Editorial (संपादकीय)

खरीफ मूंग की उन्नत खेती

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जलवायु:- यह मुख्यतया 60 से 75 से.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है। इसको गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है यह सूखे को बहुत अच्छी तरह सहन कर सकती है। इसको मुख्यत: खरीफ एवं गर्मी के मौसम में उगाया जाता है। जबकि उत्तर भारत में खरीफ एवं गर्मी में एवं दक्षिण भारत में रबी में भी उगाया जाता है।
भूमि:- इसकी किस्मों को दक्षिण भारत की लाल लेटराइट मिट्टी से लेकर मध्यप्रदेश की काली एवं गुजरात की रेतीली मिट्टी में भी उगाया जाता है। मूंग की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। अधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी मूंग के लिए सही नहीं मानी जाती है।
किस्में:- बोनी हेतु अपने क्षेत्र के लिये अनुसंशित मूंग की उपयुक्त किस्मों का ही चयन करना चाहिये। बोनी हेतु प्रमाणित बीज का ही उपयोग करना चाहिये।
खेत की तैयारी:- खेत की तैयारी दो बार हेरो चला कर करनी चाहिए। वर्षा होने के बाद ही दो तीन बार हल बखर चलाकर खेत को समतल करें। खेत से कचरा बिनवा कर साफ कर लें जिससे खरपतवार कम उगती है। एवं पौधों की बढ़वार अच्छी होती हैं। खेत अच्छी तरह से बराबर एवं खरपतवार मुक्त होना चाहिये। प्रत्येक बखरनी के साथ पाटा लगाकर खेत को समतल करना चाहिए।
बीज एवं बीज की बुवाई:- जुलाई के प्रथम सप्ताह से अंतिम सप्ताह तक बोनी करना चाहिये। बोनी नारी या तिफन या सीडड्रिल से की जानी चाहिए। कतारों से कतारों की दूरी 30 से.मी. तथा पौधों की दूरी 10 से.मी. रखें एवं बीज 4-6 से.मी. गहराई में बोयें।
बीज दर एवं दूरी:- मूंग में 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज को 30 से.मी. की दूरी पर बोना चाहिये। बोने से पूर्व बीज को थाइरम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्रा./ कि.ग्रा. से उपचारित कर लेना चाहिए। साथ ही राइजोबियम कल्चर (1 पैकेट/10 कि.ग्रा.) से उपचारित करना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक:- मूंग फसल को साधारणत: आधारभूत उर्वरता वाली भूमि में उगाया जाता है। इसको बोने से पूर्व 8-10 टन कम्पोस्ट या गोबर की पकी हुई खाद बुवाई से 15 दिन पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। मूंग में पोषक तत्वों की पूर्ती के लिये 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश डालकर बुवाई की जानी चाहिए। उर्वरकों का उपयोग बुवाई के ठीक पहले बीज के 5-7 से.मी. नीचे डालकर करना चाहिये। जहां तक संभव हो सीड-कम फर्टीलाइजर ड्रिल का उपयोग करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:- मूंग में प्रथम निंदाई-गुड़ाई 20-25 दिन पर की जानी चाहिए। खरपतवारों के रसायनिक नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरोलीन का उपयोग 1 कि.ग्रा./हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के पूर्व भूमि में करना चाहिए। अथवा नींदा नाशक पेन्डीमिथेलीन 30 ई सी $इमेजाथायपर 2 ई सी .75 कि.ग्रा. को प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व तथा क्यूजालोफाप इथाइल 50 ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी के 25-30 दिन बाद छिड़काव करने से खरपतवारों का सफलतापूर्वक नियंत्रण किया जा सकता है।
कटाई एवं मड़ाई:- फलियों का अलग-अलग समय पर पकना दलहनी फसलों की मुख्य समस्या हैं। अत: जब फलियां अच्छी तरह पक जाये तो फलियों की तुड़ाई की जानी चाहिए। एस साथ पकने वाली किस्मे लगाना चाहिए। फलियों की तुड़ाई के बाद अच्छी तरह से सुखाकर मड़ाई करें।
उपज:- अच्छी तरह से प्रबंधन की गई फसल से 12-15 क्वि. दाने प्राप्त कर सकते है।

मूंग एक उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है। इसमें 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसका उपयोग दाल के साथ-साथ पूरे दाने के रूप में भी किया जाता है। अंकुरित मूंग का उपयोग दक्षिण भारत में करी बनाने में होता है तथा उत्तर भारत में मुख्यत: दाल के रूप में उपयोग होता है। यह आसानी से पच जाती है। इसका हलवा बहुत पौष्टिक होता है। मूंग दाल और छिलका रहित मूंग दाल को भूंजकर नास्ते के रूप में उपयोग किया जाता है जब इसको अंकुरित किया जाता है तो उसमें विटामिन-सी का संश्लेषण होता है मूंग  पौध का उपयोग हरी खाद में किया जाता है। दलहनी फसल होने के कारण इसमें वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को संरक्षित करने की क्षमता होती है तथा यह भूमि का क्षरण रोकने में भी उपयोगी है। यह कम समय में पककर तैयार होने के कारण सघन कृषि में बहुत उपयोगी है। इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी कर सकते हैं। इसका भूसा पशुओं के लिये एक पौष्टिक आहार है एवं दाल का छिलका पशुओं के चोकर में उपयोगी है। मूंग का भारत में दलहन उत्पादन में क्षेत्रफल की दृष्टि से 14 प्रतिशत एवं उत्पादन की दृष्टि से 7 प्रतिशत योगदान है।
उन्नत किस्में पकने की अवधि (दिनों में) उपज (क्वि./हे.)
मेहा (आईपीएम 99.125) 66 10
टी. जे. एम. 3 65 09-Oct
पी. के. व्ही. ए. के. एम. 4 62-66 10
आई. पी. एम. 02-14 60-65 11
हम-1 (मालवीय ज्योति) 60-65 9
जे. एम.-721 70-75 Dec-14
बी. एम -4 65-70 10-Dec
ए. के. एम. 8802 65-70 10-Nov
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