ग्रामीण तालाबों में मत्स्य पालन
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश तालाब ग्रामीणों के द्वारा ही निर्मित किये जाते हैं। तालाबों के निर्माण के लिए स्थान का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये कि तालाब का निर्माण ऐसे स्थान में किया जाये, जहाँ की मिट्टी काली तथा उपजाऊ हो । यदि कँकरीली, रेतीली और पथरीली मिट्टी होगी तो उसमें पानी का रिसाव अधिक मात्रा में होगा और तालाब का जल रिस-रिस कर बाहर जाता रहेगा तथा तालाब में धीरे-धीरे जल की कमी होने लगेगी। ऐसी स्थिति में काली और उपजाऊ मिट्टी वाले स्थान में तालाब का निर्माण करना चाहिये। इसके साथ ही तालाब की मेढ़ेें भी ऐसी मजबूत होना चाहिये कि वे फूट न पायें। ग्राम्य क्षेत्रों में जो तालाब रहते हैं उनका पानी खारा कम, मीठा अधिक होता है। पहाड़ के किनारों पर बने तालाबों में पहाड़ी प्राकृतिक खनिजों के जल में मिल जाने के कारण उसकी मिठास थोड़ी कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में स्थान का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि तालाब में यदि वर्षा का जल एकत्रित होने वाला हो तो उसमें पर्वतीय खनिज आदि का सम्मिश्रण न होने पाये । अत: तालाब का स्थान और स्वरूप मछली पालन के लिए उपयुक्त होना चाहिये।
ग्रामीण क्षेत्रों में मछली-पालन के कार्य को यदि व्यवसायिक रूप से किया जाये तो निर्धनों, बेरोजगारों तथा मछुआरों की आजीविका की समस्या का एक सीमा तक निदान किया जा सकता है । ग्रामीण अंचलों में अनेक आकार-प्रकार के तालाब होते हैं। कुछ तालाब नैसर्गिक रूप से बन जाते हैं और कुछ ऐसे तालाब भी होते हैं जिनका निर्माण ग्रामीणों के द्वारा अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इन तालाबों का जल पीने के काम में भी आता है। पशुओं को भी इन तालाबों से पीने के लिए जल मिल जाता है तथा सिंघाड़ा की खेती भी इन तालाबों में की जा सकती है । तात्पर्य यह है कि ग्रामीण जनों के लिए तालाब-बहुउपयोगी होते हैं । |
तालाब का स्वरूप – ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े, मध्यम श्रेणी के तालाब भी होते हैं तथा लघु एवं पोखरनुमा तालाब भी रहते हैं। तालाबों में जल के भरे होने की स्थिति भी भिन्न-भिन्न होती है । वैसे ये तालाब ऊँची-नीची जमीन में बने होते हैं किन्तु इन तालाबों में कहीं जल की गहराई अधिक होती है और कहीं कम रहती है मछलियों के पालन के लिए 0.2 से 5.0 हेक्टेयर में बने तालाब उपयुक्त होते हैं। छोटे तालाबों में आठ से नौ माह तक जल भरा रहता है और जो थोड़े बड़े तालाब होते हैं, वे बारहमासी जल-भराव वाले रहते हैं। ऐसे तालाबों में वर्षभर पानी भरा रहता है ।
मछली पालन के लिए ऐसे तालाब उपयुक्त होते हैं जिनमें एक से दो मीटर जल की गहराई बनी रहे। जो तालाब या तलैया या पोखर एक हेक्टेयर अथवा उसके आसपास के भूमि क्षेत्र वाले होते हैं उनमें पानी आठ-नौ माह तो भरा रहता है और बाद में वे धीरे-धीरे सूख जाते हैं। ऐसे तालाबों में चार-पाँच माह मछली पालन का कार्य किया जा सकता है। किन्तु जो तालाब दो हेक्टेयर अथवा उससे थोड़े अधिक या बड़े होते हैं, उन तालाबों में पानी वर्ष भरा रहता है और ऐसे बारहमासी जल भरे तालाबों में वर्ष भर मछलियों का पालन किया जा सकता है । सामान्यत: ग्रामीण क्षेत्रों में 2.00 हेक्टेयर के आकार वाले तालाबों के साथ ही 1.00 हेक्टेयर वाले तालाब या पोखर भी एक ही ग्राम में बने मिल जाते हैं। जो तालाब एक हेक्टेयर भूमि क्षेत्र के होते हैं, उनमें मेढ़ डालकर दो भागों में विभाजित भी किया जा सकता है । ऐसे छोटे-छोटे पोखरों को प्रजनक पोखर कहा जा सकता है। ऐसे पोखरों का उपयोग मछलियों के प्रजनन के लिए किया जा सकता है। मत्स्य पालन अथवा मछली संचय जिन तालाबों में किया जाता है, उनका क्षेत्रीय आयतन कम से कम 1 हेक्टेयर का होना चाहिये। यदि इस आयतन से बड़े तालाब हों तो वे भी मत्स्य संचय के लिए उपयुक्त होते हैं। ऐसे तालाबों में वर्षभर जल भरा रहता है । ऐसे तालाबों में जल की गहराई भी 2.00 से 2.50 मीटर बनी रहना चाहिये । ऐसे तालाबों में मछलियों का संवर्धन सुचारू रूप से किया जा सकता है ।
तालाब निर्माण – तालाब के निर्माण और स्थान के चयन के लिए तालाब की मिट्टी की जल धारण क्षमता एवं उसकी उर्वरक शक्ति का परीक्षण आवश्यक होता है। वास्तव में तालाब का चयन का आधार यही होना चाहिये। बंजर तथा अनुपजाऊ भूमि पर तालाब का निर्माण नहीं होना चाहिये तथा उसका चयन भी नहीं करना चाहिये । मिट्टी के वैज्ञानिक परीक्षण के उपरान्त यदि यह निष्कर्ष निकले कि उस मिट्टी में क्षारीयता एवं अम्लीयता अधिक है तो उस स्थान पर तालाब का निर्माण नहीं होना चाहिये। यदि मिट्टी बालुई (रेतीली) है तो भी वह स्थान तालाब निर्माण के लिए उचित नहीं होता। ऐसी रेतीली मिट्टी में जलधारण क्षमता नहीं होती है। जिस स्थान की मिट्टी चिकनी होती है, उस स्थान पर तालाब का निर्माण किया जाना चाहिये। चिकनी मिट्टी में जल धारण क्षमता अधिक होती है। मिट्टी वह उपयुक्त मानी जाती है जिसमें पी.-एच. 6.5-8.0, आर्गेनिक कार्बन 1 प्रतिशत, मिट्टी में रेत 40 प्रतिशत, सिल्ट 30 प्रतिशत तथा क्ले 30 प्रतिशत हो। इसके साथ ही यह ध्यान में रखना चाहिये कि तालाब के बंधों में दोनों ओर के ढलानों में आधार और ऊँचाई का अनुपात 2.1 अथवा 1.5:1 फीट होना चाहिये।
- डॉ. प्रीति मिश्रा
- सतीश शुक्ला