Editorial (संपादकीय)

अन्नदाता को तमाशा न बनायें

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दुनिया में काश्तकार को धरतीपुत्र एवं अन्नदाता का दर्जा सिर्फ इसलिये प्राप्त है क्योंकि वह पूर्ण ईमानदारी एवं स्वाभिमान से धरती के जीवन के लिये पेट भरने की व्यवस्था करता है। लेकिन दुर्भाग्यवश इस देश की नौकरशाही अन्नदाता की अहमियत को नहीं समझ पा रही है। मप्र सरकार को लगातार पांच कृषि कर्मण अवॉर्ड का तोहफा दिलाने वाले इस धरतीपुत्र के हालात उसके अपने प्रदेश में यह है कि वह लगातार नौकरशाही के आगे याचक बनकर खड़ा है। राज्य सरकार सिर्फ काश्तकार से वोट प्रबंधन के लिये तरह-तरह की लोकलुभावनी योजनाऐं प्रारंभ कर रही है। लेकिन बगैर पूर्व तैयारी से लागू यह योजनाएं राज्य के किसानों के लिये आफत से कम नहीं है। राज्य सरकार की परिवर्तित हुई घोषणा में चना, मसूर एवं सरसों की खरीदी भावान्तर के बजाए सरकारी समर्थन मूल्य पर 10 अप्रैल से होना थी। तय तारीख से दो दिन बाद प्रारंभ इस व्यवस्था में बारदाने एवं सर्वेयरों की कमी किसानों की परेशानी का कारण बनी हुई है।

राज्य के किसानों से बेटा एवं मामा का रिश्ता जोडऩे वाले मुख्यमंत्री के संज्ञान में किसानों की परेशानी न आना भी एक किसान बेटे की असलियत को प्रश्नांकित करने वाला है।

तुलाई केन्द्रों की सीमित संख्या के कारण किसानों को 50 किमी तक की दूरी तय करके तुलाई केन्द्रों तक पहुंचना पड़ रहा है। जबकि किसान को तुलाई हेतु सूचना तय तिथि को मात्र 7 से 12 घंटे पूर्व राजधानी भोपाल के एनआईसी केन्द्र से एसएमएस के माध्यम से दी जा रही है। इतने कम समय में किसानों को तुलाई केन्द्र तक अपनी फसल को लेकर पहुंचना बेहद मुश्किल हो रहा है। योजना के शुरुआती दिन को तुलाई केन्द्र तक पहुंचने में पचास फीसदी किसान असफल रहे है। सूचना उपरांत सीमित घंटों की अवधि में फसलों के परिवहन हेतु संसाधन एवं चढ़ाई-उतारी के लिये मजदूर जुटा पाना किसान के लिये एक बड़ी चुनौती है। लेकिन राज्य की नौकरशाही को इससे कोई वास्ता नहीं है कि किसान बिक्री केन्द्र तक कैसे पहुंचता है। राज्य के किसानों से बेटा एवं मामा का रिश्ता जोडऩे वाले मुख्यमंत्री के संज्ञान में किसानों की परेशानी न आना भी एक किसान बेटे की असलियत को प्रश्नांकित करने वाला है।
सर्वेयर के इंतजार में बीतता दिन
फसल परीक्षण हेतु तय सर्वेयरों की सीमित संख्या होने की वजह से एक-एक सर्वेयर के हवाले कम से कम तीन तुलाई केन्द्र किये गये है। सर्वेयर की परिक्षण रिर्पोंट के बगैर तुलाई का प्रावधान तय नियम में नही है। इसलिये पूरे-पूरे दिन सर्वेयर का इंतजार करता किसान, राज्य की इस सरकारी मशीनरी के आगे बेबस नजर आ रहा है। सर्वेयर की जांच के बाद ही तय हो पा रहा है कि फसल तुलाई योग्य है भी या नहीं? सर्वेयरों द्वारा तुलाई केन्द्रों पर लाई गयी, 40 फीसदी फसल को गुणवत्ताहीन करार दिया जा रहा है। मप्र में चना, मसूर की फसल कटाई फरवरी माह से प्रारंभ होकर, मार्च के दूसरे पखवाड़े तक राज्य में दलहनी फसलों की कटाई पूर्ण हो चुकी थी। एक — डेढ़ माह से राज्य का किसान फसल को ब्रिकी से सिर्फ इसलिये रोके हुआ था, कि उसे तय सरकारी मूल्य का भाव मिल सके, लेकिन लम्बे इंतजार के बाद भी वह राज्य नौकरशाही की कार्यप्रणाली से स्वयं को लुटा महसूस कर रहा है।
समितियों, साइलो पर अव्यवस्थाएं भारी
गेहूं उपार्जन की व्यवस्था में सहकारी समितियों एवं साइलों केन्द्र पर अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि एसएमएस में तय तारीखों से कम से कम एक सप्ताह विलंब से फसलों का तौला जाना संभव हो पा रहा है। लेकिन विलंब सूचना किसानों तक प्रेषित नहीं की जा रही है। गेहूं तुलाई केन्द्रों पर तकनीकी कारणों, हम्मालों की कमी एवं अपर्याप्त स्थान, इस विलम्ब के कारण बने हुये है। जबकि राज्य के कुछ साइलों केन्द्रों को खरीदी क्षमता पूर्ण बताकर बंद कर दिया है। इनसे सबंधित किसानों को अब सहकारी समितियों के पास भेजा जा रहा है। इस अराजकता में घनचक्कर बना राज्य का किसान तुलाई के बाद भुगतान के लिये भी भटक रहा है। सहकारी समितियों से तुलाई लगभग एक सप्ताह बाद किसानों के खातों में पैसा पहुंचना संभव हो रहा है। जबकि यह समय किसानों के घरों में मांगलिक कार्यों का है, उसे बैंक भी तय समय में भरना है। इसके साथ उसे मानसून पूर्व खेती के सभी कामों को निपटाना भी हैं।

