व रोकथाम
बच्चों को पर्याप्त (पहला दूध) पिलावें तथा गंदगी से बचावें। रोग मालूम होने पर पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
निमोनिया
यह बीमारी तीन सप्ताह से लेकर चार माह तक के बच्चों को होती है। गंदे शीलन युक्त स्थान में यह रोग अधिक फैलता है। रोग के आरंभ में बछड़ा सुस्त हो जाता है। खाने में रूचि नहीं लेता, सांस तेजी से लेता है, खांसी आती है, आंख व नाक से पानी बहता है और तेज बुखार आता है, रोग बढऩे से नाक से बहने वाला पानी गाढ़ा व चिपचिपा हो जाता है। जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है और अंत में मृत्यु हो जाती है।
बचाव व रोकथाम
बछड़ों को साफ व हवादार कमरे में जिसमें शीलन न हो और तेज हवा के झोंके न आते हों, रखना चाहिए। स्वस्थ बछड़ों से अलग रखें तथा उपचार हेतु पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
पेट के कीड़े
दूध पीने वाले बछड़ों के पेट में आमतौर पर लंबे -लंबे कीड़े हो जाते हंै। खाने में अरूचि, दस्त आना, सुस्ती, आंखों की झिल्ली का छोटा हो जाना व बछड़ों का लगातार कमजोर होना, इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
बचाव व रोकथाम
बछड़ों को गंदा पानी नहीं पिलाना चाहिए। चूंकि रोगी बछड़े के गोबर में इन कीड़ों के अंडे होते है। अत: स्वस्थ बच्चों को गोबर से दूर रखें। रोग के संदेह होने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें।
बछड़ों को पैराटायफाइड – यह 2 से 12 सप्ताह की आयु के बछड़ों को होने वाला रोग है। गंदगी और बहुत से बछड़ों को एक जगह रखने से यह रोग अधिक फैलता है। तेज बुखार, खाने में अरूचि, थूथन सूख जाना, आंखों में चिपचिपापन तथा सुस्ती इस रोग के प्रमुख लक्षण हंै। रोगी के गोबर का रंग पीला हो जाता है इसमें बदबू आती है।
बचाव व रोकथाम – बछड़ों की सफाई रखें तथा एक ही स्थान पर बहुत से बछड़ों को न रखें, उपचार के लिये पशु चिकित्सक की सलाह लें।
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