तरबूज की उन्नत खेती
भूमि व जलवायु
तरबूज की खेती के लिए अधिक तापमान वाली गर्म जलवायु सबसे अच्छी होती है। अधिक नम, ठण्डी व पाले वाली जलवायु उपयुक्त नहीं होती है। अधिक तापमान से फलों की वृद्धि अधिक होती है। बीजों के सन्तोषजनक अंकुरण के लिये 22-25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान सर्वोत्तम होता है।
खेत की तैयारी
तरबूज के लिए रेतीली तथा रेतीली दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है। भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाना चाहिए। अधिक रेत होने पर ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए। भूमि का पी.एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वराशक्ति के ऊपर निर्भर करती है। उर्वराशक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है। गोबर की खाद 20-25 ट्रॉली एवं नत्रजन, फास्फेट व पोटाश की मात्रा 40, 60 व 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से भूमि में तैयारी के समय भली-भांति मिला देना चाहिए। तथा शेष नत्रजन 40 कि.ग्रा. को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए।
तरबूज कुकरविटेसी परिवार की सब्जी तथा मुख्य स्वादिष्ट फल होता है जोकि गर्मियों में पैदा किया जाता है। यह फसल उत्तरी भारत में तराई, गंगा, यमुना व बनास आदि नदियों की तलहटी में खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है। जिसके गुलाबी लाल गूदे का सेवन मई-जून माह की तेज धूप व लू में स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होता है। सब्जी के रूप में कच्चे फल का गूदा ही प्रयोग किया जाता है। तरबूज में लगभग 92-95 प्रतिशत पानी और भरपूर पोषक तत्व जैसे- मैग्नीशियम, सल्फर, लोहा, पोटेशियम तथा आक्जौलिक अम्ल के साथ विटामिन ए.बी.सी. एवं लायकोपिन व एंटीऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा होती है। |
उन्नत किस्में
पीकेएम-1, आसाही-यामाटो, शुगर बेबी, दुर्गापुरा मीठा, दुर्गापुरा केसर, मिथिला, सुगंधी, इम्प्रवड शिप्पेर, अर्का मानिक, पूसा बेदाना, न्यू हेम्पसाइन मिडगेट, अर्का ज्योति, पूसा रसाल एवं कटागोलास आदि।
बुवाई समय एवं दूरी
तरबूजकी बुवाई का समय नवम्बर से मार्च तक होता है। नवम्बर-दिसम्बर की बुवाई करके पौधों को पाले से बचाना चाहिए तथा देश के अधिकांश क्षेत्रों में बुवाई जनवरी-मार्च में शुरू की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीनों में बोया जाता है। तरबूज की बुवाई के समय किस्मों व भूमि की उर्वराशक्ति के आधार पर उचित दूरी रखते हैं। लम्बी बढऩे वाली किस्मों के लिए 3 मी. कतारों की तथा 1 मी. पौधे से पौधे की एवं कम फैलने वाली किस्मों में 1.5 मी. कतारों की तथा 90 सेमी. पौधे से पौधे की दूरी रखते हैं। एक जगह पर 3-4 बीज लगाने चाहिए तथा बीज की गहराई 4-5 सेमी. से अधिक नहीं रखनी चाहिए।
बीज की मात्रा एवं बोने का ढंग व दूरी
बीज की मात्रा किस्मे, बीज के आकार, दूरी व बुआई के समय पर निर्भर करती है। इसलिए औसतन बीज की मात्रा 3-5 किलो प्रति हेक्टर की आवश्यकता पड़ती है। बीजों को अधिकतर हाथ से छेद्ररोपण करके लगाना चाहिए।
सिंचाई एवं खरपतवार-नियन्त्रण
तरबूजकी सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन के बाद करनी चाहिए। यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो पहले कमी की जा सकती है। जाड़े की फसल के लिये पानी की कम आवश्यकता पड़ती है। लेकिन जायद की फसल के लिये अधिक पानी की जरूरत होती है, फसल की सिंचाई नालियों से 8-10 दिन के अन्तराल से करते रहना चाहिए ।
सिंचाई के बाद खरपतवार पनपने लगता है। इनको फसल से निकालना अति आवश्यक होता है अन्यथा इनका प्रभाव पैदावार पर पड़ता है। साथ ही साथ अधिक पौधों को भी निकाल देना चाहिए। एक स्थान पर 2 या 3 पौधे ही रखने चाहिए। इस के लिए पूरी फसल में 2 या 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। यदि रोग व कीट ग्रस्त पौधे हो तो फसल से निकाल देना चाहिए जिससे अन्य पौधों पर कीट व बीमारी नहीं लग सके ।
फलों को तोडऩा
तरबूज के फलों की तुड़ाई बुवाई से 3 या 3½ महीने के बाद आरम्भ कर देते हैं। फलों की तुड़ाई प्रत्येक किस्म के फलों के आकार व रंग तथा फलों के आधार पर टेंडरिल का सूखना, भारी दोहरी और धात्विक ध्वनि पर निर्भर करता है कि फल परिपक्व हो चुका है या नहीं। आमतौर से फलों को दबाकर भी देख जा सकता हैं। फलों को पौधों से अलग करने के लिये तेज चाकू का प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए। अन्यथा शाखा टूटने का भय रहता है।
उपज
तरबूज की पैदावार किस्म, भूमि, जलवायु और शस्य क्रियाओं पर निर्भर करती है। साधारणत: तरबूज की औसतन पैदावार 30-40 टन प्रति हेक्टर फल प्राप्त हो जाते हैं।
भण्डारण
तरबूज को तोडऩे के बाद 2-3 सप्ताह आराम से रखा जा सकता है। अधिक लम्बे समय के लिए फलों को 2-5 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान पर रेफरीजरेटर में रखा जाता है।
- हरिकेश जाट
- कैलाश चन्द जाखड़
- रामचंद्र चौधरी
- हेमराज जाट
email: rknarayan19@gmail.com