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जैव विविधता पर संकट

दक्षिण-पूर्व एषिया में जैव विविधता पर संकट के बादल ज्यादा हैं। यहां के देश आर्थिक रूप से भले ही पिछड़े हो परंतु ये जैव विविधता में सम्पन्न है। वर्तमान में उपभोक्तावाद तथा विकास की अंधी दौड़ में यहां के देश भी शामिल होकर प्राकृतिक संसाधनों का अति-दोहन कर रहे हैं जिससे जैव विविधता घट रही हैं। सम्पूर्ण विश्व में जैव विविधता के जो 25 मुख्य स्थल (हाट-स्पाट) पहचाने गये हैं, उनमें से 06 दक्षिण-पूर्वी एशिया में है। यहां पर फैली जैव विविधता में नई-नई प्रजातियों के मिलने की संभावना काफी अधिक है। 1997 से 2014 के मध्य यहां 2216 नई प्रजातियों की खोज की गयी। पौधा तथा कशेरुकी (वर्टिबेट्स) की 20 प्रतिशत स्थानिक (एंडेमिक) प्रजातियां यहां रिकार्ड की गई है। इसी के साथ-साथ दुनिया का तीसरा बड़ा उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन (ट्रापिकल रेन-फॉरेस्ट) का क्षेत्र भी यहां है। यहां के मेकांग क्षेत्र में प्रजातियों की विविधता अधिक है एवं जीवों की लगभग 100 नई प्रजातियां यहां प्रतिवर्ष खोजी जाती हैं।
यहां की जैव विविधता पर सबसे बड़ा खतरा वनों के विनाश से है। यहां किये गये कुछ अध्ययनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में तो वन विनाश कम हुआ (लगभग 14.5 प्रतिशत) परंतु आगामी 9-10 वर्षों में कई  क्षेत्रों में शेष बचे 90 प्रतिशत वन समाप्त हो जाएंगे। सेटेलाइट से प्राप्त चित्रों के अनुसार फिलीपाइंस में लगभग 90 प्रतिशत वन समाप्त हो चुके हैं। इस वन विनाश से स्तनपायी जीव (मेमल्स) सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। कागज, रबर तथा पॉम आईल उद्योग द्वारा यहां सर्वाधिक वन साफ किये जा रहे हैं। दुनिया की जरुरत का 86 प्रतिशत पॉम-आईल तथा 87 प्रतिशत रबर यहीं से आता है। पॉम आईल के खाद्य तेल व बायो डीजल के सस्ते विकल्प के रूप में आने से यहां अधिक से अधिक पॉम के पेड़ जंगल काटकर लगाये जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार यहां के वनों में पॉम वृक्षों को उगाने हेतु सर्वाधिक अनुकूल परिस्थितियां पाई जाती है। वर्ष 2024 तक पॉम आईल उत्पादन का क्षेत्र 4.3 से 8.5 मिलियन हेक्टर तक होने की संभावना है। पॉम-रोपण व उत्पादन से जुड़ी कई कृषि व्यापार की कम्पनियां लेटिन अमेरिका में 23 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले वर्षा वनों में पॉम-रोपण का कार्य कर रही है। कुछ वर्षों पूर्व यहां के आकाश में जो काले बादल फैल गये थे। उसका कारण वनों को जलाने से निकला धुआं था। ब्राजील भी अब सोयाबीन तथा गन्ने की खेती छोडकऱ पॉम-आईल उद्योग की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि यह ज्यादा मुनाफा देता है। यहां की सरकार ने अमेजन के वर्षा वनों के क्षेत्र में पॉम-आईल उत्पादन योजना को मंजूरी प्रदान कर दी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां के वर्षा वन पृथ्वी पर जीवों के लिए आवश्यक प्राणवायु (ऑक्सीजन) का 40 प्रतिशत हिस्सा पैदा करते हैं। वन विनाश से बिगड़ते पर्यावरण को देखते हुए सरकारों ने पॉम-आइल तथा रबर उत्पादन को पर्यावरण हितैषी बनाने हेतु कई नियम कानून व शर्तें उद्योगों पर लगायी परंतु उनका खुले आम उल्लंघन हो रहा है।
वन विनाश के अलावा यहां अधिक संख्या में बने बांध एवं बनने वाले बांधों से भी जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव हो रहा है एवं यह आगे भी जारी रहेगा। मेकांग डेल्टा मे 78 बांध बनाने की योजना प्रस्तावित है। बांधों के जलाशयों में पानी रुकने से प्रवासी मछलियों की संख्या 70 प्रतिशत तक घटने की संभावना बताई जा रही है। इस क्षेत्र में 65 मिलियन लोग मछली पालन के धंधे से जुड़े हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिकों ने नम भूमियों (वेट लैण्ड्स) में सर्वाधिक जैव विविधता का आकलन किया है, परंतु इस क्षेत्र की नम भूमियों भी वन विनाश, कृषि विस्तार एवं कुछ अन्य कारणों से 80 प्रतिशत समाप्त हो रही है। इनकी समाप्ति या कमी से लगभग 80 प्रतिशत प्रवासी पक्षियों पर संकट पैदा हो गया है।
खनन से जुड़े कई कार्य भी जैव विविधता पर असर डाल उसे कम कर रहे हैं, परंतु इस ओर अभी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आठ लाख वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में चूने पत्थर की खदानें यहां फैली है, जिसका उत्खनन सीमेंट निर्माण हेतु बेधडक़ किया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि चूने की अधिकता को सहन कर जीवित रहने वाली कई पादप प्रजातियां यहां हो सकती है जिनके संबंध में अभी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
अवैधानिक शिकार एवं वन्य जीवों से प्राप्त कई प्रकार की वस्तुओं का अवैध व्यापार या तस्करी भी जैव विविधता को कम कर कई प्रजातियों को विलुप्ति की ओर बढ़ा रही है। वन्य जीव एवं उनसे प्राप्त वस्तुओं का व्यापार चौथा बड़ा व्यापार माना गया है। औषधि निर्माण, सजावटी कार्य तथा प्राणी संग्रहालय एवं मछली-घरों में रखने के लिए जीवों का अति दोहन एवं तस्करी इस हद तक की जा रही है कि विलुप्ति का खतरा पैदा हो गया है। कुछ वर्षों पूर्व अफ्रीका के देष केमरुन में 200 हाथियों को इसलिए मार दिया गया था कि हाथी-दांत बेचकर वहां की सरकार को हथियार खरीदना थे।
कई कारणों से हो रहा वन विनाश,बांधों की बढ़ती संख्या, नम-भूमियों में कमी, अनियंत्रित खनिज कार्य एवं वन्य जीवों तथा उनसे प्राप्त सामान की तस्कारी आदि ऐसे कारण हैं जो यहां की जैव विविधता पर इतना संकट पैदा कर रहे हैं कि कई जीवों की भविष्य में विलुप्ति निश्चित है। दुनिया के विकसित देशों को पेट्रोल के बाद अब जैव विविधता हरे-सोने (ग्रीन गोल्ड) के रूप में दिखायी दे रही है।

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