किसानों का दलहनी फसलों के प्रति मोहभंग न हो
पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी मध्य प्रदेश व मध्य भारत के अन्य राज्यों में मानसून देर से आया, जिसका असर खरीफ की फसलों की बुआई पर पड़ रहा है। पिछले खरीफ फसलों के उत्पादन का उचित मूल्य किसानों को नहीं मिल पाया। कुछ फसलों की तो लागत तक नहीं निकल पाई। फलस्वरूप किसानों का आक्रोश किसान आन्दोलन के रूप में उभरा। किसानों का आत्महत्या का जो सिलसिला चला वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। मध्यप्रदेश में पच्चीस किसानों ने अब तक अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है।
मध्यप्रदेश सरकार ने खरीफ बुआई के अपने लक्ष्य घोषित कर दिये हैं। सामान्यत: प्रदेश में जहां खरीफ फसलों की बुआई 118.41 लाख हेक्टेर में होती है वहीं पिछले वर्ष खरीफ में 130.48 लाख हेक्टर में फसलें लगाई गई थीं। वहीं इस वर्ष खरीफ फसलों की बुआई का लक्ष्य 132.73 लाख हेक्टर रखा गया है। इसमें से सामान्यत: प्रदेश में 51.17 प्रतिशत क्षेत्र में सोयाबीन की खेती होती है। परन्तु पिछले वर्ष यह मात्र 41.39 प्रतिशत क्षेत्र में हुई थी। इस वर्ष सोयाबीन की बुआई का लक्ष्य 54.01 लाख हेक्टर रखा गया है जो इस वर्ष के लक्ष्य के अनुसार 41.12 प्रतिशत है, सोयाबीन के बुवाई क्षेत्र में सामान्य से लगभग10 प्रतिशत की गिरावट सोयाबीन के प्रति किसानों के मोहभंग की ओर इशारा करती है जो एक चिन्ता का विषय है। इसके कारणों का पता लगाकर इसके निराकरण के उपाय खोजने होंगे अन्यथा सोयाबीन का रकबा वर्ष प्रति वर्ष घटता चला जायेगा जिसका किसान की आय पर बहुत अधिक असर पड़ेगा।
दलहनी फसलों तुअर, उर्द, मूंग, कुल्थी तथा अन्य दलहनें मध्य प्रदेश में सामान्यत: 12.81 हेक्टर में ली जाती हंै। पिछले वर्ष दलहनी फसलों की बाजार में कीमतों तथा देश में इनकी कमी के कारण सरकार ने इनके उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया था, जिसके कारण पिछले वर्ष यह दलहनी फसलें प्रदेश में 21.17 लाख हेक्टर क्षेत्र में ली गयी थी। परन्तु किसानों को उनके उत्पाद का बाजार में उचित मूल्य नहीं मिला। राज्य सरकार भी समय पर इन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य में लेने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं कर पाई। इस कारण इन फसलों की खेती किसान के लिए एक घाटे का सौदा रही। इस वर्ष दलहनी फसलों की उचित कीमत न मिलने के कारण यह लक्ष्य प्राप्त करना कठिन लगता है, जो किसान इस वर्ष भी अपनी मजबूरी के कारण दलहनी फसलों की खेती करेंगे और यदि इस वर्ष भी राज्य सरकार दलहनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की व्यवस्था नहीं कर पाई तो किसान की दलहनी फसल लेने में कोई रुचि नहीं रह जायेगी और इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को झेलना पड़ेगा जिसके गंभीर दूरगामी परिणाम होंगे।