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रिलायंस फाउण्डेशन की किसानों को सलाह

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  • गेहूं की सिंचित दशा वाली फसल में पांचवी सिंचाई 75-85 दिन बाद, दुधिया अवस्था के समय एवं छटी सिंचाई 85-95 दिन बाद दाना भराव की अवस्था में करें।
  • गेहूं में पीला रतुआ रोग की निरंतर निगरानी करते रहें, यदि रोग के लक्षण दिखाई दे तो प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी 2.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें एवं दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 1 लीटर प्रति एकड़ सिंचाई के साथ दें।
  • सरसों में रस चूसक कीट के नियंत्रण हेतु एसिटामिप्रिड दवा 0.3 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें सरसों में दूसरी सिंचाई बोनी के 65-75 दिन बाद फलियों में दाना बनते समय करें।
  • चने में उगरा या शुष्क जड़ सडन रोग की शिकायत होने पर ग्रसित पौधों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें तथा सिंचाई के समय खेत में ट्राईकोडर्मा विरिडी 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद में मिलकर भुरकाव करें।
  • ग्रीष्म कालीन फसलों की बुआई सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने पर मूंग, उड़द या सब्जी वाली फसलों की बुआई अभी से लेकर अगले माह तक कर सकते हैं।

उद्यानिकी

  • प्याज, लहसुन में थ्रिप्स की रोकथाम के लिए डायमिथिएट 1.5 मिली प्रति लीटर का छिड़काव करें, 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से उपयोग करे।
  • सब्जियों में सफ़ेद मक्खी के प्रकोप से पीला मोजेक वायरस रोग फेलता है, इसके नियंत्रण के लिए इथोफेनप्रॉक्स 10 ईसी एक लीटर दवा 500 लीटर पानी के साथ मिलाकर या 25 से 30 मिली दवा प्रति पम्प छिड़काव कर सकते हैं।

पशुपालन

  • पशुओं को बाह्य परजीवियों से बचाव के लिए क्लीनर या ब्यूटॉक्स नामक दवा को 1.0 लीटर पानी में 2.0 मिली दवा के अनुपात में मिलकर पशुओं के शरीर पर सुरक्षात्मक तरीके से लगायें तथा इसके उपरान्त पशु को एक घंटे बाद नहलायें।

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केला के प्रमुख रोग एवं निदान

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