मुनाफे का धंधा – ‘सर्पगंधा’
भूमि एवं जलवायु
सर्पगंधा बालुई जलोढ़ से लेकर लाल लैटराइट दोमट जैसी अनेक प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। इसके लिये उचित जल निकास वाली भूमि उपयुक्त रहती हैं।
प्रजातियां
जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्व विद्यालय के इंदौर कृषि महाविद्यालय द्वारा सर्पगंधा-1 (आरएस-1) प्रजाति विकसित की गई है। यह 18 महीने की फसल हैं। इसकी उपज 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा एल्कोलाइड की मात्रा 1.64 से 2.94 प्रतिशत पाया जाता है।
बीज दर
एक हेक्टेयर भूमि में सर्पगंधा फसल लगाने के लिए 6 से 8 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले बीजों को रात भर पानी में भिगोकर रखें। सुबह तैरते हुुए बीजों को अलग कर दें शेष बीजों को 3 ग्राम थायरम प्रति किलो ग्राम की दर से उपचार करें।
नर्सरी प्रबंधन
नर्सरी में मई के महीने में उपचारित बीजों को 6 से 7 सेमी की दूरी पर तथा 1 से 2 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। 500 वर्ग मीटर नर्सरी के लिये 5 से 6 किलो ग्राम बीजों की आवश्यकता होती है, जिसे एक हेक्टेयर में रोपा जा सकता है। लगभग 15 से 20 दिन के बाद अंकुरण शुरू होता है। तथा 40 से 50 दिन में पूरा हो जाता है। पौधे 40 से 50 दिन के हो जाये और 4 से 6 पत्तियां निकल आए तब इन्हें सावधानी पूर्वक उखाड़कर एवं जड़ों को एमिसन नामक फफूंदी नाशक दवा के 0.1 घोल में डूबोकर निकालें। इससे बीज जनित फंगस से पौधों की रक्षा होगी। खेत में तैयारी के समय ही 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद मिला डालें। इसके बाद पौधों को 45&30 सेमी की दूरी पर लगायें।
खाद एवं उर्वरक
पौधे को रोपित करने से पहले 43 किलो ग्राम यूरिया 250 किलो ग्राम सिंगल सुपरफास्फेट तथा 60 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश को आधार खाद के रुप में प्रयोग करें। इसके बाद फसल अवधि के दौरान खड़ी फसल में 43-43 किलो ग्राम यूरिया का प्रयोग प्रति हेक्टेयर दो बार करें।
सिंचाई
वर्षाऋतु में 3 निंदाई तथा 1 गुड़ाई दिसं. के महीने में करें।
कीट- नेमाटोड एवं इल्ली का संक्रमण होने पर 20 किलो ग्राम 10 जी फोरेट का प्रयोग करें एवं कैटरपिलर को रोकने के लिये ट्रायकोग्रामा जैविक कीटनाशी का 0.2त्न प्रयोग करें।
फसल कटाई
अधिक उपज लेने के लिए जड़ों को पौध रोपण के ढ़ाई से तीन साल बाद खोदें। खुदाई के बाद जड़ों की मिट्टी को अच्छी तरह पानी से धोकर 12 से 15 सेमी के टुकड़ों में काटकर सुखाने तथा भण्डारित करने के लिए तैयार रखें।
भण्डारण
सूखी तथा टुकड़ों में साफ हुई जड़ों को जूट के बोरों में भरकर रखा जाता है। भण्डारण के लिये जड़ों में 3 से 5 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। सर्पगंधा की जड़ों को पहले साल अवधि दो वर्ष तक भण्डारण में रख सकते हैं।
मिश्रित फसलें
खरीफ के मौसम में सोयाबीन तथा रबी में लहसुन के साथ लगाई जा सकती है।
लाभ
सर्पगंधा की खेती से लगभग 60 से 75 रुपये प्रति हेक्टेयर लाभ प्राप्त हो सकता है।
- कैलाश चन्द्र मीणा
- कैलाश चोकीकर