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दिखावे का किसान कल्याण ?

किसानों के चल रहे आन्दोलन का अन्त क्या होगा यह तो समय ही बतायेगा। इस बीच किसानों द्वारा आत्महत्या के कुछ मामले सामने आये हैं। किसानों की स्थिति तब तक नहीं सुधर सकती जब तक उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता। केन्द्र सरकार द्वारा प्रति वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किये जाते हैं। परन्तु सरकारें किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिला पाने में भी असमर्थ रहती है, न ही वे समर्थन मूल्य से उपज के भाव नीचे आने पर सरकारी खरीद के लिए वार्षिक बजट में कोई प्रावधान करती है। वह समर्थन मूल्य का झुनझुना किसानों को दिखाकर उनके हितैषी होने का ढोंग करती रहती है। वर्तमान स्थिति में देश के मात्र 6 प्रतिशत किसानों की उपज ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाती है। फलस्वरूप किसान अपनी फसल को मंडियों में औने-पौने भाव पर बेचने पर बाध्य हो जाते हैं। एक ओर तो सरकार का अमला कृषि विकास के लिए किसान को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे किसान अपने प्रयास कर उत्पादकता बढ़ाने में सफल हुए हैं जो उनके लिए अभिशाप सिद्ध हुआ है। इसके बाद मंडियों में अधिक अनाज पहुंचाने पर आढ़तिये व व्यापारी उसके कम दाम निर्धारित करने में सफल हो जाते हैं और कुछ स्थितियों में किसान को उसकी लागत नहीं मिल पाती। दुर्भाग्य है कि किसान ही ऐसे उत्पादक हैं जो अपने उत्पाद का मूल्य स्वयं निर्धारित नहीं कर सकते हैं। उनके उत्पाद का मूल्य क्रेता या सरकार तय करती है।
केन्द्र व राज्य सरकारों ने कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर किसान कल्याण तथा कृषि विकास तो रख लिया है परन्तु वह किसान कल्याण के प्रति एक सौतेला व्यवहार करती दिखती है। कृषि विकास के नाम पर वह कृषि कर्मण्य पुरस्कार लेकर अपनी पीठ तो थपथपा लेती है, परन्तु किसान कल्याण के नाम पर जो भी उपलब्धियां गिनाती हैं वह किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलाने में असमर्थ रह जाने के कारण बेमानी है। ऐसी सरकारें जो किसान को उसकी फसल का सही मूल्य न दिला पाये वह क्या किसान कल्याण करेगी। सरकार को बाजार में खाने-पीने की वस्तुओं के मूल्य न बढ़ जाये इसका डर सताता रहता है, वह 25 प्रतिशत सम्पन्न जनता की हितैषी बनकर देश के 75 प्रतिशत असंगठित किसानों का पोषण करने पर उतारू है। अगर ऐसा नहीं होता तो वह स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को सैद्धांतिक रूप में मानने के बाद फसल की लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा लगा कर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है तथा बाजार में व्यापारियों द्वारा कम मूल्य देने की स्थिति में सरकारी खरीद की व्यवस्था करती। अब समय आ गया है कि सरकारें किसान कल्याण के प्रति अपना दायित्व निभाये और किसान के हितों की रक्षा करे।

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