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नियमों में जकड़ी बीटी कॉटन की मंजूरी

 

विशेष प्रतिनिधि)
भोपाल। भारत में बीटी कपास और विवादों का चोली -दामन सा साथ है। कहीं पाबंदी, कहीं नियंत्रण, कहीं प्रशंसा, कहीं गुस्सा। देश के कृषि क्षेत्र में बीटी की विभिन्न किस्मों और फसलों के प्रति राजनेताओं, पर्यावरणविदों और सरकार का रिश्ता प्रेम और नफरत का रहा है। खरीफ में अक्षय तृतीया को कपास बिजाई का मुहूर्त होता है, वहीं शादी-ब्याह के ढोल बजते हैं। पर ये मुहूर्त खत्म होते ही बीटी कपास बेचने वाले व्यापारी, बीटी कपास बोने वाले किसान, और इन पर नियंत्रण रखने वाले कृषि विभाग में रस्साकशी या खींचतान शुरू हो जाती है।

बीज उद्योग की असहमति

  •  जीईएसी के सफल परीक्षण के बाद भी राज्य में पुन: 3 साल के ट्रायल की बाध्यता क्यों ?
  • हर साल अनुमति की व्यवहारिक दिक्कतें और कागजों की खानापूर्ति में वक्त जाया क्यों ?

मध्य प्रदेश में इस खरीफ मौसम के लिये 33 बीज कंपनियों द्वारा बीटी कॉटन की 119 किस्मों के अनुमोदन का प्रस्ताव दिया गया था। पर स्क्रूटनी कमेटी ने समुचित यूनिवर्सिटी परीक्षण के अभाव में केवल 23 कंपनियों की 50 बीटी कपास किस्मों को अप्रूव किया। इस नामंजूरी की प्रक्रिया से प्रभावित अनेक प्रतिष्ठित कंपनियों की बीटी किस्में अब मध्यप्रदेश के किसानों को उपलब्ध नहीं होगी। बीज कंपनियां इस वर्ष किसानों को जहां नया बीज उपलब्ध कराने की रणनीति बनाए बैठी थी, अब विभाग के निर्णय के चलते असमंजस में है।
बीज उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र तथा गुजरात में कृषि विश्वविद्यालय स्तर पर हाइब्रिड बीटी कपास के 2 वर्षों तक परीक्षण किये जाते हैं। इस आधार पर महाराष्ट्र में बिक्री हेतु 3 वर्षों तथा गुजरात में 4 वर्षों की अनुमति दी गई हैं। वहीं मध्यप्रदेश ने कृषि विश्वविद्यालय स्तर पर 3 वर्षों तक परीक्षण कराने के बाद भी मात्र 1 वर्ष के लिये बिक्री की अनुमति दी है। कृषि विश्वविद्यालय में सीड ट्रायल्स की भारी-भरकम फीस (1 परीक्षण के 75 हजार रु. + 14.5 प्रतिशत सर्विस टैक्स) और प्रक्षेत्रों की दयनीय स्थिति पर टिप्पणी करना व्यर्थ है। इन विसंगतियों को दूर करने के लिये मध्यप्रदेश के बीज उद्योग ने भारत सरकार के कृषि मंत्रालय को पत्र लिखा हंै ताकि मध्यप्रदेश के किसानों को नुकसान न हो। मध्यप्रदेश का कपास क्षेत्र महाराष्ट्र और गुजरात से सटा होने के कारण इन प्रदेशों से गैर अनुमति प्राप्त किस्में भी राज्य के किसानों को आसानी से उपलब्ध होंगी और इस प्रकार बीज का अवैध कारोबार बखूबी पनपने की आशंका है। अवैध कारोबार के फलने-फूलने से प्रदेश में नकली बीज माफिया की गतिविधियों को भी बल मिलता है। बीज उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक 4 वर्षों के लंबे परीक्षण के बाद विक्रय अनुमति उपरांत बीज की उत्पादकता तो प्रभावित होती ही है। साथ ही अन्य नई किस्में भी किसान की पहुंच के बाहर रहेंगी।
बीज उद्योग ने भारत सरकार से सभी राज्यों के लिये एक समान नियम बनाने की मांग की है, जिससे सभी राज्यों के कपास किसानों तथा बीज उद्योग के हित प्रभावित न हों।
कृषि विशेषज्ञ डॉ. विजय कुमार जैन ने कहा कि खेती की निरन्तर बढ़ती हुई वैज्ञानिक प्रगति से किसानों को तभी लाभ हो सकता है जबकि उन्हें नई उन्नत किस्मों के बीज पर्याप्त मात्रा में सुलभ हो।
आंकड़ों के आईने में बीटी कपास की उत्पादकता को देखा जाए तो वर्ष 2002 में देश में पहली बीटी किस्म को अनुमति मिलने के समय जहां कपास उत्पादकता 300 किलो प्रति हेक्टेयर थी वो बढ़कर वर्तमान में 600 किलो प्रति हेक्टेयर के आसपास है और कपास का क्षेत्रफल भी पूरे देश भर में 76 लाख हेक्टेयर से बढ़कर इन 14 वर्षों में 1 करोड़ 10 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गया है।

देश में विगत 12 वर्षों में कपास उत्पादन
इकाई – (क्षेत्र- मिलियन हे., उत्पादन- मिलियन गांठ, उत्पादकता- कि.ग्रा. प्रति हे.)
वर्ष                                          क्षेत्र                        उत्पादन        उत्पादकता
2002-03                            7.67                        8.62                191
2003-04                            7.60                     13.73                307
2004-05                            8.79                     16.43                318
2005-06                            8.68                     18.50                362
2006-07                            9.14                     22.63                421
2007-08                            9.41                     25.88                467
2008-09                            9.41                     22.28                403
2009-10                           10.13                   24.02                403
2010-11                            11.24                   33.00                499
2011-12                            12.18                    35.20                 491
2012-13                            11.98                    34.22                 486
2013-14*                          11.69                    36.59                 532
स्त्रोत- कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
भाजपा से जुड़े निमाड़ क्षेत्र के बड़े कृषि आदान व्यापारी ने सरकार को परोक्ष रूप से कोसते हुए कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खेती को लाभकारी बनाने की केवल बात करते हैं। मध्यप्रदेश के सारे किसान उनके खेत जैसे अनार और जरबेरा फूल उगाने लगे तो जनता के लिये रोटी और कपड़ा कहां से आएगा? मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री के खेत में बीटी कपास नहीं लगता, इसलिए उन्हें कपास के अच्छे बीज की फिक्र नहीं है।

मध्यप्रदेश के प्रमुख सचिव कृषि डॉ. राजेश राजौरा ने कहा कि बीटी कपास की विभिन्न किस्मों के ट्रायल के निर्धारित मापदंडों के आधार पर परिणामों से संतुष्ट होने पर ही अनुमति दी जाती है।

डॉ. राजेश राजौरा, प्रमुख सचिव कृषि, मध्यप्रदेश

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