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पशुओं पर मौसम का प्रभाव

वैसे तो ग्रीष्मऋतु का प्रभाव लगभग सभी प्रकार के जानवरों पर देखा गया है, परंतु सबसे अधिक प्रभाव गाय, भैंसों पर तथा मुर्गियों  पर होता है। यह भैंस के काले रंग, पसीने की कम ग्रंथियों तथा विशेष हार्मोन के प्रभाव के कारण होता है। जबकि मुर्गियों में पसीने वाली ग्रंथियों की अनुपस्थिति तथा अधिक शरीर तापमान (107 डिग्री फेरानाइट) के कारण होता है।
पशुओं में लू लगने के लक्षण
  • पशु गहरी सांस लेता है व हापने लगता है।
  • पशु की अत्याधिक लार बहती है।
  • पशु छाया ढूंढता है तथा बैठता नहीं है।
  • पशु दाना, चारा नहीं खाता है तथा पानी के पास इकट्ठा हो जाता है।
  • पशु को झटके आते है तथा अन्त में मृत्यु तक हो जाती है।
  • पशु का शरीर छूने में गरम लगता है, तथा गुदा या मलाश्य का तापमान बढ़ जाता है।
ग्रीष्म ऋतु में जब वातावरण का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है, तो पशु प्रजातियों में गर्मी के द्वारा उत्पन्न तनाव होने के कारण पशुओं की शरीर वृद्धि, उत्पादन व प्रजनन क्षमता विपरीत रूप से प्रभावित होने लगती है। सामान्यत: गर्मी तनाव से बचने के लिए पशु प्रजातियों के अनुवांशिक गुण, पशु को विपरीत तापमान के प्रति सहनशील बनाते हैं, परंतु जब तापमान आवश्यकता से अधिक हो जाता है, तो पशु की दैहिक व दैनिक गतिविधियों में स्वत: ही परिवर्तन होने लगता है और पशु असामान्य महसूस करता है। जिसके कारण पशु की पुर्नउत्पादन प्रक्रिया जैसे मादा गर्भाशय में अंडा न बनना, अंडे का सम्पूर्ण विकास न होना व भ्रूणीय विकास अंडजनन के बाद भ्रूण का विकास न होना आदि तथा नर पशुओं में वीर्य की मात्रा तथा गुणवत्ता में भी गिरावट देखी जाती है।
गर्मी का गाय, भैंसों पर प्रभाव
  • गर्मी के कारण पशु की चारा व दाना खाने की क्षमता घट जाती है।
  • पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता घटती है।
  • मादा पशु समय से गर्मी या ऋतुकाल में नहीं आती है।
  • गाय, भैंसों के दूध में वसा तथा प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • मादा पशु की गर्भधारण क्षमता घट जाती है।
  • मादा पशु बार-बार गर्मी में आती है।
  • मादा में भ्रूणीय मृत्यु दर बढ़ जाती है।
  • पशु का व्यवहार असामान्य हो जाता है।
  • नर पशु की प्रजनन क्षमता घट जाती है।
  • नर पशु से प्राप्त वीर्य में शुक्राणु मृत्यु दर अधिक पाई जाती है।
  • नर व मादा पशु की परिपक्वता अवधि बढ़ जाती है।
  • बच्चों की अल्प आयु में मृत्यु दर बढ़ जाती है।
गर्मी से बचाव हेतु उपाय
  • गर्मी के दिनों में पशुगृह या पशु सार, गर्मी तनाव को कम करने का बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत है। पशुगृह हवादार होना चाहिए जिसमें हवा के  आने-जाने का उचित प्रबंधन होना चाहिए। गर्मी से पशुओं को बचाने के लिये पेड़ की छाया उत्तम साधन है। परंतु जहां प्राकृतिक छाया उपलब्ध नहीं है, तो वहां कृत्रिम आश्रय स्थल उपलब्ध कराये जाना चाहिए। पशु गृह के छत की ऊंचाई 12 फीट या उससे अधिक होनी चाहिए।
  • पंखों या फव्वारे के द्वारा पशुशाला का तापमान लगभग 15 डिग्री फेरानाइट तक कम किया जा सकता है। पशु शाला के अंदर जो पंखे प्रयोग में लायेजाते है, उनका आकार 36-48 इंच और जमीन से लगभग 5 फीट ऊंची दीवार पर 30 डिग्री एंगल पर लगाना चाहिए।
  • वाष्पीकरण ठंडा विधि से पंखे, कूलिंग पेड़ और पंप द्वारा जो कि पानी को प्रसारित व प्रवाहित करके दवाब के साथ-साथ पानी की छोटी-छोटी बूंदों में बदलकर पशुओं के ऊपर छिड़कता है, जिससे गर्मी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • पशुशाला को कूलर लगाकर भी ठंडा किया जा सकता है। एक कूलर लगभग 20 वर्गफुट की जगह को बहुत अच्छा ठंडा कर सकता है।
  • पशुशाला के आसपास यदि तालाब हो तो पशु को तालाब के अंदर नहलाने से पशु का शरीर का तापमान कम हो जाता है। तालाब बनाने पर तालाब की लंबाई 80 फीट,    चौड़ाई 50 फीट तथा गहराई 4-6 फीट होना चाहिए।

 

  • डॉ. प्रमोद शर्मा
  • डॉ. डी.के. सिंह
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