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मुख्यमंत्री समृद्धि योजना

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समर्थन मूल्य से अधिक दाम देने की नीति के कारण प्रदेश का प्रत्येक किसान केवल गेहूं उत्पादन के लिए प्रेरित होगा, प्रदेश में परिणामस्वरूप दलहन-तिलहन का रकबा घटता जाएगा, हमारी विदेशों से इनके आयात की विवशता बनी रहेगी। इससे राजनीति बाजों को क्या फर्क पड़ेगा उनका ध्येय तो येन-केन प्रकारेण सत्ता पर विराजमान होना है।

                             (श्रीकान्त काबरा, मो. 9406523699)
हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री किसान समृद्धि योजना घोषित की है। इस योजना में गेहूं उत्पादक किसानों को समर्थन मूल्य के अलावा 265 रु. प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि वर्ष 2017-18 के लिए व 200 रु. प्रति क्विंटल वर्ष 16-17 के लिए दिये जायेंगे। इस योजना के लागू होने से मुख्यमंत्री आम चुनाव के बाद फिर से सत्ता पर आसीन होने के लिए आशान्वित हैं, इसके साथ ही साथ छठवें कृषि कर्मण पुरस्कार पाने की भी संभावना बलवती हो रही है। प्रदेश शासन द्वारा आजू-बाजू के प्रदेशों की तुलना में महंगा गेहूं खरीदने की नीति के कारण अन्य पड़ौसी प्रदेशों से भी चोरी-छिपे गेहूं आएगा और प्रदेश में गेहूं उत्पादन का आंकड़ा एक नई ऊंचाई पर पहुंच जाएगा।

इस नीति से सिंचित गेहूं की खेती करने वाले किसान और अधिक उत्पादन के लिये प्रेरित होंगे। उत्पादन वृद्धि के लिए अनुदान सहायता से प्राप्त रसायनिक उर्वरकों का और अधिक प्रयोग करेंगे, सिंचाई जल का और अधिक दोहन करेंगे। इससे भले ही भूगर्भ जल में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाए। जैविक खेती की दुहाई देने वाले भाषण ही तो देना पड़ेंगे।
केन्द्र शासन द्वारा कृषि लागत-मूल्य आयोग की सिफारिशों को दर-किनार कर प्रोत्साहन राशि देने के नाम पर मनमानी करने से उपभोक्ताओं को तो महंगा गेहूं मिलेगा ही, साथ ही करदाताओं को भी राजस्व जुटाने के लिये और अधिक करारोपण के दायरे में आना पड़ेगा। प्रदेश शासन की करारोपण के माध्यम से एक वर्ग को नंगा करने की और दूसरे वर्ग को कपड़े पहनाने की यह अपूर्व योजना है।
प्रोत्साहन के नाम पर खैरात बांटने की ऐसी योजनाओं से ही क्या किसान की आमदनी दुगनी करनी है अथवा कृषि को लाभ का धंधा बनाना है और क्या ऐसी खैरात से किसान स्थाई रूप से समृद्ध हो पाएगा यह विचारणीय प्रश्न है।

विचारणीय बिन्दु
  • अन्य प्रदेशों का गेहूं आने की संभावना।
  • उपभोक्ताओं को मिलेगा महंगा गेहूं।
  • सहकारी बैंकों की हालत खराब।
  • प्रोत्साहन राशि से कैसे बढ़ेगी आय।
  • घोषणाओं का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन सुस्त।

ऐसी मनमानी योजना से दलहन तिलहन, उत्पादक एवं शुष्क कृषि क्षेत्र धारित किसान लाभान्वित नहीं होंगे। प्राकृतिक संसाधनों भूमि उर्वरता, भूगर्भ जल के अत्यधिक दोहन के बाद यदि कभी मौसम ने साथ नहीं दिया, अवर्षा और सूखे की स्थिति में किसानों का, प्रदेश की जनता का क्या हाल होगा, इस पर भी क्या गंभीरतापूर्वक विचार किया है?
लगातार पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार लेने के बावजूद ऐसी लोक लुभावन नीतियों के कारण प्रदेश का खजाना खाली है। 17.5 लाख ऋण ग्रस्त किसान चूककर्ता किसान बन गये हैं, सहकारी बैंकों की हालत पतली है और प्रदेश में गरीबों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है। हाल ही में जारी आंकड़ों में अनुसार साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में साढ़े पांच करोड़ गरीब हैं। शिक्षा, स्वस्थ, कानून व्यवस्था की स्थिति चरमरा रही है, कुपोषण, बाल मृत्युदर, प्रसव के समय मृत्युदर की स्थिति गंभीर है किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने सामाजिक कल्याण की योजनाओं की झड़ी लगा रखी है, इसके लिए कर्ज ले -लेकर राज्य की अर्थव्यवस्था को दांव पर लगा रखा है। वस्तुत: अधिकांश योजनायें गरीब जनता का भला करने की बजाए उसे अकर्मण्य बनाकर गरीबी के मकडज़ाल में फंसा रही हैं। गरीब होते प्रदेश में गांवों में शहर की तुलना में शराब की खपत 11 प्रतिशत बढ़ गई है। प्रदेश शासन महर्षि चार्वाक की उधार लेकर घी पीने की नीति का परिपालन कर रही है और समृद्धि के नाम पर किसानों को भी यही शिक्षा दे रही है।
प्रोत्साहन राशि की आड़ में सत्तासीन होने की कोशिश करने की बजाए, किसानों की समृद्धि हेतु मौसम की विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए प्रोत्साहन राशि से प्रदेश भर में जल संग्रहण संरचनायें निर्मित करना दीर्घकालीन लाभ की दृष्टि से सर्वोत्तम उपाय होता। इससे भूजल संरक्षण, संवर्धन होता, सिंचाई क्षेत्र बढ़ता और सूखे से सामना करने में आसानी होती और ऐसा तभी संभव है जबकि योजना वास्तविक अर्थों में किसान समृद्धि योजना होती। फिलहाल तो मुख्यमंत्री की किसानों के लिए की गई घोषणाओं का लाभ जमीनी स्तर पर लचर प्रशासनिक क्रियान्वयन के कारण कम ही मिल पर रहा है और इसके ठीक उलट आम जनता के मध्य किसानों की छबि ऋण न चुकाने वाले, बिजली का बिल न भरने वाले, सिंचाई कर न चुकाने वाले की बन रही है और मुख्यमंत्री जितनी किसान हितैषी तथाकथित घोषणायें कर रहे हैं उतनी ही किसानों की उनसे अंतहीन अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं।
सभी जगह उपकृत होने की बजाए असंतोष के सुर सुनाई दे रहे हैं। विभिन्न किसान संगठनों की बढ़ती सक्रियता इस सत्य की प्रतीति करा रही हैं।
प्रदेश के किसान भाईयों की प्रवृत्ति में भी एक परिवर्तन दिखलाई दे रहा है। कल तक वे रामजी के भरोसे रहते थे और आज मामाजी के भरोसे हैं। मामाजी ने जहां गेहूं दो हजार रु. क्विंटल दाम पर खरीदने की घोषणा की वहीं राम जी ने फरवरी माह में मौसम के सामान्य तापक्रम में वृद्धि कर दी इसके परिणामस्वरूप गेहूं का उत्पादन निश्चित ही सामान्य से कम होगा। पुरानी कहावत है- समय से पहले और किस्मत से ज्यादा कभी नहीं मिलता। रामजी और मामाजी की प्रतिस्पर्धा में किसानों का भाग्य विधाता कौन बनेगा, यह तो समय ही बतलाएगा।

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