State News (राज्य कृषि समाचार)

उन्नत खेती का आधार अच्छा बीज

Share

उन्नत खेती का आधार अच्छा बीज

बीज के अंकुरण क्षमता का परीक्षण

किसान भाइयों को चाहिये कि बोनी करने के लिये जो बीज या बीज के रूप में अनाज रखा गया हो उसकी अंकुरण क्षमता का परीक्षण अवश्य कर लें। हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। इस कारण यहाँ के तीज-त्यौहार भी खेती से सीधा संबंध रखते हैं। जैसे हमारे यहाँ वर्ष में दो बार चैत्र एवं कार्तिक माह में नवरात्रि मनायी जाती है। घरों में जवारा बोया जाता है। लेकिन वर्तमान पीढ़ी के लोगों को शायद इस बात का ज्ञान नही है, कि ऐसा क्यों किया जाता है, वास्तव में यही शुभ मुहूर्त बीज परीक्षण का होता है। चैत्र माह की नवरात्रि में खरीफ मौसम अर्थात् वर्षात में बोयी जाने वाली फसलों के बीजों का अंकुरण परीक्षण करते हैं और क्वार माह की नवरात्रि में रबी मौसम या सर्दियों में बोयी जाने वाली फसलों के बीजों का अंकुरण परीक्षण करते हैं।

बीज हमेशा 80-90 प्रतिशत से अधिक अंकुरण क्षमता वाले ही प्रयोग करना चााहिये, तथा समुचित मात्रा में पौध संख्या प्राप्त करने के लिये बीज की मात्रा उसी अनुपात में बढ़ा देना चाहिये। अंकुरण जाँच का दूसरा तरीका यह है, कि एक फटे-पुराने तौलिया को पानी से गिला करके फैला लेते हैं, और उसमें बराबर दूरी पर 100 दाने लगभग रखकर तौलिया को लपेट कर एक प्लास्टिक की थैली में रख देते हैं। 8-10 दिन बाद उसको थैली से निकालकर फैलाते हैं। एवं अंकुरित दानों की संख्या गिनकर ऊपर बताये गये तरीके से अंकुरण प्रतिशत एवं उनके जड़ एवं तने की जाँच करें।

बीज की भौतिक शुद्धता

बीज की भौतिक शुद्धता का तात्पर्य बीज का आकार, चमक, सुडौलपन एवं परिपक्वता से होता है। बीज की जाँच में ये लक्षण किसान भाईयों की काफी होना चाहिये। सभी बीज समान रूप से चमकदार होना चाहिये। यदि कुछ दाने किन्ही कारणों से कटे-फटे, सड़े-गले या खलिहान में भी गने से फफूंद युक्त हो गये हो तो ऐसे बीज का भी प्रयोग नही करेें। कई बार फसल को कुछ कच्ची अवस्था में ही काटना पड़ जाता है, जिसके कारण दानों का आकार बेडौल हो जाता है, ऐसे बीज के दाने लगभग समान दिखते हैं, लेकिन बोनी के लिये ये बीज उपयुक्त नही हैं। बीज हमेशा पूरी तरह से पकी फसल का ही होना चाहिये। बीज में खरपतवार के बीज खेत में जाकर फसलों का भोजन ले लेते हैं, तथा फसलों से प्रतिस्पर्धा करते है।

बीज कहाँ से खरीदें

बीज हमेशा उचित, प्रमाणित व विश्वसनीय संस्था से ही खरीदना चाहिये। जिससे वांछित बीज उचित दामों पर मिल सके। बीज मिलने के उचित श्रोत निम्न है- क्रय- विक्रय सहकारी समितियां राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य बीज निगम तथा इनकी अधिकृत दुकानें कृषि विश्व विद्यालय तथा कृषि प्रक्षेत्र, कृषि विभाग, कृषि विभाग में कार्यरत कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि ज्ञान केन्द्रों, सेे सम्पर्क कर भली प्रकार जानकारी हासिल करें एवं कृषि की नवीनतम तकनीकी को को अपनाते हुये अपनी कास्त करेंं।

बीज का आनुवांशिक तथा प्रजातीय शुद्धता

एक ही फसल किस्में विकसित हो जाने से यह समस्या अक्सर सामने आती है, कि बीज तो एक ही फसल का है, लेकिन उसमें अनेक किस्मों की मिलावट है, जिसे पहचान पाना एवं अलग करना व्यवहारिक रूप में असम्भव है। ऐसे बीज की बोनी करने से उत्पादन में भारी कमी आती है। क्योंकि हर किस्म का बढऩे, फेलने, फूलने, फलने, खाद-पानी अवशोषित करने एवं पकने के समय में काफी अंतर होता है।

बीज का आकार रंग तथा आकृति में समानता

बीज का रंग आकृति तथा सभी बीजों का आकार लगभग एक समान होना चाहिये। छोटे-बड़े आकार के असमान बीज नहीं होना चाहिये, यदि ऐसा है, तो बोनी के पूर्व बीज को छन्ने ये छानकर एक समान आकर के बीज ही बोने में प्रयोग करें। छोटे आकार का बीज वास्तव में अपरिपक्व रोग ग्रसित तथा कमजोर दाने होते हैं। इनमें संचित खाद्य पदार्थ की माात्रा भी कम होता है। बीज का रंग भी लगभग एक समान ही चमकदार तथा एक रंग का हो।

