पर्यावरण प्रेमी अनिल माधव दवे
नदियों और जलाशयों विशेष रूप से नर्मदा नदी के संरक्षण से लेकर जलवायु परिवर्तन की राजनीति उनके मन में बसी हुई थी। पर्यावरण मंत्री श्री अनिल माधव दवे ने आधुनिक और प्राचीन भारतीय विचारों के बीच संतुलन बनाने की काफी कोशिश की पर्यावरणविद, विशेष रूप से नदी संरक्षण कार्यकर्ता, लेखक, शौकिया पायलट और संसद सदस्य श्री अनिल माधव दवे ने जुलाई 2016 में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री बनने से पहले कई क्षेत्र में कार्य किये थे।
61 वर्षीय श्री दवे का 18 मई, 2017 (गुरूवार) को नई दिल्ली में हृदयाघात से निधन हो गया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री दवे की आकस्मिक मृत्यु के सदमे के बारे में ट्विट कर इसे ‘निजी क्षति’ बताया। आपका अंतिम संस्कार आपकी वसीयत के मुताबिक नर्मदा तट पर बांद्राभान (होशंगाबाद के निकट) में किया गया।
एक वर्ष पहले मध्य प्रदेश सरकार ने सिंहस्थ कुंभ मेला 2016 के साथ ही ‘अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ का आयोजन किया था। ‘जीवन जीने का सही तरीका’ विषय पर आयोजित विचार महाकुंभ में धार्मिक संत, सभी दलों के नेता, भारत और विदेश से विचारक और कार्यकर्ता शामिल हुए थे। प्रत्येक व्यक्ति को कुंभ मेले की पौराणिक कथा के बौद्धिक मंथन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया था और इस मंथन से जो सार तत्व हासिल हुआ उसे बाद में सिंहस्थ के सार्वभौमिक घोषणा पत्र के 51 बिन्दु के रूप में घोषित किया गया था।
जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने समापन समारोह के दौरान रेखांकित किया था कि मई 1916 में विचार महाकुंभ समाज से संबंधित प्रासंगिक मुद्दों और चुनौतियों पर विचार कर सदियों पुराने पारंपरिक तरीकों को पुनर्जीवित करने का प्रयास था। इस कार्यक्रम को काफी सराहना मिली। श्री मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस कार्यक्रम की परिकल्पना के लिए श्री अनिल माधव दवे को श्रेय दिया, जो उस समय मध्य प्रदेश से राज्य सभा के सदस्य थे। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक श्री दवे ने इस महा कार्यक्रम से संबंधित प्रत्येक पहलुओं को व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया था। खाने के शौकीन श्री दवे ने लोगों के लिए फल, मिठाई और आईसक्रीम/कुल्फी के अलावा कई प्रकार के फूड स्टॉल की व्यवस्था की थी। अपनी आदत के अनुरूप श्री दवे ने ‘200 किलो भोजन के बर्बाद’ होने से बचाने के लिए सम्मानीय प्रतिभागियों को फटकार लगाते हुए हाथ जोड़कर उनसे आग्रह किया कि वे ‘अपनी प्लेटों में उतना ही खाना लें, जितना वे खा सकते हैं’। उन्होंने कहा था कि ‘सभी के लिए काफी भोजन है, लेकिन बर्बाद करने के लिए नहीं। क्या आपको पता है कि इस खाद्यान्न के उत्पादन में इतनी मेहनत लगी है ? यह केवल पर्यावरण की क्षति है।’
ये दवे ही थे, जो न सिर्फ एक कार्यक्रम को निर्बाध व बेहतर ढंग से आयोजित करते थे, बल्कि उनका जोर इस बात पर भी था कि भोजन की बर्बादी नहीं होनी चाहिए, जो कि एक विशिष्ट भारतीय विचार है। और जब सार्वभौमिक घोषणा की गई थी, तब उन्होंने बिल्कुल यही बात कही थी – यह सार्वभौमिक घोषणा महज कागज पर नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे सही भावना के साथ लागू किया जाना चाहिए। इस संदेश को न केवल अन्य राज्यों में भेजा जाना चाहिए बल्कि संयुक्त राष्ट्र में भी इससे अवगत कराया जाएगा। दो माह बाद वह केंद्र में पर्यावरण मंत्री बने। नवंबर 2016 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन वार्ता में भाग लिया, जहां उन्होंने भारतीय विचारधारा की पुरजोर वकालत की और भारतीय पक्ष को बेहतरीन तरीके के साथ रखा।
आरएसएस प्रचारक से बीजेपी नेता तक और फिर मंत्री तक
सार्वजनिक जीवन में उनकी यात्रा आरएसएस प्रचारक और भोपाल में उनकी तैनाती के साथ शुरू हुई। जब उमा भारती 2003 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, तब दवे ही रणनीतिकार थे। दवे इसके बाद उमा भारती के सलाहकार बन गए। जब बाद में उमा भारती ने इस्तीफा दे दिया था, तब दवे का नाम सुर्खियों में कम हो गया। वर्ष 2009 में मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजे जाने से पहले वह कई पदों पर रहे। यह पहला अपूर्ण कार्यकाल था। इसके बाद वर्ष 2010 से उनका कार्यकाल पूरा छह वर्ष का रहा। जुलाई 2016 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री पर नियुक्त होने से पहले एक सांसद के तौर पर वह विभिन्न संसदीय समितियों का हिस्सा रहे थे।
दवे एवं नर्मदा – दवे अपने एनजीओ ‘नर्मदा समग्र’ के तत्वाधान में नर्मदा के लिए अपने नदी संरक्षण कार्यों हेतु पूरे मध्य प्रदेश में जाने जाते थे। वह हर दो वर्षों में नर्मदा नदी के तट पर ‘अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव’ का आयोजन किया करते थे और वह इस अवसर पर देश भर के नदी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अन्य देशों के भी कुछ नदी कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया करते थे। नर्मदा नदी के लिए दवे के अप्रतिम लगाव से सभी लोग अवगत थे। नर्मदा नदी के तट पर बांस के पौधे लगाने की योजना बनाने, वहां के किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करने, सरदार सरोवर जलाशय के दुर्गम क्षेत्रों के लिए नदी एम्बुलेंस चलाने और नर्मदा नदी के घाटों पर स्वच्छता के लिए सक्रियतापूर्वक योगदान देने जैसे उनके कार्यों से यह लगाव स्पष्ट होता है। इससे पहले उन्होंने सेसना 173 उड़ान के जरिए नर्मदा का हवाई सर्वेक्षण किया था और इसके बाद मध्य प्रायदीपीय भारतीय नदी के 1312 किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में बेड़ा यात्रा की थी। उन्होंने एक कॉफी टेबल बुक भी तैयार की थी जिसमें नर्मदा एवं उसके तटों के आसपास मौजूद जीवन की आकर्षक तस्वीरें थीं। (पसूका)
‘निवेदिता खांडेकर दिल्ली में कार्यरत एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह पर्यावरण एवं विकास से जुड़े मुद्दों पर लिखती रही हैं।
श्री दवे ने ‘वसीयत’में इस बात का उल्लेख किया है कि उनके नाम से कोई भी स्मारक या पुरस्कार नहीं होना चाहिए और अगर कोई व्यक्ति उनकी याद में कुछ करना ही चाहता है तो उसे और ज्यादा पौधे लगाने चाहिए, नदी-तालाबों का वजूद बचाये रखना चाहिए और नदियों का संरक्षण करना चाहिए। यही नहीं,जैसा कि वह ‘नर्मदा समग्र’ के अपने सहयोगियों से हमेशा कहा करते थे, उन्होंने यही इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार नर्मदा नदी के तट पर ही किया जाना चाहिए।