राहत भी रिश्वत के रास्ते
राज्य में सूखा राहत के वितरण को जिस उदारता से प्रचारित किया जा रहा है। उसकी हकीकत यह है कि प्रशासन द्वारा अनेकों बैरियर के माध्यम से किसानों के खातों में राशि को भेजने से रोक दिया है। जिन किसानों ने भावांतर में पंजीकृत हुई तय मात्रा की खरीफ फसल को पूरा या उससे अधिक बेचा है तो ऐसे किसानों को सूखा राहत के लिये तहसील द्वारा आपात्र घोषित किया जा रहा है। इस नीति का कोई स्पष्टीकरण न होने से मजबूर किसान इस राशि की प्राप्ति हेतु तहसील स्तर के कर्मचारियों को प्रलोभन एवं रिश्वत की पेशकश कर रहा है। तहसील कर्मचारी भी इस अनैतिकता के कार्य में लिप्त हो चुके हैं। सूखा राहत योजना मात्र किसान की हमदर्दी एवं उसका वोट हासिल करने का सरकार का एक आंतरिक प्रबंधन हैं लेकिन इसका वितरण किसान को तरसा – तरसा कर या चीन्ह-चीन्ह कर किया जा रहा है।
सीएम हेल्पलाईन में शिकायतें बंद
गत खरीफ फसल में लागू की गई भावान्तर योजना में विक्रय हुई फसल के अन्तर की राशि प्राप्ति के लिये आज भी राज्य का 25 फीसदी किसान दफ्तर दफ्तर चक्कर लगा रहा है। राज्य की शिकायत निराकरण सेवा – सीएम हैल्प लाइन में लगभग आठ हजार भावांतर सबंधी शिकायतें एल 3 एवं एल 4 अधिकारियों के पास आज भी लंबित है। लेकिन इन्हें परीक्षण के बगैर जोर जबरदस्ती बंद किया जा रहा है।
राज्य की विदिशा कृषि उपज मंडी में भावांतर राशि न मिलने की लगभग 4 हजार शिकायतें है। जिनमें से अधिकांश शिकायतों को मंडी सचिव द्वारा आपात्र बताकर बंद करने की सिफारिश की है। लेकिन इनमें से जिन जुझारु किसान अपने हक की इस लड़ाई को आगे ले जाकर चुनौती दी है, उनकी पात्रता न केवल सिद्ध हुई है, बल्कि उनको भुगतान भी प्राप्त हुआ है। एक अधिकारी के दुराभाव एवं काम न करने की नियत ने जिले के सैकड़ों किसानों को उनकी भावान्तर राशि से वंचित कर दिया गया है। सरकार की अटपटी घोषणाओं एवं शासकीय सेवकों की खोटी नियत किसानों को लाचार बनाये हुये हंै। लेकिन इसकी परणीति सरकार के वोट बैंक में इजाफे के बजाये उसको अलोकप्रिय बनाने वाली सिद्ध हो रही है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार है।
मो. : 9425640778

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