बीज की परिपक्वता

बीज खरीदते समय यह बात विशेष तौर पर ध्यान देने की है, कि पूरी तरह से पके हुए (परिपक्व) बीज ही खरीदें। क्योंकि परिपक्व बीज का जमाव अच्छा तथा शत-प्रतिशत होता है। बीज यदि यदि अपरिपक्व अवस्था का है, तो उसका जमाव कम प्रतिशत में होता है। ऐसे बीजों से उगने वाले पौधे कमजोर होते हैं, उनमें खरपतवार, जलवायु की प्रतिकूल दशाओं, कीड़ों तथा रोगों से संघर्ष करने की शक्ति कम होती है।
बुवाई में प्रयुक्त होने वाला बीज बहुत अधिक पुराना नहीं होना चाहिये, अधिक से अधिक एक वर्ष पुराना बीज बुवाई के लिये सबसे उपयुक्त होता है, इससे अधिक आयु के बीजों की अंकुरण क्षमता व जीवन क्षमता काफी कम हो जाती है। पुराने बीजों को पहचानने में किसान भाई अक्सर धोखा खा जाते है लेकिन कुछ ऐसे भौतिक लक्षण है।

कभी-कभी अच्छा अंकुरण क्षमता वाला बीज भी किसानों के खेतों पर कम उगता है जिसके निम्न कारण हो सकते है।

(क) बीज का उचित गहराई में न पहुंचना

कई बार किसान भाइयों की बोनी दोषपूर्ण ढंग से होने के कारण या तो बीज बिल्कुल ऊपर रह जाता है। या बहुत अधिक गहराई में चला जाता है, जिसके कारण उसका अंकुरण सम्भव नहीं हो पाता।

(ख) भूमि की भौतिक दशा

कई बार भूमि में उपयुक्त नमी नही होती (नमी या तो वांछित मात्रा से कम होती है, या अधिक होती है। ) जिसके कारण बीज का अंकुरण नहीं हो पाता। कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है, कि किसान भाई बतर आने के पूर्व ही खेत की जुताई कर देते हैं या खेत पानी के श्रोत पर जैसे तालाब, नहर या बाँध के किनारे है, और उसमें ऊपर के पानी रिसाव के कारण बतर नहीं आ पाता, परन्तु किसान को बोनी करनी है, इस कारण गीले खेत की जुताई करके उसमें बोनी कर देता है। ऐसी स्थितियों में भी बीज का अंकुरण रही एवं उपयुक्त मात्रा में नहीं होता है। क्योंकि गीली मिट्टी में वायु का संचार सही ढंग से नहीं हो पाता हे।

(ग) बीज को उचित मात्रा में हवा-पानी एवं सूर्य का प्रकाश न मिलना

बीज को अंकुरित होने एवं बढऩे के लिये हवा पानी एवे सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है, इनमें से किसी भी कारण से कोई भी एक घटक यदि बीज को उपयुक्त मात्रा में नहीं मिल रहा है, तो बीज का अंकुरण प्रभावित होता है और पौधे के बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(घ) भूमि का तापमान उचित न होना

बीज के अंकुरण के समय भूमि का तापमान उपयुक्त होना चाहिये। यदि भूमि का तापमान आवश्यकता से अधिक है, या कम है, तो दोनों ही परिस्थितियों में अंकुरण पर विपरित प्रभाव पड़ता है।

बीज की आयु :
बीज का यह लक्षण यद्यपि किसानों के लिये अधिक महत्व का नहीं है, क्योकि बीज की अंकुरण क्षमता भंडारण के तौर-तरीके तापमान एवं आद्रता की प्रतिशत मात्रा पर निर्भर करता है। यदि बीज का भण्डारण अच्छी तरह से साफ करके एवं भली-भाँति बीज को सुखाकर उचित तौर तरीके से भण्डारित किया गया हो तो बीज को काफी लम्बे समय तक बोने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
प्रथम श्रेणी
इसमें वे फसलें आती हैं, जिनका बीज 1 से 2 वर्ष तक उपयुक्त वातावरण में भण्डारित करने से उनकी अंकुरण क्षमता 50 प्रतिशत या उससे अधिक बनी रहती है, जैसे- सोयाबीन, ज्वार, कपास, सूरजमुखी, चना, मसूर, तम्बाखू, राई एवं प्याज आदि है।
द्वितीय श्रेणी
इसमें वे फसलें आती हैं, जिनका बीज करने पर भी अंकुरण क्षमता 50 प्रतिशत या उससे अधिक बनी रहती है, जैसे- गेहूं, धान, जौ, जई, मटर, बरसीम, सरसों, तरबूज, खरबूज, ककड़ी, खीरा, भिण्डी, कद्दू, मूली, पोस्ता पालक, आलू एवं समस्त भूमिगत कंद।
तृतीय श्रेणी
इसमें वे फसलें आती है, जिनका बीज उपयुक्त वातावरण में भण्डारित करने पर 5 वर्षों से अधिक समय तक रखने के उपरांत भी अंकुरण क्षमता 50 प्रतिशत से अधिक बना रहता है, जैसे- टमाटर।
  • डॉ. विशाल मेश्राम
  • डॉ. के.के. सिंह
  • डॉ. उत्तम कुमार बिसेन
  • सुभाष रावत

email : kvkmandla@rediffmail.com

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *